कोरबा । कोरबा जिला कांग्रेस ग्रामीण अध्यक्ष सुरेन्द्र प्रताप जायसवाल ने मानहानि के एक मामले में सूरत की एक अदालत द्वारा अखिल भारतीय कांग्र्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष एवं लोक सभा सांसद राहुल गांधी को सुनाई गई सजा और उसके परिणामस्वरूप उनकी संसद सदस्यता समाप्त किए जानेे के मुद्दे पर विधि सम्मत प्रक्रियाओं का पालन नहीं होने जैसे अनेक बिन्दुओं पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ को पत्र लिखते हुए सम्पूर्ण प्रकरण में आवश्यक जांच कराने व नैसर्गिक न्याय के हित में व्यक्तिगत हस्तक्षेप कर न्याय की फरियाद करते हुए पत्र लिखा है। जायसवाल द्वारा लिखे गए पत्र में इस बात पर विशेष जोर दिया गया है कि पूर्णेश मोदी बनाम राहुल गांधी के आपराधिक मामले में मानहानि की सजा और परिणामी अयोग्यता ने देश में कई कानूनी सवाल और बहस के लिए मुद्दों को जन्म दे दिया हैं। पत्र में आगे लिखा गया है कि भा.दं.सं. की धारा 499 और 500 के तहत शिकायतकर्ता को यह साबित करना होगा कि अभियुक्त का ऐसा इरादा था या उसे पता था या उसके पास यह विश्वास करने का कारण था कि उसके द्वारा लगाया गये लांछन से उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है जबकि कर्नाटक के कोलार में चुनावी सभा के दौरान 4 साल पहले दिए गए भाषण में राहुल गांधी ने शिकायतकर्ता का नाम भी नहीं लिया था। मानहानि के मामले का निर्णय करते समय बहुत महत्वपूर्ण घटक यानी व्यक्तिगत चोट या मानहानि या निंदा के रूप में प्रतिष्ठा की हानि की बात राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला साबित नहीं हुआ है और यह कि शिकायतकर्ता व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की हानि को साबित करने में विफल रहा है।
जायसवाल ने आगे लिखा है कि सजा के आदेश का तीसरा और सबसे चौंकाने वाला पहलू दो साल की सजा है। उक्त सजा के प्रावधान में, आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत कारावास की यह अधिकतम सजा है जो अपराध के लिए दी जा सकती है। मामले पर बुनियादी जांच की कमी के अलावा, दोष सिद्धि आदेश भी क्षेत्राधिकार के प्रमुख प्रश्न को हल करने में विफल रहा है। यह कि, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 202 के अनुसार, जिसका पालन अदालत को करना चाहिए, यदि वह अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बाहर किसी के खिलाफ कार्यवाही कर रही है। धारा 202 के अनुसार एक मजिस्ट्रेट के लिए यह अनिवार्य है कि वह एक आरोपी व्यक्ति के खिलाफ प्रक्रिया के मुद्दे को स्थगित कर दे, जो मजिस्ट्रेट के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर रह रहा है, जब तक कि वह आरोपों की जांच पूरी नहीं कर लेता है और उसे तसल्ली हो कि पूरे मामले और सजा के आदेश को नियमित तरीके से पारित किया गया है। सुरेन्द्र प्रताप जायसवाल ने इस बात पर अपने पत्र में जोर दिया है कि राहुल गांधी, एक प्रसिद्ध राजनीतिक नेता हैं और उनका कोई पिछला आपराधिक इतिहास या रिकॉर्ड नहीं है, उनके पहले अपराध के लिए अधिकतम अवधि के लिए सजा सुनाई गई है और सजा सुनाते समय इस आदेश में कोई औचित्य या स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया है, जो अपराध की गंभीरता को स्पष्ट करता हो या अपराध जो ऐसी सजा को न्यायोचित ठहरा सकता था।
सूरत कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा का दिलचस्प पहलू यह रहा कि सजा के बाद, राहुल गांधी के खिलाफ आश्चर्यजनक व अनैतिक तरीके से, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के तहत लोकसभा का सदस्य होने से अयोग्य घोषित कर दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि दो या अधिक वर्षों के लिए दोषी ठहराए गए या सजा पाए सांसद, सदस्यता के अयोग्य हैं। ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है, कि जब कानून द्वारा अपीलीय अदालत से स्थगन प्रदान करने का प्रावधान किया गया हो जिसमें अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका दिया गया हो, तो उसकी याचिका के परिणाम की प्रतीक्षा किए बिना अयोग्य ठहराए जाने की कार्यवाही जल्दबाजी में उठाया गया कदम लगता है।
ग्रामीण जिलाध्यक्ष ने कहा है कि लोकसभा से राहुल गांधी की अयोग्यता प्राकृतिक न्याय के सभी सिद्धांतों की अनदेखी करते हुए एक सुनियोजित राजनीतिक बदले की कार्रवाई के अलावा और कुछ नहीं है। एक राजनीतिक नेता की ऐसी अनैतिक और अवैध अयोग्यता, जिसे जनता के बहुमत द्वारा चुना गया है, सत्ता के दुरुपयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 और 103 के प्रावधानों के अनुसार पत्र में लिखा गया है कि संसद के किसी भी सदन के सदस्य की योग्यता के रूप में कोई प्रश्न उठता है, तो ऐसा प्रश्न भारत के राष्ट्रपति के निर्णय के लिए भेजा जाएगा, जिसका निर्णय अंतिम होगा और यह कि ऐसे किसी भी प्रश्न पर निर्णय देने से पहले, भारत के राष्ट्रपति द्वारा चुनाव आयोग की राय प्राप्त की जाएगी और उस राय के अनुसार निर्णय लिया जाएगा और सांसद की अयोग्यता के निर्णय पर हस्ताक्षर करना होता है।
नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार, राहुल गांधी को अयोग्य ठहराए जाने से पहले अपील दायर करने का समय दिया जाना चाहिए था लेकिन, ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा दुर्भावना और सत्ता का दुरुपयोग करते हुए राहुल गांधी को अवैध रूप से अयोग्य घोषित किया गया है। राहुल गांधी ने संसद के बाहर और संसद के अंदर जनता की ओर से देश की विभिन्न समस्याओं पर निडर होकर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि एक लोकतांत्रिक राज्य में अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाया जा रहा है. विचारों की अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है और श्री राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता समाप्त करना देश में शासन व्यवस्था की तानाशाही का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय से निवेदन करते हुए पत्र में उम्मीद जताई गई है कि इस मामले को संज्ञान में लेकर लोकहित में न्याय प्रदान किया जायेगा।