Saturday, April 20, 2024
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टीबी एक महीने में फेफड़े को जितना डैमेज करता है, कोरोनावायरस सिर्फ 4 दिन में ही कर देता है..

डॉ. आरके पंडा ने कोरोना संक्रमित और स्वस्थ मरीज के चेस्ट में होने वाले इंफेक्शन का अंतर बताया

कोरोना में सीटी स्कैन और एक्स-रे कराए जाने पर मरीजों के चेस्ट में जिस तरह का इंफेक्शन और सफेदी दिखाई देती है, वैसा ही इंफेक्शन और सफेदी टीबी के मरीजों के चेस्ट एक्स-रे में नजर आती है। दोनों बीमारियों में निमाेनियल इंफेक्शन होता है, लेकिन कोरोना में 8 गुना तेज रफ्तार से इंफेक्शन फैलकर मरीज को गंभीर स्थिति में पहुंचा देता है।

स्वस्थ व्यक्ति का सीटी स्कैन

स्वस्थ व्यक्ति का सीटी स्कैन

कोरोना के वायरस टीबी की तुलना में 8 गुना ज्यादा तेजी से फेफड़े काे नुकसान पहुंचाते हैं। कोरोना मरीजों के इलाज के दौरान मैंने दोनों मरीजों की सीटी स्कैन और एक्स-रे की रिपोर्ट देखी तो काफी आश्चर्य हुआ। टीबी एक माह में फेफड़े को जितना डैमेज करता है, कोरोना के वायरस केवल 4 दिन में उससे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। कोरोना में कई बार होने वाली सडन डेथ की वजह यही है। मरीज की सिटी स्कैन रिपोर्ट में इंफेक्शन कम दिखाई देता है और अगले दिन निमोनियल इंफेक्शन इतना बढ़ जाता है कि मरीज की मौत हो जाती है। जबकि मरीज मौत के कुछ घंटे पहले तक चलता-फिरता है।

टीबी मरीज के फेफड़े में कम धब्बा

टीबी मरीज के फेफड़े में कम धब्बा

कोरोना के मरीजों की स्थिति गंभीर देखकर उनकी सीटी स्कैन जांच करवाई जा रही है। सीटी स्कैन और एक्स-रे की फिल्म देखने से फेफड़े में सफेदी दिखती है। यही सफेदी कोरोना का संक्रमण है। कोरोना वायरस से होता है, जबकि टीबी बैक्टीरिया से। कोरोना कितना घातक है, इसकी तुलना के लिए टीबी की तुलना की गई तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। कोरोना में फेफड़ों में हल्के धब्बे आने मात्र से ही सर्दी, खांसी, बुखार, व सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।

टीबी में स्थिति अलग होती है। कोरोना पॉजिटिव आने पर में संक्रमण दो-चार दिन में ही तेजी से बढ़ता है, पर टीबी में चेस्ट इंफेक्शन गंभीर स्थिति तक पहुंचने में ढाई से तीन माह तक लग जाते हैं। कोरोना दो से तीन दिन में ही गंभीर स्थिति में पहुंचा देता है। इस स्थिति में अगर जरूरी दवा नहीं ली गई, तो जान पर खतरा बढ़ जाता है। पॉजीटिव रिपोर्ट आने के बाद तीन से चार दिनों में सीटी स्कैन जांच में फेफड़े में धब्बा दिखना शुरू हो जाता है।

कई बार पल्मोनरी फाइब्रोसिस होने पर सांस लेने की दिक्कत बनी रहती है। इस तरह के मामले अस्पताल से छुट्‌टी होने वाले मरीजों में देखने को मिल रहे हैं। कुछ मरीजों की मौत भी हुई है। जिन मरीजों के लंग्स में ज्यादा इंफेक्शन होता है, उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। ऐसे मरीजों के हार्ट व ब्रेन पर भी असर पड़ता है। -जैसा कि नेहरू मेडिकल कॉलेज के रेस्पिरेटरी विभाग के एचओडी डॉ. आरके पंडा ने बताया।

कोरोना से खून गाढ़ा इसलिए नसों में ब्लॉकेज की संभावना ज्यादा

कोरोना से खून गाढ़ा हो जाता है। ऐसे मरीजों के खून की नसों में ब्लॉकेज होने की संभावना बढ़ जाती है। एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में ऐसे 5 मरीजों की सर्जरी की गई है। एक मरीज के पैर की उंगलियां काली पड़ने लगी थीं। सर्जरी कर इसे ठीक किया गया। एक अन्य मरीज के हार्ट की मसल सूजी हुई थी। खून का क्लॉट अगर फेफड़े के अलावा ब्रेन, हार्ट, लीवर व किडनी में चला जाए तो मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है।
-डॉ. कृष्णकांत साहू, एचओडी कार्डियो थोरेसिक एंड वेस्कुलर सर्जरी एसीआई

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