Thursday, March 28, 2024
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अमेरिका में सरकार बदलने की आहट मात्र से सतर्क हो गया भारत, संभावित बाइडेन प्रशासन से तालमेल बिठाने में जुट गई मोदी सरकार

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पूरी संभावना है कि जो बाइडेन अब डोनाल्ड ट्रंप की जगह अमेरिका के नए राष्ट्रपति बनेंगे। चूंकि डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ मोदी सरकार के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे, इसलिए भारत के सामने नई अमेरिकी सरकार के साथ तालमेल बिठाने की बड़ी चुनौती है। संभावित बाइडेन प्रशासन को साधने की प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है।

हाइलाइट्स:

  • अमेरिकी प्रशासन से रिपब्लिकन पार्टी की विदाई और डेमोक्रेट पार्टी का आगमन लगभग तय है
  • डोनाल्ड ट्रंप के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती थी लेकिन जो बाइडेन के साथ ऐसा रिश्ता नहीं है
  • ऐसे में मोदी सरकार अपने दूतावास के जरिए अमेरिका की नई संभावित सरकार को साधने में जुट गई है

नई दिल्ली : अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की हार और जो बाइडेन की जीत लगभग तय है। बाइडेन अब ट्रंप की जगह अमेरिका के नए राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बाइडेन के साथ ट्रंप जैसी मित्रता नहीं होने का कुछ खामियाजा उठाना पड़ सकता है? स्वाभाविक है कि सरकार के स्तर पर भी इस सवाल का जवाब ढूंढा जा रहा होगा। यही वजह है कि भारत ने नए अमेरिकी प्रशासन से तालमेल बिठाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसी क्रम में अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों के साथ मीटिंग कर रहे हैं। कुछ मीटिंग तो खुलेआम हो रही है जबकि कुछ बैठकों को गुप्त रखा जा रहा है।

अमेरिका में ऐक्टिव हुआ भारतीय दूतावास

इतना ही नहीं, भारतीय दूतावास ओबामा प्रशासन में प्रमुख भूमिका में चुके भारतीय मूल की दो महत्वपूर्ण शख्सियतों के साथ भी संपर्क बढ़ाने में लगा है। इनमें एक हैं विवेक एच. मूर्ति और दूसरे हैं राजीव ‘राज’ शाह। मूर्ति ने बाइडेन के चुनावी अभियान में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उन्हें नए प्रशासन में अच्छा पद मिल सकता है। मूर्ति 2014 में ओबामा के सबसे कम उम्र के सर्जन जनरल थे। शाह की भी ओबामा प्रशासन में काफी पूछ थी। ऐसे में शाह बाइडेन प्रशासन और भारत के बीच तालमेल बिठाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। वह अनुसंधान, शिक्षा और अर्थशास्त्र विभाग के अंडर सेक्रटरी और अमेरिका कृषि विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक रह चुके हैं। वह 2015 तक यूएस स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनैशनल डिवेलपमेंट (USAID) के 16वें प्रशासक भी रहे।

भारतीय मूल के डेमोक्रेट्स पर डोरे डाल रही मोदी सरकार

भारतीय राजदूत अमेरिकी कांग्रेस के ब्लैक कॉकस के भी संपर्क में हैं। कमला हैरिस अफ्रीकी-अमेरिकी सांसदों के इसी समूह की सदस्य हैं। हैरिस की मां भारतीय हैं लेकिन पिता जमैका के हैं। वैसे डेमोक्रेट्स को साधने की रणनीति चुनाव के पहले से ही चल रही है। इसीलिए संधू ने जुलाई में ही हाउस फॉरन अफेयर्स कमिटी की चेयरमैन इलियट एंजेल के साथ मीटिंग की थी। वो हाउस ऑफ रेप्रजेंटेटिव के डेमोक्रेट मेंबर एमी बेरा से भी मिले थे। भारतीय मूल के एमी बेरा तब सब-कमिटी ऑन एशिया के चेयरमैन थे। बेरा इस बार भी चुनाव जीतकर अमेरिकी संसद पहुंच गए हैं।

प्रमील जयपाल, कमला हैरिस ने दिए थे भारत विरोधी बयान

बेरा के अलावा भारतीय मूल की और डेमोक्रेट लीडर प्रमीला जयपाल भी चुनाव जीत चुकी हैं। हालांकि, प्रमीला के साथ मोदी सरकार का तालमेल ठीक नहीं है। प्रमीला ने कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद लागू पाबंदियों को उठाने के लिए पिछले साल अमेरिकी संसद में एक प्रस्ताव पेश किया था जिसके बाद अमेरिका दौरे पर गए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी सांसदों के एक समूह से मिलने से इनकार कर दिया था क्योंकि इस समूह में प्रमीला जयपाल भी शामिल थीं। तब डेमोक्रेट पार्टी से राष्टपदि पद के दावेदार रहे बर्नी सैंडर्स और एलिजाबेथ वॉरन के साथ-साथ कमला हैरिस ने भी जयपाल का साथ दिया था।

कोविड, चीन के कारण बदल चुकी है डेमोक्रेट्स की सोच

डेमोक्रेटिक पार्टी ने भारत में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का भी विरोध किया था। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाउडी मोदी कार्यक्रम में ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का नारा दे दिया। हालांकि, कोविड-19 महामारी, अमेरिका समेत दुनिया के ज्यादातर ताकतवर देशों में चीन विरोधी भावना का उभार और पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीन के साथ जारी सैन्य गतिरोध के परिप्रेक्ष्य में हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। इन हालात में अमेरिका के लिए भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी बाकी सभी मुद्दों पर हावी हो चुकी है।

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