Wednesday, October 8, 2025

BIG NEWS : लालकृष्ण आडवाणी दिल्ली AIIMS में भर्ती, बुधवार रात बिगड़ी थी तबीयत, यूरोलॉजी डिपार्टमेंट में इलाज जारी; हालत स्थिर

नई दिल्ली: देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बुधवार देर शाम को उन्हें कुछ दिक्कत महसूस हुई, जिसके बाद एम्स ले जाया गया है। हालांकि, कुछ सूत्रों का कहना है कि यह रूटीन चेकअप है। फिलहाल उन्हें यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉक्टर्स की निगरानी में रखा गया है। डॉक्टरों ने बताया कि उनकी हालत स्थिर है।

31 मार्च को लालकृष्ण आडवाणी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनके घर जाकर भारत रत्न से सम्मानित किया था। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू भी मौजूद थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने 3 फरवरी को उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की थी। इससे पहले 2015 में आडवाणी को देश के दूसरे सबसे नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

31 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किया था।

31 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किया था।

NDA की जीत के बाद आडवाणी से मिलने पहुंचे थे मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 जून को लोकसभा चुनाव में NDA की जीत के बाद लाल कृष्ण आडवाणी से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। इस दौरान उन्‍होंने आडवाणी को गुलदस्‍ता भेंट किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी NDA की जीत के बाद लाल कृष्ण आडवाणी से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी NDA की जीत के बाद लाल कृष्ण आडवाणी से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे।

भाजपा के फाउंडर मेंबर्स, 7वें उपप्रधानमंत्री रहे
आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को कराची में हुआ था। 2002 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 7वें उपप्रधानमंत्री रहे। इससे पहले 1998 से 2004 के बीच NDA सरकार में गृहमंत्री रहे। वे भाजपा के फाउंडर मेंबर्स में शामिल हैं।

आडवाणी की रथ यात्रा, कमान मोदी को मिली थी

आडवाणी ने 1987 में सोमनाथ से बिहार के समस्तीपुर तक की रथ यात्रा निकाली थी। उन्होंने इस यात्रा की जिम्मेदारी मोदी को सौंपी थी।

आडवाणी ने 1987 में सोमनाथ से बिहार के समस्तीपुर तक की रथ यात्रा निकाली थी। उन्होंने इस यात्रा की जिम्मेदारी मोदी को सौंपी थी।

राम मंदिर आंदोलन के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने 63 साल की उम्र में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली थी। 25 सितंबर 1990 से शुरू हुई इस यात्रा की कमान मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन से संभाली थी।

यह आडवाणी की रथ यात्रा का ही कमाल था कि 1984 में दो सीट जीतने वाली भाजपा को 1991 में 120 सीटें मिली। इतना ही नहीं आडवाणी ने पूरे देश में एक हिन्दूवादी नेता के तौर पर पहचान बनाई। इसके अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार जैसे राज्यों में भाजपा को नई पहचान मिली।

इस यात्रा के बाद आडवाणी पूरे देश में हिंदूवादी नेता के तौर पर स्थापित हुए थे, लेकिन वह अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाए थे। उन्हें बिहार के समस्तीपुर में 23 अक्टूबर 1990 को अरेस्ट कर लिया गया था।

कट्‌टर हिंदुत्व का चेहरा रहे आडवाणी

1. मंडल की काट में मंदिर मुद्दा लाए
आडवाणी राम जन्मभूमि आंदोलन में भाजपा का चेहरा बने। 80 के दशक में विश्व हिंदू परिषद ने ‘राम मंदिर’ निर्माण आंदोलन शुरू किया। 1991 का चुनाव देश की सियासत का टर्निंग पॉइंट रहा। भाजपा मंडल कमीशन की काट के रूप में मंदिर मुद्दा लेकर आई और रामरथ पर सवार होकर देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी।

2. आधा दर्जन यात्राएं निकालीं
आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक ‘रथ यात्रा’ की। उनके सियासी जीवन में राम रथ यात्रा, जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा, भारत सुरक्षा यात्रा, जनचेतना यात्रा शामिल हैं।

रथयात्रा के दौरान हमेशा मोदी, आडवाणी के साथ रहते थे। फोटो एक रेलवे स्टेशन का जहां आडवाणी कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे हैं।

रथयात्रा के दौरान हमेशा मोदी, आडवाणी के साथ रहते थे। फोटो एक रेलवे स्टेशन का जहां आडवाणी कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे हैं।

3. युवा नेताओं की फौज तैयार की
जनसंघ को भाजपा बनाने की यात्रा में सर्वाधिक योगदान लालकृष्ण आडवाणी का रहा। भाजपा की मौजूदा पीढ़ी के 90% से ज्यादा नेता आडवाणी ने ही तैयार किए हैं।

4. जब सबको हैरत में डाल दिया था
आडवाणी ने 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी को PM पद का दावेदार बताकर सबको हैरत में डाल दिया। आडवाणी हमेशा वाजपेयी के नंबर दो बने रहे।

5. आरोप लगे तो इस्तीफा दे दिया
आडवाणी का 50 साल से ज्यादा का सियासी जीवन बेदाग रहा। 1996 में आडवाणी सहित विपक्ष के बड़े नेताओं का हवाला कांड में नाम आया। तब आडवाणी ने इस्तीफा देकर कहा कि वे इसमें बेदाग निकलने के बाद ही चुनाव लड़ेंगे। 1996 में वे बेदाग साबित हुए।



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