Friday, April 19, 2024
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छत्तीसगढ़: 9 बच्चे अशिक्षित न रह जाएं इसलिए नदी पार कर जंगली रास्तों पर 3 किमी पैदल चलते हैं; जर्जर स्कूल बंद हुआ तो घर को बना दिया पाठशाला….

शिक्षक दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के ऐसे दो शिक्षकों की कहानी, जो विपरीत परिस्थितियों में भी ज्ञान बांट रहे हैं। इनमें से एक रोज उफनती नदी पार कर और 3 किमी जंगली व पहाड़ी रास्तों का सफर तय कर महज 9 बच्चों को पढ़ाने जाते हैं। सिर्फ इसलिए कि अगर इन्होंने जाना बंद किया तो बच्चे अनपढ़ रह जाएंगे। वहीं एक अन्य शिक्षक हैं, जिन्होंने जर्जर स्कूल बंद होने के बाद घर को ही पाठशाला बना दिया।

शिक्षा देने के लिए रोज जोखिम में डालते हैं जान
मनोरा विकासखंड की ग्राम पंचायत रेमने का आश्रित गांव है गेड़ई। यहां पहाड़ के ऊपर बसी है कोरवा जनजाति की बस्ती। यहां एक स्कूल है, जहां रोज पढ़ाई होती है। इसके लिए प्राथमिक शाला सरंगापाठ के शिक्षक लक्ष्मण राम करीब 40 किमी लंबी दूरी रोज तय करते हैं। घर से तो बाइक पर निकलते हैं। फिर रास्ते में उसे खड़ी कर उफनती ईब नदी को पार करते हैं। इसके बाद पैदल करीब 3 किमी जंगल के रास्ते से पहाड़ चढ़ना होता है।

शिक्षक लक्ष्मण राम कहते हैं कि इस गांव में शिक्षा का अलख जगाना और गांव के सभी बच्चों को शिक्षित करना मिशन है। खुशी मिलती है।

शिक्षक लक्ष्मण राम कहते हैं कि इस गांव में शिक्षा का अलख जगाना और गांव के सभी बच्चों को शिक्षित करना मिशन है। खुशी मिलती है।

यहां के बच्चे पढ़ें, यही मेरा मिशन
शिक्षक लक्ष्मण राम कहते हैं कि कोई भी दूसरा टीचर इस स्कूल में आना नहीं चाहता है। सभी अपने गांव या शहर के स्कूलों में रहना पसंद करते हैं। एक टीचर होते हुए मुझे एक ऐसी जगह पर पढ़ाने को मौका मिला है, जहां अबतक शिक्षा सही ढंग से पहुंची ही नहीं है। इस गांव में शिक्षा का अलख जगाना और गांव के सभी बच्चों को शिक्षित करना मिशन है। खुशी मिलती है। इसलिए रोजाना इतनी कठिनाइयों का सामना कर स्कूल हर हाल में पहुंचता हूं।

घर से तो बाइक पर निकलते हैं। फिर रास्ते में उसे खड़ी कर उफनती ईब नदी को पार करते हैं। इसके बाद पैदल करीब 3 किमी जंगल के रास्ते से पहाड़ चढ़ना होता है।

घर से तो बाइक पर निकलते हैं। फिर रास्ते में उसे खड़ी कर उफनती ईब नदी को पार करते हैं। इसके बाद पैदल करीब 3 किमी जंगल के रास्ते से पहाड़ चढ़ना होता है।

…तो निरक्षर रह जाएंगे गांव के बच्चे
मनोरा के ‌BRC (ब्लॉक संसाधन समन्वयक) तरुण पटेल बताते हैं कि पहाड़ के ऊपर बस्ती है। स्कूल भवन भी टीले पर है। इस बस्ती में 13 परिवार हैं। इनके 9 बच्चे प्राथमिक शाला में दर्ज हैं। सभी परिवार डिहारी कोरवा जनजातियों से हैं। यहां स्कूल 2006 में खुला और साल 2008 में भवन बनाया गया। वह बताते हैं कि यह एक ऐसी बस्ती है, जहां स्कूल में शिक्षक नहीं पहुंचे तो बच्चे निरक्षर रह जाएंगे। बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी है।

स्कूल भवन जर्जर हुआ, तो उसे बंद कर दिया गया। स्कूल बंद हुआ तो बच्चे भी नाम कटवा कर दूसरी जगह जाने लगे। यह देखकर विजय ने अपने घर में ही पाठशाला शुरू कर दी।

स्कूल भवन जर्जर हुआ, तो उसे बंद कर दिया गया। स्कूल बंद हुआ तो बच्चे भी नाम कटवा कर दूसरी जगह जाने लगे। यह देखकर विजय ने अपने घर में ही पाठशाला शुरू कर दी।

स्कूल बंद हुआ तो बच्चे जाने लगे, फिर घर में लगाई क्लास
ऐसे ही एक और शिक्षक हैं विजय तिर्की। वे प्राथमिक शाला कडरूजबला में पढ़ाते थे। स्कूल भवन जर्जर हुआ, तो उसे बंद कर दिया गया। स्कूल बंद हुआ तो बच्चे भी नाम कटवा कर दूसरी जगह जाने लगे। यह देखकर विजय ने अपने घर में ही पाठशाला शुरू कर दी। विजय इसी गांव के निवासी हैं। लोगों ने उन्हें पढ़ाते देखा तो बच्चों को भेजना शुरू कर दिया। अभी वे 16 बच्चों को पढ़ा रहे हैं। कहते हैं कि बच्चे नाम न कटवाते तो दोगुनी संख्या होती।

स्कूल भवन कभी भी गिर सकता है। भवन की छत के प्लास्टर उखड़ चुके हैं और दीवारों में बरसात में नमी रहती है। उसकी हालत देख पंचायत के आदेश पर बंद कर दिया गया।

स्कूल भवन कभी भी गिर सकता है। भवन की छत के प्लास्टर उखड़ चुके हैं और दीवारों में बरसात में नमी रहती है। उसकी हालत देख पंचायत के आदेश पर बंद कर दिया गया।

5 साल से बंद है स्कूल, मरम्मत की राशि तक स्वीकृत नहीं हुई
स्कूल भवन कभी भी गिर सकता है। भवन की छत के प्लास्टर उखड़ चुके हैं और दीवारों में बरसात में नमी रहती है। उसकी हालत देख पंचायत के आदेश पर बंद कर दिया गया। स्कूल भवन की मरम्मत के लिए शिक्षक और पंचायत ने कई बार शिक्षा विभाग के पास प्रस्ताव भेजा, लेकिन आज तक राशि स्वीकृत नहीं की गई। इसके बाद करीब 5 साल से वहां ताला लटका हुआ है। स्कूल बंद हुआ तो बच्चों ने दूसरी जगह एडमिशन ले लिया।

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