दोनों दल पिछले दो दशकों से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में सहयोगी रहे हैं और यह पहला मौका है जब भाजपा इस गठबंधन में वरिष्ठ सहयोगी के रूप में उभरी है.
नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अपने सहयोगी जनता दल (युनाईटेड) के मुकाबले शानदार रहा है. दोनों दल पिछले दो दशकों से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में सहयोगी रहे हैं और यह पहला मौका है जब भाजपा इस गठबंधन में वरिष्ठ सहयोगी के रूप में उभरी है.
74 सीटें जीतने में कामयाब हुई BJP
निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित आखिरी परिणाम के बाद भाजपा 74 सीटें जीतने में कामयाब रही, जबकि जदयू को 43 सीटों पर जीत मिली. भले ही राज्य में राजग की सरकार बन जाए और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन जाएं लेकिन यह परिवर्तन बिहार के सत्ताधारी गठबंधन में सत्ता के समीकरण को बदलने की क्षमता रखता है.
राजग और महागठबंधन के बीच रहा कांटे का मुकाबला
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, राजग और महागठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला रहा. राजग ने 125 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाला महागठबंधन 110 सीटें ही जीत पाई.
राजनीतिक जानकारों ने कही ये बात
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2005 के बाद दूसरी बार सत्ता में आने के बाद अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में मुखर रहेगी. सबकी नजरें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर रहेंगी कि ऐसी स्थिति में उनका क्या रुख रहेगा. मालूम हो कि कुमार भाजपा के हिन्दुत्व के मुद्दे पर अलग राय रखते रहे हैं. वर्ष 2015 के विधान सभा चुनाव में जद(यू) को 71 सीटें मिली थी. उस चुनाव में जद(यू) का राजद के साथ गठबंधन था.
नीतीश ऐसे बने थे बिहार के मुख्यमंत्री
भाजपा ने 2013 के लोक सभा चुनाव में जब नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया था तब नीतीश कुमार की पार्टी इसका विरोध करते हुए 17 साल पुराने गठबंधन से अलग हो गई थी. बाद में मोदी के नेतृत्व में जब राजग को लोकसभा चुनावों में भारी जीत मिली तो उधर नीतीश का राजद से मतभेद होने शुरु हो गए. बाद में राजद से अलग होकर उन्होंने भाजपा का दामन थामा और फिर बिहार के मुख्यमंत्री बनें.
साल 2010 के विधान सभा चुनाव में जद(यू) को जहां 115 सीटें मिली थीं, वहीं भाजपा को 91 सीटें मिली थी. साल 2005 के विधानसभा चुनाव में जद(यू) की जीत का आंकड़ा 88 था, तो भाजपा को 55 सीटें मिली थी. साल 2000 के चुनाव में भाजपा को 67 सीटें मिली थी, जबकि नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी समता पार्टी को 34 सीटों से संतोष करना पड़ा था. उस समय झारखंड बिहार का हिस्सा था. बाद में समता पार्टी का जनता दल यूनाईटेड में विलय हो गया था.
लोजपा के कारण जदयू को हुआ नुकसान
इस बार के विधान सभा चुनाव में सत्तारूढ़ जद(यू) को जो नुकसान हो रहा है और उसका कारण बन रही है चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) जो इस बार अकेले दम चुनाव मैदान में थी. हालांकि इसके लिए लोजपा को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. लोजपा सिर्फ 1 सीट ही जीत पाई, लेकिन उसे 5.6 फीसदी वोट जरूर मिले हैं. आंकड़ों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि लोजपा ने कम से कम 30 सीटों पर जद(यू) को नुकसान पहुंचाया है.
