जांजगीर-चांपा: जिले के बलौदा जनपद के ग्राम डोंगरी में मां सरई शृंगारिणी की प्रसिद्ध मंदिर है, जहां 35 साल से अखंड ज्योति जल रही रही है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।
चैत्र नवरात्रि में मनोकामना ज्योति कलश के लिए दूसरे राज्य के श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर को सरई श्रृंगार के नाम से जाना जाता है, जो कि देश में एक अलग पहचान है।
विशालकाय पेड़ों से घिरा हुआ है मंदिर
मां सरई शृंगारिणी का मंदिर चारों तरफ से बड़े-बड़े विशालकाय पेड़ों से घिरा हुआ है, जो श्रद्धालुओं को शीतलता और शांति देते हैं। यह जगह सरई श्रृंगार के नाम से जाना जाता है, जो बलौदा वन परिक्षेत्र में है।
मां सरई श्रृंगार की विशेषता और उत्पत्ति
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि कई वर्ष पहले ग्राम भिलाई का रहने वाला एक व्यक्ति जंगल में पेड़ों की कटाई के लिए आया हुआ था। जब उसने एक सरई का पेड़ काट लिया, जिसे ले जाने के लिए अपने साथ गाड़ा लेकर पहुंचा, लेकिन जहां पर उसने पेड़ को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर रखा था, वहां से लकड़ी के टुकड़े नहीं थे।
मां सरई शृंगारिणी मंदिर में ज्योति कलश प्रज्वलित करते हैं भक्त।
कटा हुआ पेड़ जुड़ गया
स्थानीय लोगों का कहना है कि पेड़ फिर से जुड़ गया था, जिसे देखकर वह अचंभित हो गया। इस बार फिर पेड़ को कुल्हाड़ी से काटने लगा। इस दौरान माता रानी ने उसे पेड़ नहीं काटने के कई संकेत दिए, लेकिन वह पेड़ काटता ही रहा। ऐसे में उसके पूरे परिवार को बीमारियां घेरने लग गई, जिससे त्रस्त होकर पूरा परिवार गांव छोड़ दिया।
लोगों ने बताया कि गांव में बीमारी किसी और को न घेरे, इसलिए वन में आस पास के लोग देवी की आराधना करने लगे। तब से पेड़ की कटाई नहीं की जा रही है। बताया जाता है जहां अभी मंदिर बना है, उस जगह पर पहले झोपड़ीनुमा मंदिर हुआ करता था।
पेड़ों पर लाल कपड़े से बांधते हैं नारियल।
मंदिर निर्माण में नहीं काटे गए पेड़
कहा जाता है कि जैसे-जैसे लोगों के बीच मां सरई शृंगारिणी की जानकारी पहुंचती गई, लोगों में आस्था बढ़ती गई। इसके बाद मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर निर्माण में एक भी पेड़ को काटा नहीं गया है।
यादव समाज करता है पूजा अर्चना
इस मंदिर में पूजा अर्चना केवल यादव समाज के लोग ही करते हैं। कोई पंडित नहीं है। श्रद्धा के साथ माता की पूजा अर्चना करते हैं। लोगों की खुशहाली की कामना करते हैं। श्रद्धालु अपनी मनोकामना के लिए मंदिर परिसर के पेड़ों में लाल कपड़े से नारियल बांधते हैं। इसके साथ ही मनोकामना पूरी होने पर ज्योति कलश प्रज्वलित करते हैं।
(Bureau Chief, Korba)