वॉशिंगटन डीसी: टैरिफ के बाद अब अमेरिका वर्क वीजा, स्टूडेंट वीजा और ग्रीन कार्ड पर भी सख्ती दिखाने लगा है। सरकार ने नए नियम लाने की तैयारी की है, जिनके तहत विदेशी छात्रों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आने वाले लोगों और विदेशी पत्रकारों की वीजा अवधि कम की जाएगी।
अभी तक इन लोगों को जरूरत के हिसाब से अमेरिका में रहने की इजाजत थी। लेकिन नए नियम के मुताबिक, विदेशी छात्र और सांस्कृतिक मेहमानों को 4 साल तक का वीजा मिलेगा। विदेशी पत्रकारों को 240 दिन का वीजा मिलेगा।
ट्रम्प प्रशासन का कहना है कि इससे वीजा धारकों की निगरानी आसान होगी और दुरुपयोग पर रोक लगेगी। लेकिन इस फैसले का सीधा असर भारतीय आईटी कंपनियों और अमेरिका में पढ़ने व काम करने वाले भारतीयों पर पड़ सकता है।
इस बीच अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक और फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डिसेंटिस ने H-1B वीजा को ‘घोटाला’ बताया है। डिसेंटिस का कहना है कि इस वीजा का सबसे ज्यादा फायदा भारत के लोगों को मिल रहा है।
H-1B वीजा का लगभग 75% भारतीयों को मिलता है
अमेरिका में जारी होने वाले H-1B वीजा का लगभग 75% भारतीयों को मिलता है। भारत हर साल लाखों इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस के ग्रेजुएट तैयार करता है, जो अमेरिका की टेक इंडस्ट्री में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो, कॉग्निजेंट और एचसीएल जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि भारत अमेरिका को सामान से ज्यादा लोग यानी इंजीनियर, कोडर और छात्र एक्सपोर्ट करता है।
स्टू़डेंट (F वीजा) और एक्सचेंज वीजा (J वीजा) को लेकर भी ट्रम्प प्रशासन सख्त है। पहले से नियम यह था कि जब तक छात्र का एडमिशन रहता है, उसे रहने की अनुमति मिलती है। लेकिन अब नया नियम यह है कि छात्र और एक्सचेंज वीजा सिर्फ 4 साल तक ही मान्य होंगे। विदेशी पत्रकारों (I वीजा) की अवधि 240 दिन तय की जाएगी, जिसे बाद में बढ़ाया जा सकता है।
F और J वीजा की वैधता अधिकतम 4 साल होगी
अमेरिका में 1978 से नियम है कि छात्रों और एक्सचेंज वीजा लेने वालों को ‘ड्यूरेशन ऑफ स्टेटस’ के आधार पर एंट्री मिलती थी। यानी अगर किसी छात्र का दाखिला जारी है, तो उसे बिना बार-बार इमिग्रेशन चेक के अमेरिका में रहने की अनुमति मिल जाती थी। इससे वे अपनी पढ़ाई या एक्सचेंज प्रोग्राम खत्म होने तक रुक सकते थे।
लेकिन ट्रम्प प्रशासन का कहना है कि यह व्यवस्था ‘परमानेंट स्टूडेंट्स’ पैदा कर रही है। इसलिए नए नियमों में F और J वीजा की वैधता अधिकतम 4 साल तक सीमित होगी। अगर कोई छात्र या एक्सचेंज प्रोग्राम इससे लंबा है, तो उसे वीजा एक्सटेंशन के लिए अलग से आवेदन करना होगा।
भारतीय छात्र अमेरिका में बड़ी संख्या में मास्टर और पीएचडी करने जाते हैं। पढ़ाई के बाद वे OPT प्रोग्राम के जरिए H-1B में प्रवेश करते हैं। ट्रम्प प्रशासन इस रास्ते को भी सीमित करने की कोशिश कर रहा है।
अमेरिकी मंत्री बोले- H-1B वीजा असल में एक घोटाला
मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि मौजूदा H-1B सिस्टम असल में एक घोटाला है, जो अमेरिकी नौकरियों को विदेशी कर्मचारियों से भर रहा है। उन्होंने दावा किया कि ग्रीन कार्ड और H-1B दोनों सिस्टम को बदला जाएगा ताकि अमेरिका सिर्फ टॉप टैलेंट को आकर्षित करे।
लुटनिक ने कहा कि औसत अमेरिकी की सैलरी 75,000 डॉलर है, जबकि औसत ग्रीन कार्ड यूजर 66,000 डॉलर कमाता है। यानी अमेरिका को घाटा हो रहा है। लुटनिक के मुताबिक ट्रम्प इस सिस्टम को बदलेंगे और ‘गोल्ड कार्ड’ लाएंगे।
वहीं, फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डेसेंटिस ने आरोप लगाया कि कई कंपनियां अमेरिकी कर्मचारियों को निकालकर H-1B कर्मचारियों को रख रही हैं। उन्होंने कहा कि पहले यह दावा किया जाता था कि H-1B से दुनिया का सबसे बेहतरीन टैलेंट आता है, लेकिन असलियत में ऐसा नहीं है।
H-1B वीजा को लेकर ट्रम्प का रवैया उलझन भरा
यह कार्ड उन विदेशियों को स्थायी निवास देगा जो अमेरिका में 50 लाख डॉलर निवेश करेंगे। उनका कहना है कि अभी तक इस योजना में 2.5 लाख लोग रुचि दिखा चुके हैं और इससे 1.25 ट्रिलियन डॉलर का राजस्व आ सकता है।
डोनाल्ड ट्रम्प का H-1B वीजा को लेकर रवैया हमेशा उलझन भरा रहा है। वह कभी समर्थन तो कभी इसका विरोध करते हैं। जनवरी 2025 में ट्रम्प ने साफ कहा था कि वह H-1B वीजा प्रोग्राम का समर्थन करते हैं।
एक तरफ वे मानते हैं कि अमेरिका को बेहद काबिल लोगों को अपने यहां आने देना चाहिए, ताकि वे उन अमेरिकियों को भी प्रशिक्षित कर सकें जो उतने सक्षम नहीं हैं। ट्रम्प का कहना था कि यह सिर्फ इंजीनियरों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि सभी स्तरों के लोगों को शामिल करना चाहिए। लेकिन समस्या यह है कि ट्रम्प का रुख उनके मूड पर निर्भर करता है और अक्सर बदलता रहता है।
दूसरी तरफ वे यह भी कहते हैं कि इस प्रोग्राम का दुरुपयोग हो रहा है और यह अमेरिकी कर्मचारियों पर आर्थिक बोझ डाल रहा है। उन्होंने इसे ऐसी व्यवस्था बताया था जिससे कंपनियां सस्ते विदेशी कर्मचारियों को रखती हैं और अमेरिकी कामगारों की नौकरियां छिनती हैं।

(Bureau Chief, Korba)