गरियांबद: छत्तीसगढ़ में फिर से राजकीय पशु वन भैंसा की मौत हो गई है। इस बार भी गरियाबंद जिले के उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में वन भैंसा की जान गई है।आशंका है कि पेट फूलने के चलते नर वन भैंसा सोमू ने दम तोड़ दिया है। इसके तीन महीने पहले एक मादा वन भैंसा खुशी की मौत हो गई थी। जिसके बाद से ही टाइगर रिजर्व में मादा वन भैंसा की संख्या अब शून्य रह गई है।
इस संबंध में उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक आयूष जैन ने बताया कि 10 नवंबर को टाइगर रिजर्व क्षेत्र में प्रजनन एवं संवर्धन केंद्र जुगाड में रखे सभी वन भैंसों का WTI की टीम एवं वन अमले की टीम ने निरीक्षण किया गया था। जिसमें सभी वन भैंसे स्वस्थ थे।
11 नवंबर को भी सुबह सभी वन भैंसों का व्यवहार सामान्य था। इसी बीच 11 बजे सोमू नामक वन भैंसे ने असामान्य व्यवहार करना शरू कर दिया। जांच करने में पता चला कि उसका पेट फूला हुआ था। इसके बाद वेटनरी डॉक्टर्स को गरियाबंद जिले से बुलाया था। वहीं WTI की टीम ने उसका प्राथमिक इलाज भी किया था। मगर गरियाबंद से डॉक्टरों की टीम के पहुंचने से पहले ही सोमू ने दम तोड़ दिया। मौत के बाद 3 सदस्यी डॉक्टर्स की टीम ने सोमू का पोस्टमॉर्टम किया है। पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर राकेश वर्मा ने बताया की प्रथम दृष्यता में मौत टेम्पनाइटिस (पेट फूलने से) नजर आ रहा है। लेकिन पीएम रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
पोस्टमॉर्टम के बाद शव को दफना दिया गया है।
घटकर 7 रह गई संख्या
अधिकारियों ने बताया कि आम तौर पर वन भैंसों की औसत आयु 12 साल होती है। सोमू ने 8 साल की उम्र में ही दम तोड़ दिया है। अधिकारियों ने बताया कि 7 साल पहले टाइगर रिजर्व क्षेत्र में 22 वन भैंसे थे। जो अब घटकर 7 रह गए हैं। अब इस क्षेत्र में एक भी मादा वन भैंसा नहीं है। फिलहाल 5 वन भैंसा बाड़े में और 2 वन भैसें बाहर विचरण कर रहे हैं। प्रदेश में लगातार कम होती वन भैंसों की संख्या को देखते हुए साल 2001 में इसे राजकीय पशु घोषित किया गया था।
बुखार की वजह से मादा वन भैंस की जान गई
3 महीने पहले प्रदेश की इकलौती मादा वन भैंस ‘खुशी’ की मौत हुई थी। उसे भी उदंती अभ्यारण्य में रखा गया था। बताया गया था कि टाइगर प्रोजेक्ट के तहत वन विभाग उसके प्रजनन के प्रयास में लगा था। मौत के पहले खुशी को 2 दिन से बुखार था। इसके बाद उसकी मौत हो गई थी।