Friday, April 19, 2024
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छत्तीसगढ़ में 2500 रुपए प्रति क्विंटल में हुई थी धान खरीदी, अब 1400 रुपए में बेच रहे; मंत्रिमंडलीय उप समिति ने निर्धारित की दर…

रायपुर/ छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान को सहेजना सरकार को भारी पड़ रहा है। सरकार ने इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और राजीव गांधी किसान न्याय योजना का इनपुट मिलाकर प्रति क्विंटल 2500 रुपए अदा किए हैं। अब धान को खुले बाजार में बेचने की बात आ रही है तो यह 1350 रुपए से लेकर 1400 रुपए प्रति क्विंटल से अधिक नहीं जा रहा है। फिलहाल नीलामी की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। सरकार इससे पहले भी इसी दर से धान को खुले बाजार में नीलाम कर चुकी है।

खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री अमरजीत भगत की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने बचे हुए धान की नीलामी के लिए नए दरों का अनुमोदन कर दिया। तय हुआ है कि मोटा या सरना धान 1350 रुपए प्रति क्विंटल और पतला ग्रेड-ए किस्म का धान 1400 रुपया प्रति क्विंटल से अधिक दर पर नीलाम किया जाएगा। मार्कफेड के माध्यम से जो 10 लाख मीट्रिक टन धान नीलाम किया जाना था, उसमें से थोड़ा सा हिस्सा बच गया है। मंत्रिमंडलीय समूह की बैठक में पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर, कृषि मंत्री रविंद्र चौबे और सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम शामिल हुए।

इस वर्ष खरीदा गया है रिकॉर्ड धान

राज्य सरकार ने इस वर्ष 20 लाख से अधिक किसानों से 92 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान खरीदा है। पिछले 20 वर्षों के दौरान धान की इतनी खरीदी कभी नहीं हुई थी। यह खरीदी ही सरकार के लिए मुसीबत बनी हुई है। राज्य में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जरूरत और केंद्रीय पूल में चावल देने के बाद भी सरकार के पास करीब 10 लाख मीट्रिक टन चावल बच रहा है। इसको ही खुले बाजार में बेचने के लिए मुख्यमंत्री ने मंत्रिमंडलीय उपसमिति का गठन किया था।

मार्कफेड के जरिए हो रही है नीलामी

सरकार ने फरवरी 2021 में इस अतिशेष धान को बेचने का फैसला किया था। इस नीलामी का जिम्मा मार्कफेड ने उठाया। एक अंतर विभागीय समिति भी बनाई गई। मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने एक न्यूनतम दर तय किया। कहा गया, इससे कम दर नीलामी नहीं होगी। उसके बाद नीलामी की प्रक्रिया शुरू हुई। बताया जा रहा है, किसानों को भुगतान सहित अन्य खर्च मिलाकर सरकार को एक क्विंटल धान की खरीदी पर करीब 3 हजार रुपए खर्च करने पड़े हैं। खुले बाजार में बिकने से उसका आधा दाम भी नहीं मिल रहा है। सरकार का तर्क है कि धान को खराब होते देखने से अच्छा उसका बिक जाना है।

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