Monday, September 23, 2024




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BCC NEWS 24: छत्तीसगढ़/रायपुर- बिना ऑपरेशन जोड़ दी रीढ़ की हड्‌डी: 70 साल की महिला के फ्रैक्चर वाले स्थान पर बोन सीमेंट इंजेक्ट किया; अब खुद से बैठती हैं

डॉ. भीमराव आम्बेडकर अस्पताल के डॉक्टरों ने जटिल सी दिखने वाली सर्जरी को इमेज गाइडेड फ्लोरोस्कोपी और सुई की मदद से पूरा कर दिया।

रायपुर मेडिकल कॉलेज से संबद्ध डॉ. भीमराव आम्बेडकर अस्पताल के डॉक्टरों ने एक कमाल का इलाज किया है। डॉक्टरों की टीम ने रीढ़ टूटने से पूरी तरह बिस्तर पर पड़ी बुजुर्ग महिला की हड्‌डी बिना ऑपरेशन के ही जोड़ दी है। अब उस महिला को दर्द से आराम मिल गया है। वह खुद से बैठ भी पा रही है। मेडिकल की भाषा में इस प्रक्रिया को वर्टिबोप्लास्टी कहा जाता है। दावा किया जा रहा है, छत्तीसगढ़ में संभवत: पहली बार इस प्रक्रिया से इलाज किया गया है।

अस्पताल के इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. विवेक पात्रे ने बताया, इमेज गाइडेड वर्टिब्रोप्लास्टी प्रक्रिया में फ्लोरोस्कोपी की सहायता से रीढ़ के फ्रैक्चर वाले स्थान पर खोखली सुई के माध्यम से एक विशेष बोन सीमेंट को इंजेक्ट किया जाता है। सुई से डाला गया सीमेंट उस स्थान पर जमकर सख्त हो जाता है। इससे टूटी हुई हड्डी को सहारा मिल जाता है। मरीज की बहू सविता पाल ने बताया, उनकी 70 वर्षीय सास शकीला तीन महीने पहले फिसलकर फर्श पर ही गिर गईं थीं। इसकी वजह से उनकी रीढ़ की हड्‌डी टूट गई। कई जगह इलाज कराने के बाद भी उन्हें दर्द से आराम नहीं मिला। उस दिन के बाद से वे बिस्तर से उठ तक नहीं पा रही थीं। अब जाकर उन्हें आम्बेडकर अस्पताल लाया गया। यहां डॉक्टरों ने सीटी स्कैन और एमआरआई जांच से रीढ़ की हड्डी टूटने की जानकारी दी। रेडियोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने उम्र की अधिकता और बीमारी की गंभीरता को देखते हुए वर्टिब्रोप्लास्टी करने का निर्णय लिया। सविता ने बताया, उपचार के बाद उनकी सास ने खुद से बैठना शुरू कर दिया है। उनकी हालत में 80 से 90% तक सुधार है। प्रदेश का पहली वर्टिब्रोप्लास्टी करने वाली टीम में डॉ. विवेक पात्रे के साथ रेडियोलॉजिस्ट डॉ. नीलेश गुप्ता, एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. अशोक सिदार, डॉ. आकांक्षा, डॉ. सूरज, डॉ. सोनल, डॉ. प्रियंका, नर्स अर्पणा, दुर्गेश, गीतांजलि, टेक्नीकल सहयोगी अब्दुल, नरोत्तम और देवेश शामिल थे।

ऐसे पूरी हुई इलाज की प्रक्रिया

वर्टिब्रोप्लास्टी में सबसे पहले इमेज गाइडेड फ्लोरोस्कोपी की सहायता से एक सुई को त्वचा के माध्यम से फ्रैक्चर हुए वर्टिब्रा में इंजेक्ट किया गया। इसके बाद बोन सीमेंट के मिश्रण को इंजेक्शन के जरिए इंजेक्ट किया गया। फ्रैक्चर हुए वर्टिब्रल के भीतर पहुंचते ही सीमेंट सख्त हो गया। पांच मिनट के अंदर ही सुई को हटा लिया गया। ऐसा करने से पहले केवल सुई देने वाले स्थान को सुन्न किया गया। यानी लोकल एनेस्थिसिया दिया गया था। इस प्रक्रिया में मरीज को कोई चीरा नहीं लगाया गया।

बड़े शहरों में 2 से 3 लाख का इलाज, यहां नि:शुल्क हो गया

डॉक्टरों का कहना है, वर्टिबोप्लास्टी जैसे उपचार के उन्नत तरीकों के लिए मरीज दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे शहरों का रुख करते हैं। वहां पर इस इलाज पर 2 से 3 लाख का खर्च आता है। यहां इस मरीज की वर्टिब्रोप्लास्टी डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना से नि:शुल्क हुई है।

किन बीमारियों में कारगर है यह तरीका

डॉ. विवेक पात्रे ने बताया, वर्टिब्रोप्लास्टी एक डे केयर प्रोसिजर है। इसके लिए मरीज को लंबे समय तक अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं पड़ती। इसमें मिनिमम इनवेसिव प्रक्रिया के जरिये स्पाइनल फ्रैक्चर को ठीक किया जाता है। इससे दर्द कम होता है। आस्टियोपोरेसिस के कारण हड्डियों के घनत्व, द्रव्यमान एवं क्षमता में आई कमी में भी यह उपयोगी है। टूटी हुई रीढ़ की हड्डियों को सहारा देने के लिए प्रक्रिया में बोन सीमेंट का उपयोग किया जाता है। वर्टिब्रोप्लास्टी के बाद व्यक्ति की गतिशीलता बढ़ती है। साथ ही दर्द की दवाओं का उपयोग कम हो जाता है।

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