रायपुर: छत्तीसगढ़ में हुए सबसे बड़े नरसंहार झीरम घाटी कांड के चश्मदीद और कांग्रेस नेता दौलत रोहड़ा नहीं रहे। लंबी बीमारी के बाद बीती रात उन्होंने अंतिम सांस ली, आखिरी समय तक रोहड़ा झीरम घाटी कांड में न्याय मिलने का इंतजार करते रहे। सांसे टूट गई लेकिन न्याय नहीं मिला।दौलत रोहड़ा ऐसे कांग्रेस नेता थे जो पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के अंतिम समय में उनके सबसे करीबी रहे। शुक्ल परिवार के लिए उनकी प्रतिबद्धता को आज भी याद किया जाता है।
झीरम घाटी हत्याकांड को अगले महीने 10 बरस पूरे हो जाएंगे। कांग्रेस नेताओं के खून से लाल हुई घाटी और इस घटना के पीड़ित अब भी न्याय का इंतजार करते रहे हैं लेकिन जांच की रफ्तार ऐसी रही की चश्मदीदों के बयान तक NIA ने नहीं लिये गए और जांच बंद कर दी गयी।दौलत रोहड़ा उन्ही में से एक थे,जिन्हें इस बात का मलाल हमेशा रहा की पूरी घटना उनके आंखों के सामने होने के बावजूद NIA ने उनका बयान तक दर्ज नहीं किया।
कांग्रेस नेता दौलत रोहड़ा, पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के करीबी रहे।
25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में माओवादियों का हमला हुआ था। जिसमें माओवादियों के हाथों छत्तीसगढ़ कांग्रेस के शीर्ष स्तर के कई नेता मारे गए थे। ये एक ऐसी हिंसा थी जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था,फिर भी जांच अब तक अधूरी है। झीरम हमले में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और बस्तर टाइगर कहे जाने वाले महेन्द्र कर्मा की मौत हुई थी।इसके अलावा योगेंद्र शर्मा, उदय मुदलियार और प्रफुल्ल शुक्ला जैसे कांग्रेस नेताओं ने भी इस नरसंहार में अपनी जान गंवायी थी। इस घटना को सुपारी किलिंग से जोड़कर देखा जा रहा था।
झीरम घाटी कांड में माओवादियों के हाथों छत्तीसगढ़ कांग्रेस के शीर्ष स्तर के कई नेता मारे गए थे।
झीरम की घटना को आज 10 साल बीतने वाले हैं लेकिन पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सका इस मामले की जांच NIA कर रही थी जो अब बंद हो चुकी है। साथ ही राज्य सरकार ने भी जांच के लिए SIT का गठन किया है लेकिन NIA द्वारा जांच रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण अब तक जांच पूरी नहीं हो पायी है।
झीरम घटना के एक और चश्मदीद डॉ शिवनारायण द्विवेदी का कहना है कि अब न्याय की उम्मीद टूट चुकी है।
अब टूट चुकी है न्याय की उम्मीद
झीरमकांड के एक और चश्मदीद शिवनारायण द्विवेदी का कहना है कि अब न्याय की उम्मीद पूरी तरह टूट चुकी है। द्विवेदी ने बताया कि साल 2021 में उन्होने खुद NIA को पत्र लिखकर घटना के संबंध में बयान देने की बात कही थी। उनके पास जो साक्ष्य थे उसे वे NIA को देना चाहते थे।लेकिन इसके बाद भी NIA उनका बयान लेना जरूरी नहीं समझा। उनके अलावा दौलत रोहड़ा, चोलेश्वर चंद्राकर भी इस घटना में चश्मदीद थे लेकिन किसी का बयान NIA ने नहीं लिया।
शिवनारायण द्विवेदी ने गवाही के लिए NIA को पत्र लिखा था।
शिवनारायण द्विवेदी ने कहा कि उनकी जानकारी में इस घटना को अंजाम देने वालों में 4 हार्डकोर माओवादी कमांडर शामिल थे। जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है। ऐसे में जब भी झीरम घाटी कांड को सुपारी किलिंग कहां जा रहा था, तब ये वही माओवादी थे जो इस बात की पुष्टि कर सकते थे लेकिन अब न्याय की उम्मीद नहीं बची है।