गरियाबंद: जिले में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले भुंजिया जनजाति का एक युवक पिछले 22 सालों से एक ही कमरे में बंद था, लेकिन मानसिक रूप से बीमार इस युवक के इलाज के लिए जिला प्रशासन ने इतने सालों में कोई कदम नहीं उठाया। मीडिया में खबर आने के बाद प्रशासन सक्रिय हुआ है। डॉक्टरों की विशेष टीम सुखरीडबरी गांव पहुंची और बीमार युवक को लेकर जिला अस्पताल आई है, जहां उसे इलाज के लिए भर्ती कराया गया है।
डॉक्टरों की विशेष टीम की निगरानी में मानसिक रूप से बीमार युवक महेश नेताम का इलाज किया जाएगा। चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर हरीश चौहान, डॉक्टर राजेंद्र बिनकर और महिला डॉक्टर बी बारा युवक का निरीक्षण करेंगी। महेश की मां ने कहा कि अब उनके बेटे को दर्द से जल्द राहत मिलेगी। जांच और शुरुआती इलाज के बाद डॉक्टर आगे का फैसला लेंगे। महेश की मां ने भावुक होते हुए कहा कि बेटे को अस्पताल लाकर अच्छा लग रहा है। अब उसे रस्सियों से नहीं बांधेंगे। उन्होंने इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन का आभार जताया।
डॉक्टरों की विशेष टीम बीमार युवक को लेकर जिला अस्पताल पहुंची।
ये है पूरा मामला
कोपेकसा ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम सुखरीडबरी में 30 साल का युवक महेश नेताम रहता है। ये भुंजिया जनजाति का युवक है। उसकी मां अगिन बाई 22 सालों से बेटे को रस्सियों से बांधकर रखने को मजबूर थी। झोपड़ी में एक लंगोट और रस्सियों से बंधा ये युवक सालों से अभिशप्त जीवन जी रहा था, लेकिन लाचार मां की सुनने वाला कोई नहीं था।
भुंजिया जनजाति का 30 वर्षीय युवक महेश नेताम।
पीड़ित युवक महेश नेताम के पिता की मौत सालों पहले हो चुकी है और अब बूढ़ी मां के ऊपर ही परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी है। 3 बेटों में महेश सबसे छोटा है। अब बूढ़ी मां अपना और अपने मानसिक रूप से बीमार बेटे का पालन-पोषण वनोपज संग्रहण करके कर रही हैं। वहीं दो बड़े बेटे कमाने के लिए दूसरे राज्य में चले गए हैं। बेटियों की शादी हो चुकी है।
22 सालों से महेश नेताम इसी तरह रस्सियों से बंधा हुआ रहता है।
चाचा कल्याण सिंह नेताम ने बताया कि 5 साल की उम्र में महेश की बीमारी का पता चला। कई जगह गुहार लगाने के बाद भी जब इलाज नहीं मिला, तो बढ़ती उम्र के साथ मानसिक संतुलन बिगड़ता चला गया। बार-बार वो घर से लापता होने लगा, तो कभी चूल्हे में हाथ-पैर डालकर खुद को झुलसाने लगा। ऐसा होने पर उसकी मां अगिन बाई उसे रस्सी से बांधकर रखने लगी।
अधिकारियों का लापरवाह रवैया
भुंजिया जनजाति परिवार की इस समस्या से जिम्मेदार भी इत्तेफाक रखते हैं। इलाज के लिए 3 साल पहले 5 हजार रुपए की सहयाता राशि देकर अधिकारियों ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली।भुंजिया जनजाति विकास अभिकरण के अध्यक्ष ग्वाल सिंह सोरी ने बताया कि कुछ साल पहले स्वास्थ्य विभाग की टीम सुखरीडबरी गांव गई थी। विभाग की ओर से 5 हजार रुपए की सहायता राशि भी दी गई थी। आदिवासी विकास विभाग के पूर्व उपसंचालक बीएन सुखदेवे को मामले से अवगत भी कराया गया था। वे जल्द ही युवक की स्थायी मदद करना चाहते थे, लेकिन उनके निलंबन के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
लाचार मां बेटे की सुरक्षा के लिए उसे झोपड़ी में बंद करके जाती है।
महेश के परिजन पिछले कई सालों से उसके इलाज के लिए विभिन्न माध्यमों से जिला प्रशासन से गुहार लगाते रहे हैं, लेकिन उसका ठीक तरीके से पूरा इलाज किसी ने नहीं कराया। परिवार का कहना है कि 5 हजार रुपए देकर पल्ला झाड़ लिया गया, लेकिन न तो उसे मानसिक रोग के अस्पताल में भर्ती कराने की किसी ने पहल की, न उसे मनोचिकित्सक को दिखाकर उसका पूरा इलाज ही कराया। परिवार का कहना है कि 5 हजार रुपए से बेटा ठीक हो जाएगा? अब खबर दिखाए जाने के बाद स्वास्थ्य विभाग और जिला अस्पताल की नींद खुली है और उसे जिला अस्पताल इलाज के लिए लाया गया है।
मां अगिन बाई अपने मानसिक रूप से बीमार बेटे महेश से बात करती हुई।
ठेका और सप्लाई पर केंद्रित रह गया बजट
गरियाबंद में जनजाति के अलावा आदिवासियों के उत्थान के लिए आदिवासी विकास विभाग है। जनजाति विकास के लिए राज्य के अलावा केंद्र से भी लाखों का फंड मिलता है, लेकिन 22 साल से युवक दुर्दशा का शिकार है, लेकिन भुंजिया परिवार की कोई मदद नहीं की गई। पीड़ित का आधार कार्ड तक नहीं बन पाया है। इसी बात से प्रशासन की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
आदिवासी विकास विभाग बजट की 90 फीसदी राशि का खर्च बिल्डिंग मरम्मत, सामान सप्लाई, सैनेटरी पैड और जनजाति के कौशल विकास प्रशिक्षण के नाम पर दिखा देती है, लेकिन ये सब कागजों पर ही है, जमीनी हकीकत में कहीं कोई विकास नहीं दिखाई देता। इधर प्रभारी सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग आशीष अनुपम टोप्पो ने एक बार फिर जानकारी लेकर नियमानुसार सहयोग करने का आश्वासन दिया है।