कोरिया, बैकुंठपुर के गुरु घासीदास नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व बनाने की कवायद तेज हो गई है। इसके लिए एनटीसीए से अनुमति ली जा रही है। इससे पहले बाघों को पर्याप्त भोजन मिल सके, इसके लिए जंगल सफारी से 100 चीतल और 15 नीलगायों को वहां छोड़ा जाएगा। नेशनल पार्क प्रबंधन ने जंगल सफारी प्रबंधन को हर्बिबोर प्रजाति के वन्यजीव देने पत्र भेजा है।
रायपुर. कोरिया, बैकुंठपुर के गुरु घासीदास नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व बनाने की कवायद तेज हो गई है। इसके लिए एनटीसीए से अनुमति ली जा रही है। इससे पहले बाघों को पर्याप्त भोजन मिल सके, इसके लिए जंगल सफारी से 100 चीतल और 15 नीलगायों को वहां छोड़ा जाएगा। नेशनल पार्क प्रबंधन ने जंगल सफारी प्रबंधन को हर्बिबोर प्रजाति के वन्यजीव देने पत्र भेजा है। जंगल सफारी प्रबंधन के मुताबिक गुरु घासीदास नेशनल पार्क प्रबंधन का पत्र मिला है, जिसमें नेशनल पार्क प्रबंधन ने नेशनल पार्क में शेरों की बसाहट बढ़ाने के लिए हर्बिबोर प्रजाति के वन्यजीव देने की मांग की है। नेशनल पार्क प्रबंधन के मांगपत्र के साथ सफारी प्रबंधन ने सेंट्रल जू अथारिटी को पत्र लिखकर चीतल तथा नीलगाय देने अनुमति मांगी है। सीजेडए की अनुमति मिलने के बाद नेशनल पार्क में चीतल और नील गाय को डॉक्टरों की निगरानी में नेशनल पार्क भेजने की व्यवस्था की जाएगी।
कारोबारी के घर घुसे नकाबपोश, बंदूक टिकाकर ले उड़े लाखों सफारी का लोड कम होगा जंगल सफारी में वर्तमान में डेढ़ सौ से ज्यादा चीतल तथा 20 से ज्यादा नीलगाय हैं। इस वजह से जंगल सफारी में हर्बिबोर प्रजाति के वन्यजीवों को रखने के लिए जगह की कमी है। जंगल सफारी से 100 चीतल तथा 15 नील गाय नेशनल पार्क भेजने से जगह की कमी दूर होगी। इसलिए नीलगाय, चीतल का चयन शेर प्रजाति के वन्यजीवों के लिए नीलगाय और चीतल आसान शिकार हैं। साथ ही नीलगाय बगैर पानी के लंबे समय तक जीवित रह सकता है। इस वजह से सफारी प्रबंधन ने नेशनल पार्क प्रबंधन को नीलगाय देने की सहमति जताई है। साथ ही मादा चीतल हर छह माह में गर्भधारण कर सकती है। इससे इस प्रजाति के वन्यजीवों की संख्या तेजी से बढ़ती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए सफारी प्रबंधन ने नेशनल पार्क प्रबंधन को चीतल देने का मन बनाया है। प्राकृतिक रहवास क्षेत्र में रहने की वजह से नीलगाय और चीतल की संख्या तेजी से बढ़ सकती है।
खरीदी की तारीख नहीं बढ़ेगी, टोकन बंद, आज जितना धान आएगा, सब तौला जाएगा प्रमोटेड कंटेंट कोलेस्ट्रॉल और रक्त के थक्कों से रक्त वाहिकाओं को साफ करता है दो राज्यों के बाघों का कॉरिडोर है गुरु घासीदास नेशनल पार्क 1440 वर्ग किलोमीटर में फैले गुरु घासीदास नेशनल पार्क मध्यप्रदेश, सीधी स्थित संजय डुबरी तथा झारखंड, पलामू स्थित बेतला टाइगर रिजर्व से सटा हुआ है। संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या अधिक होने की वजह से वहां के तथा बेतला टाइगर रिजर्व के बाघ शिकार की तलाश में गुरु घासीदास नेशनल पार्क में आते जाते रहे हैं। साथ ही इन दोनों राज्यों के बाघ का दूसरे के टेरोटरी में जाने गुरु घासीदास नेशनल पार्क को कॉरिडोर के रूप में उपयोग करते हैं। गुरु घासीदास नेशनल पार्क में बाघों के लिए पर्याप्त शिकार की व्यवस्था होने से इन दोनों राज्यों के बाघ यहां आकर अपना स्थायी रहवास बना सकते हैं। हर्बिबोर देने पत्र लिखा है गुरु घासीदास नेशनल पार्क प्रबंधन ने जंगल सफारी प्रबंधन को हर्बिबोर देने पत्र लिखा है। उसी पत्र के आधार पर हमने सीजेडए को चीतल और नीलगाय देने अनुमति मांगी है। अनुमति मिलने के बाद इन वन्यजीवों को नेशनल पार्क प्रबंधन के सुपुर्द किया जाएगा। – एम. मर्सीबेला, जंगल सफारी प्रबंधन