वॉशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को चुनावी प्रकिया में बदलाव से जुड़े एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर साइन किए। इसके तहत अमेरिकी नागरिकों को वोटर रजिस्ट्रेशन के लिए नागरिकता का प्रमाण देना होगा।
ट्रम्प प्रशासन के अधिकारियों के मुताबिक इसका मकसद वोटर लिस्ट में अवैध रूप से शामिल अप्रवासियों पर नकेल कसना है। अभी अमेरिका के कई राज्यों में वोटर रजिस्ट्रेशन के लिए पासपोर्ट या बर्थ सर्टिफिकेट दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती है।
ट्रम्प ने 2020 के चुनाव में अपनी हार के पीछे फर्जी मतदान को वजह बताया था। हालांकि, ट्रम्प के इस आदेश को राज्यों ने कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली है।
आदेश में ट्रम्प ने कहा कि भारत और ब्राजील के मतदाता किसी भी व्यक्ति की पहचान को बायोमीट्रिक डेटाबेस से जोड़ रहे हैं, जबकि अमेरिका में नागरिक इसके लिए काफी हद तक सेल्फ अटेस्ट करने पर निर्भर हैं।
मिशिगन में बिना आईडी दिखाए दे सकते हैं वोट
अमेरिका में वोटिंग को लेकर कोई एक जैसे नियम नहीं है। हर राज्य के अपने अलग कानून हैं। टेक्सास, जॉर्जिया और इंडियाना जैसे राज्यों में वोटिंग की प्रक्रिया बेहद सख्त है। यहां पर वोट डालने के लिए फोटो आईडी (जैसे ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट) दिखाना जरूरी है।
वहीं, कैलिफोर्निया, न्यूयॉर्क और इलिनॉय जैसे राज्यों में वोटिंग को लेकर उतने सख्त नहीं हैं। इन राज्यों में नाम और पता बताकर या फिर कोई दस्तावेज जैसे कि बिजली का बिल दिखाकर वोटिंग की जा सकती है।
इसके अलावा मिशिगन जैसे राज्यों में वोट डालने के दौरान फोटो आईडी मांगी जाती है। अगर किसी के पास यह नहीं है तो वह एक हलफनामा साइन कर वोट कर सकता है।
ट्रम्प ने मंगलवार को आदेश पर साइन करते हुए कहा-
‘चुनावी धोखाधड़ी…’ आपने यह शब्द सुना होगा। मैं इसे खत्म करने जा रहा हूं।
एग्जीक्यूटिव ऑर्डर वह आदेश होते हैं जो राष्ट्रपति द्वारा एकतरफा जारी किए जाते हैं। ये आदेश कानून की शक्ति रखते हैं। इन्हें कांग्रेस की मंजूरी की जरूरत नहीं होती। कांग्रेस इन्हें पलट नहीं सकती। हालांकि, इन्हें अदालत में चुनौती दी जा सकती।
ट्रम्प के चुनावी वादों को पूरा करने के मकसद से इन एग्जीक्यूटिव ऑर्डर को तैयार किया गया है।
वोटिंग से जुड़े एग्जीक्यूटिव ऑर्डर की 4 अहम बातें
नागरिकता साबित करने की जरूरत: वोटिंग के लिए नागरिकता का सबूत, जैसे पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस देना जरूरी होगा।
राज्यों से सहयोग की अपील: ऑर्डर में राज्यों को सहयोग करने, वोटर लिस्ट को संघीय सरकार के साथ शेयर करने और चुनाव से जुड़े अपराधों की जांच में मदद की अपील की गई है।
मेल-इन बैलट की समय सीमा: चुनाव खत्म होने के बाद मिलने वाले मेल-इन बैलट को अवैध माना जाएगा।
नियम ना मानने पर फंडिंग में कटौती: ऑर्डर में साफ-साफ कहा गया है कि अगर कोई राज्य इन नए नियमों का पालन नहीं करता तो उनको दी जाने वाली फंडिंग मदद में कटौती की जा सकती है।

वोटिंग को लेकर राज्यों में अंतर के पीछे राजनीतिक और ऐतिहासिक कारण हैं। वोटर आईडी से धोखाधड़ी रुकती है, जबकि कुछ का मानना है कि इससे गरीब या अल्पसंख्यक वोटर को परेशानी होती है। यह बहस सालों से चल रही है।
वोटर आईडी की मांग का विरोध करती है डेमोक्रेटिक पार्टी
डेमोक्रेटिक पार्टी आमतौर पर मतदान के लिए जरूरी वोटर आईडी की मांग का विरोध करती रही है। पार्टी इसके पीछे वजह देती रही है कि इससे गरीब, अल्पसंख्यक, बुजुर्ग और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों के लिए वोट करना मुश्किल हो जाएगा।
दरअसल, अमेरिका में हर किसी के पास सरकारी आईडी नहीं होती, खासकर अश्वेत, लैटिनो और गरीब समुदायों के लोगों के पास। डेमोक्रेटिक पार्टी मानती है कि इससे ये लोग वोटिंग प्रक्रिया से बाहर हो जाएंगे।
दूसरी तरफ रिपब्लिकन पार्टी का आरोप है कि जिन राज्यों में डेमोक्रेटिक पार्टी मजबूत हैं, वहां बड़ी संख्या में अवैध अप्रवासी हैं। ये अवैध अप्रवासी फर्जी तरीके से वोटर रजिस्ट्रेशन कराते हैं और डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट करते हैं। इसलिए डेमोक्रेटिक पार्टी वोटिंग के लिए अनिवार्य पहचान पत्र की मांग का विरोध करती है।
विदेशी नागरिकों के चंदा देने पर रोक
इस कार्यकारी आदेश के तहत अमेरिकी चुनावों में विदेशी नागरिकों के चंदा देने पर कड़ी पाबंदी लगाई गई है। दरअसल, पिछले कुछ सालों में विदेशी नागरिकों से मिलने वाला चंदा अमेरिकी चुनावों में बड़ा मुद्दा बना है।
इसकी एक बड़ी वजह स्विस अरबपति हैंसयोर्ग वीस भी हैं, जिन्होंने अमेरिका में सैकड़ों मिलियन डॉलर का चंदा दिया है। उन्हें ट्रम्प विरोधी माना जाता है। वीस के समर्थन वाले एक संगठन सिक्सटीन थर्टी फंड ने ओहायो के संविधान में गर्भपात सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए 3.9 मिलियन अमेरिकी डॉलर का दान दिया था।
हाल ही में, कंसास ने भी इसी तरह का एक विधेयक पारित किया है, जिसमें विदेशी नागरिकों, कंपनियों, सरकारों या राजनीतिक दलों द्वारा राज्य के संवैधानिक संशोधनों के पक्ष या विरोध में अभियान चलाने के लिए चंदा देने पर प्रतिबंध लगाया गया है।

(Bureau Chief, Korba)