Tuesday, December 2, 2025

              रायपुर : रासायनिक नहीं प्राकृतिक खेती ने तुलसीराम को दी नई पहचान

              रायपुर: नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग के विस्तार से उन्हें नई दिशा मिली किसान तुलसीराम मौर्य। मिशन के तहत प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद तुलसीराम ने श्री विधि से कुटकी, कोसरा और रागी की खेती शुरू की। नई तकनीक और प्राकृतिक तरीकों ने उनके खेतों में नई जान डाल दी। उत्पादन बढ़ा, मिट्टी की गुणवत्ता सुधरी और रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशकों का उपयोग पूरी तरह बंद हो गया।

              खेती की लागत में काफी आई, कमी जैविक उत्पाद का बेहतर मूल्य मिल रहा है

              किसान तुलसीराम मौर्य जो दंतेवाड़ा जिले के गीदम विकासखंड के ग्राम छिंदनार (बड़े पारा) निवासी हैं आज प्राकृतिक खेती के सफल उद्यमी बनकर क्षेत्र के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। पहले वे परंपरागत खेती में अधिक खर्च और कम उत्पादन से परेशान रहते थे। रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी की ताकत भी लगातार घट रही थी। इसी दौरान उन्होंने गोबर खाद, जीवामृत और नीम-लहसुन आधारित जैविक घोल का प्रयोग शुरू किया, जिससे खेती की लागत में काफी कमी आई। साथ ही प्राकृतिक तरीके से उगाई गई सब्जियों में भिंडी, करेला, लौकी, टमाटर, मिर्च आदि से उन्हें रोजाना आय होने लगा। बाजार में उनकी उपज को जैविक उत्पाद होने के कारण बेहतर मूल्य भी मिलता है।

              ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं

              तुलसीराम की सफलता देखकर गांव के 20 से अधिक किसान भी श्री विधि और प्राकृतिक खेती अपनाने लगे हैं। गांव की महिलाएं भी जैविक घोल तैयार करने में सक्रिय होकर आजीविका से जुड़ रही हैं। उत्कृष्ट कार्य के लिए कृषि विभाग द्वारा तुलसीराम मौर्य को आदर्श कृषक सम्मान भी दिया गया है। अपने भविष्य की योजनाओं को साझा करते हुए वे बताते हैं कि अब वे 5 एकड़ क्षेत्र को पूर्णत जैविक खेती क्षेत्र में विकसित करने के साथ-साथ जैविक अनाज प्रोसेसिंग यूनिट और ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म तैयार करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

              प्राकृतिक खेती ने उन्हें आत्मविश्वास और सम्मान से भरा नया जीवन दिया

              प्राकृतिक खेती एक रसायनमुक्त पारंपरिक कृषि पद्धति है जो मिट्टी की उर्वरता और जैव विविधता को बढ़ावा देती है। यहां रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं करते हैं, बल्कि देसी गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, नीम और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से बने उत्पादों का उपयोग करते हैं। छिंदनार के मेहनतकश किसान तुलसीराम मौर्य की यह कहानी साबित करती है कि सही मार्गदर्शन, नवीन तकनीक और निरंतर प्रयास से खेती को लाभ का साधन बनाया जा सकता है। प्राकृतिक खेती ने उन्हें न सिर्फ अच्छी फसल दी, बल्कि आत्मविश्वास और सम्मान से भरा नया जीवन भी दिया है।


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