वॉशिंगटन डीसी: तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने मंगलवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र में एक बार फिर जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाया। उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत के जरिए कश्मीर मुद्दे को हल करने की वकालत की।
एर्दोगन ने कहा, “हमें खुशी है कि अप्रैल में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बाद सीजफायर हुआ। कश्मीर के हमारे भाइयों और बहनों के लिए, इस मुद्दे को UN सुरक्षा परिषद की मदद से सुलझाना चाहिए।”
भारत पहले भी ऐसी टिप्पणियों को खारिज कर चुका है। भारत का कहना है कि, “जम्मू-कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है।” एर्दोगन 2019 से हर साल (2024 छोड़कर) UN में कश्मीर का जिक्र करते रहे हैं, जिसमें वे पाकिस्तान के तरफ अपना समर्थन दिखाते हैं।
तुर्किये ने भारत-पाक संघर्ष के दौरान पाकिस्तान का साथ दिया
एर्दोगन ने भारत-पाक संघर्ष के बाद 17 मई, 2025 को कश्मीर मुद्दे को लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से बात की थी। उन्होंने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था। एर्दोगन ने कहा था कि वो कश्मीर मुद्दा सुलझाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेंगे।
उन्होंने भारत के खिलाफ इस्तेमाल के लिए पाकिस्तान को ड्रोन्स-हथियार और इन्हें चलाने वाले ट्रेंड लोग भी भेजे। एर्दोगन ने कहा था कि अगर दोनों देश तैयार हो तो वो कश्मीर मामले में रोल निभाएंगे। हम शांति चाहते हैं, हम दो पड़ोसियों के बीच कोई तनाव नहीं चाहते।
वही, इस्तांबुल में 24 मई, 2025 को शहबाज शरीफ ने एर्दोगन से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान को खुफिया जानकारी, टेक्नोलॉजिकल सपोर्ट, एनर्जी, ट्रांसपोर्ट और डिफेंस सेक्टरों में सहयोग देने का बाद कही थी।

PAK प्रधानमंत्री और तुर्किये के राष्ट्रपति ने 24 मई,2025 को इस्तांबुल में मुलाकात की थी।
भारत बोला था- जम्मू-कश्मीर हमारा अभिन्न अंग
एर्दोगन की टिप्पणी पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था, “जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। किसी दूसरे देश को इस पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।
उन्होंने कहा,” किसी देश के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने के बजाय, यह अच्छा होता कि सीमा पार आतंकवाद को रोकने पर बात करते, जो जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए सबसे बड़ा खतरा बनी हुई है।”
OIC ने भारत से कश्मीरी कैदियों को छोड़ने को कहा
इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के जम्मू-कश्मीर संपर्क समूह की बैठक 23 सितंबर को महासभा के दौरान हुई। बैठक में अजरबैजान, पाकिस्तान, तुर्किये, सऊदी अरब और नाइजर के विदेश मंत्रियों और सीनियर अधिकारियों ने हिस्सा लिया। OIC महासचिव हिसेन ब्राहिम ताहा ने इसकी अध्यक्षता की।
OIC ने भारत-पाक के बीच सीजफायर को अच्छा कदम बताया। साथ ही, जोर दिया कि कश्मीर मुद्दे का हल करने से ही स्थायी शांति संभव है। इसके अलावा प्रमुख कश्मीरी नेता शब्बीर अहमद शाह को लगातार हिरासत में रखने और जमानत न देने पर चिंता जताई।
इसके साथ ही, OIC ने भारत से जम्मू-कश्मीर में लोगों की स्थिति में सुधार करने, सभी कश्मीरी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने, कश्मीरी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध हटाने, सभी कठोर कानूनों को हटाने और जम्मू-कश्मीर पर UN सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को लागू करने की मांग की।

न्यूयॉर्क में 23 सितंबर को इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने बैठक की।
गाजा में इजराइली हमलों की निंदा की
कश्मीर के अलावा एर्दोगन ने अपने भाषण में इजराइल के गाजा में हमले की निंदा की। उन्होंने इसे ‘जीवन का खात्मा’ करने वाला बताया। उन्होंने दुनिया से फिलिस्तीन के समर्थन में खड़े होने और ‘इंसानियत के नाम पर’ उसे मान्यता देने की मांग की।
उन्होंने उन देशों को शुक्रिया कहा, जिन्होंने फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी है। उन्होंने इजराइल के सीरिया, ईरान, यमन, लेबनान और कतर जैसे देशों पर किए हमलों की भी आलोचना की, जहां हमास नेताओं को निशाना बनाया गया था। हालांकि, उन्होंने कहा ये कि हमले अपने मकसद में नाकाम रहे।
फ्रांस समेत 5 देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता दी
फ्रांस, मोनाको, माल्टा, लक्जमबर्ग और बेल्जियम ने फिलिस्तीन को 22 सितंबर की देर रात स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दे दी है। न्यूयॉर्क में UN के सदस्य देशों के बीच इजराइल-फिलिस्तीन विवाद के समाधान को लेकर बैठक हुई, जहां इसकी आधिकारिक घोषणा की गई।
बैठक में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि आज फ्रांस फिलिस्तीन को मान्यता देता है, हमें शांति का रास्ता बनाना होगा। फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से करीब 75% देश मान्यता दे चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र में इसे ‘परमानेंट ऑबजर्वर स्टेट’ का दर्जा हासिल है।
इसका मतलब है कि फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों में शामिल होने की अनुमति तो है, लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं है। फ्रांस की मान्यता मिलने के बाद फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के 5 में 4 स्थायी देशों का समर्थन मिल गया है।
चीन और रूस दोनों ने 1988 में फिलिस्तीन को मान्यता दे दी थी। ऐसे में अमेरिका इकलौता देश होगा जिसने फिलिस्तीन को मान्यता नहीं दी है। उसने ने फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) को मान्यता दी है।
फिलिस्तीनी अथॉरिटी 1994 में इसलिए बनाई गई थी ताकि फिलिस्तीनियों के पास अपनी स्थानीय सरकार जैसी व्यवस्था हो और आगे चलकर यह पूरा राज्य बनने की नींव बन सके।

(Bureau Chief, Korba)