Saturday, April 20, 2024
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अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने छोड़ा देश, अब काबुल समेत पूरे देश में तालिबान राज…

तालिबान ने अफगानिस्तान में फिर से इस्लामिक अमीरात को स्थापित करने का सपना भी पूरा कर लिया है। आज से 20 साल पहले अफगानिस्तान पर हुए अमेरिकी हमले के कारण तालिबान को काबुल छोड़कर भागना पड़ा था।

हाइलाइट्स

  • अफगानिस्तान में तालिबान का पूर्ण कब्जा, अब नेता चुनने की तैयारी में आतंकी संगठन
  • अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने छोड़ा देश, कई प्रमुख नेता भी काबुल से बाहर निकले
  • ताजिकिस्तान में शरण लेने की खबर, बाकी देश भी निकाल रहे राजनयिक

काबुल
अफगानिस्तान में  तालिबान की जीत के बीच राष्ट्रपति ने देश छोड़ दिया है। अफगानिस्तान के न्यूज चैनल टोलो न्यूज ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि तालिबान के प्रतिनिधियों के साथ काबुल में बातचीत के बाद गनी ने यह कदम उठाया है। गनी के साथ एनएसए हमदुल्लाह मोहिब समेत कई दूसरे नेताओं ने भी देश छोड़ दिया है। ऐसी रिपोर्ट है कि ये सभी नेता पड़ोसी देश ताजिकिस्तान में शरण लेंगे।

पहले से लगाए जा रहे थे कयास
आज सुबह ही कार्यवाहक रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह अहमदी ने बताया था कि राष्ट्रपति गनी ने देश के राजनीतिक नेतृत्व को वर्तमान संकट को हल करने के लिए अधिकृत किया है। ऐसे में उनके देश छोड़ने के कयास पहले से ही लगाए जा रहे थे। उधर तालिबान के दबाव के आगे घुटने टेकते हुए राष्ट्रपति गनी ने विद्रोहियों को अपने आवास में बुलाकर बैठक की थी।


काबुल पर भी तालिबान राज
तालिबान ने अफगान सरकार के आखिरी किले काबुल पर भी जीत हासिल कर ली है। इसी के साथ तालिबान ने 20 साल बाद काबुल में फिर से अपनी हुकूमत कायम कर ली है। 2001 में अमेरिकी हमले के कारण तालिबान को काबुल छोड़कर भागना पड़ा था।


तालिबान का यह शीर्ष नेता काबुल पहुंचा
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख मुल्ला अब्दुल गनी बरादर काबुल आ चुका है। अफगान सरकार के शीर्ष अधिकारियों का भी कहना है कि सरकार तालिबान के हाथों शांतिपूर्वक सत्ता सौंपने के लिए तैयार है। ऐसे में माना जा रहा है कि अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान का नया राष्ट्रपति बन सकता है। ऐसी भी खतरें हैं कि अमेरिका स्थित अकादमिक और पूर्व अफगान आंतरिक मंत्री अली अहमद जिलाली को अंतरिम प्रशासन का प्रमुख बनाया जा सकता है।


कौन है मुल्ला अब्दुल गनी बरादर
तालिबान के सह-संस्थापकों में से एक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख है। इस समय वह तालिबान के शांति वार्ता दल का नेता है, जो कतर की राजधानी दोहा में एक राजनीतिक समझौते की कोशिश करने का दिखावा कर रहा है। मुल्ला उमर के सबसे भरोसेमंद कमांडरों में से एक अब्दुल गनी बरादर को 2010 में दक्षिणी पाकिस्तानी शहर कराची में सुरक्षाबलों ने पकड़ लिया था, लेकिन बाद में तालिबान के साथ डील होने के बाद पाकिस्तानी सरकार ने 2018 में उसे रिहा कर दिया था।


अली अहमद जलाली कौन है?
अली अहमद जलाली 2003 से 2005 तक अफगानिस्तान के आतंरिक मंत्री रह चुके हैं। वह अमेरिका में एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी हैं। ऐसा माना जा रहा है कि जिलाली को काबुल में एक अंतरिम प्रशासन का प्रमुख बनाया जा सकता है। इससे पहले, कार्यवाहक आंतरिक मंत्री अब्दुल सत्तार मिर्जाकवाल ने एक टेलीविजन संबोधन में कहा कि एक शांतिपूर्ण संक्रमण होगा, लेकिन अभी तक किसी भी विवरण की पुष्टि नहीं की गई है। सूत्रों ने कहा कि यह तुरंत स्पष्ट नहीं था कि तालिबान ने जलाली की नियुक्ति के लिए अपना अंतिम समझौता किया था या नहीं, लेकिन उन्हें सत्ता के संक्रमण की निगरानी के लिए संभावित रूप से स्वीकार्य समझौता व्यक्ति के रूप में देखा गया था।

पिछले 20 साल से सरकार से जंग लड़ रहा तालिबान
2001 से ही तालिबान अमेरिका समर्थित अफगान सरकार से जंग लड़ रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान का उदय भी अमेरिका के प्रभाव से कारण ही हुआ था। अब वही तालिबान अमेरिका के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। 1980 के दशक में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में फौज उतारी थी, तब अमेरिका ने ही स्थानीय मुजाहिदीनों को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था। नतीजन, सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन तालिबान का जन्म हो गया।


कैसे हुआ था तालिबान का जन्म
सोवियत सेना की वापसी के बाद अलग-अलग जातीय समूह में बंटे ये संगठन आपस में ही लड़ाई करने लगे। इस दौरान 1994 में इन्हीं के बीच से एक हथियारबंद गुट उठा और उसने 1996 तक अफगानिस्तान के अधिकांश भूभाग पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद से उसने पूरे देश में शरिया या इस्लामी कानून को लागू कर दिया। इसे ही तालिबान के नाम से जाना जाता है। इसमें अलग-अलग जातीय समूह के लड़ाके शामिल हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या पश्तूनों की है।


सोवियत और अमेरिका भी नहीं कर पाया तालिबान का खात्मा
अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों की सेना के उतरने के बाद भी इसका खात्मा नहीं किया जा सका। तालिबान का प्रमुख उद्देश्य अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात की स्थापना करना है। 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान में शरिया के तहत शासन भी चलाया। जिसमें महिलाओं के स्कूली शिक्षा पर पाबंदी, हिजाब पहनने, पुरुषों को दाढ़ी रखने, नमाज पढ़ने जैसे अनिवार्य कानून भी लागू किए गए थे।

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