Thursday, November 13, 2025

              बिहार का एग्जिट पोल ब्रेकिंग: 18 एजेंसियों के सर्वे में NDA की सरकार, 153 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत, महागठबंधन को 85 सीटें; PK की जन सुराज बेअसर रही

              बिहार: 18 एजेंसियों के पोल ऑफ पोल्स में बिहार में NDA को साफ बहुमत मिलता दिख रहा है। इनमें 243 सीटों की विधानसभा में NDA को 153 सीटें मिलने का अनुमान है। महागठबंधन को 85 सीटों पर सिमटता बताया जा रहा है, जबकि अन्य के खाते में 5 सीटें जा सकती हैं।

              पिछले चुनाव में NDA को 125, महागठबंधन को 110 और अन्य को 8 सीटें मिली थीं। यानी इस बार NDA को करीब 29 सीटों का फायदा, जबकि महागठबंधन को 27 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है।

              भाजपा को सबसे ज्यादा 75 सीटें मिलने का दावा है, जबकि कांग्रेस को 13 सीटें बताई जा रही हैं। पहली बार चुनाव में उतरी प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बेअसर नजर आ रही है। उसे 3-5 सीटें मिलने का अनुमान है।

              बिहार में 243 सीटों पर 2 फेज में चुनाव हुआ। पहले फेज में 121 सीटों पर 65% वोटिंग हुई है। वहीं दूसरी फेज में रिकॉर्ड 68.5% मतदान हुआ है। रिजल्ट 14 नवंबर को आएगा।

              पिछले 2 चुनावों में गलत साबित हुए थे एग्जिट पोल

              पिछले 3 विधानसभा चुनावों (2010, 2015, 2020) के एग्जिट पोल्स के रुझान बताते हैं कि सर्वे एजेंसियां वोटर्स का मूड ठीक से पकड़ नहीं पाईं। 2015 में ज्यादातर एग्जिट पोल्स ने NDA यानी भाजपा+ को बढ़त दी थी, जबकि नतीजों में महागठबंधन (RJD-JDU-कांग्रेस) ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया।

              वहीं, 2020 में तस्वीर उलटी रही। इस बार कई एजेंसियों ने महागठबंधन की जीत का अनुमान लगाया, लेकिन परिणामों में NDA ने 125 सीटें जीतकर सरकार बनाई। यानी ज्यादातर पोल्स फिर गलत साबित हुए।

              बिहार में कभी सटीक नहीं रहे एग्जिट पोल्स, 4 वजह

              बिहार में एग्जिट-पोल्स पूरी तरह भरोसेमंद कभी नहीं रहे। सीटों को लेकर हर बार इनका गणित बिगड़ा है। हालांकि कुछ एग्जिट पोल में वोट प्रतिशत अनुमान करीब रहा है, लेकिन कितनी सीटें किस गठबंधन को मिलेंगी, ये बताने में नाकाम रहे।

              • माइग्रेंट वोटर्स: बिहार से बाहर काम करने वाले लाखों प्रवासी वोट देने के बाद लौटने की जल्दबाजी में होते हैं। ऐसे में उन्हें एक्जिट पोल सैंपल में शामिल करना मुश्किल होता है।
              • जाति-आधारित वोटिंग पैटर्न: बिहार में जातीय समीकरण जटिल है, और एक्जिट पोलर्स अक्सर छोटे सैंपल साइज के कारण निचली जातियों के शिफ्ट को मिस कर देते हैं।
              • साइलेंट वोटर्स: बिहार में बड़ा वर्ग साइलेंट वोटर है। यह चुनाव से जुड़े सर्वे करने वालों के सामने अपनी राजनीतिक पसंद या मतदान के इरादे को नहीं बताता है।
              • महिला वोटर्स: बिहार में महिलाओं का वोटर टर्नआउट पुरुषों से अधिक (2020 में महिलाओं का टर्नआउट 59.69% जबकि पुरुषों का 54.45% था) रहा है। महिलाएं पुरुषों और युवाओं के मुकाबले अपना ओपिनियन खुलकर शेयर नहीं करती हैं। इससे सर्वे के अनुमान बिगड़ जाते हैं।

              एग्जिट पोल क्या होता है

              चुनाव के दौरान जनता का मूड जानने के लिए दो तरह के सर्वे किए जाते हैं। वोटिंग से पहले के सर्वे को ओपिनियन पोल कहते हैं। वोटिंग के दौरान होने वाले सर्वे को एग्जिट पोल कहा जाता है। आम तौर पर एग्जिट पोल के नतीजे आखिरी फेज की वोटिंग खत्म होने के एक घंटे बाद जारी किए जाते हैं।

              एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों के वॉलंटियर वोटिंग के दिन वोटिंग बूथ पर मौजूद होते हैं। ये वॉलंटियर वोट देकर लौट रहे लोगों से चुनाव से जुड़े सवाल पूछते हैं। वोटर्स के जवाब के आधार पर रिपोर्ट बनाई जाती है जिससे पता चले कि वोटर्स का रुझान किस तरफ ज्यादा है। इसी आधार पर चुनाव के नतीजों का अनुमान लगाया जाता है।

              बीते 18 महीने में 7 विधानसभा चुनाव, 6 में एग्जिट पोल गलत

              • महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ज्यादातर एजेंसियों के एग्जिट पोल नतीजों से काफी दूर रहे। राज्य में NDA को 235 और MVA को 49 सीटें मिलीं, लेकिन अधिकांश पोल ने NDA को उससे काफी कम और MVM को अधिक दिखाया। किसी भी एजेंसी का अनुमापन 40% के आस-पास भी नहीं पहुंच पाया। कुल मिलाकर महाराष्ट्र में एग्जिट पोल की सटीकता काफी कमजोर रही।
              • झारखंड विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल मिला जुला रहा। राज्य में एनडीए को 24 और इंडिया गठबंधन को 56 सीटें मिलीं, लेकिन केवल एक एजेंसी ही 90% से ज्यादा सटीक रही। बाकी अधिकांश पोल 20% से 60% की सटीकता के बीच ही रहे। कई सर्वे एनडीए को वास्तविकता से कहीं अधिक बढ़त देते दिखे। कुल मिलाकर झारखंड में एग्जिट पोल नतीजों का अनुमान लगाने में काफी हद तक संघर्ष करते दिखे।
              • हरियाणा विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल्स पूरी तरह चूक गए। अधिकांश सर्वे ने कांग्रेस को स्पष्ट बढ़त और भाजपा को 20–25 सीटों के आसपास दिखाया था, जबकि असल नतीजों में भाजपा ने 48 सीटें जीत लीं और कांग्रेस 37 पर सिमट गई। कुल मिलाकर हरियाणा में एग्जिट पोल्स की सटीकता बेहद कमजोर रही और वे जनता के वास्तविक मूड को भांपने में नाकाम साबित हुए।
              • दिल्ली विधानसभा चुनाव में टॉप 9 एजेंसियों के एग्जिट पोल 50% से ज्यादा सटीक रहे। 5 एजेंसियों का अनुमान 80% से ज्यादा सही रहा। वहीं, राजधानी में भाजपा की सरकार बनी, लगभग सभी एजेंसियों ने यही अनुमान लगाया था। कुल मिलाकर दिल्ली में एग्जिट पोल काफी हद तक वास्तविक नतीजों से मेल खाते दिखे।
              • जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल्स के अनुमान वास्तविक नतीजों से काफी अलग रहे। अधिकांश एजेंसियों ने भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बताया था और कांग्रेस–नेशनल कॉन्फ्रेंस (INDIA गठबंधन) को 35–40 सीटों तक सीमित दिखाया था। लेकिन नतीजों में तस्वीर उलट गई। INDIA गठबंधन ने 49 सीटों पर जीत दर्ज की। कुल मिलाकर एग्जिट पोल्स की सटीकता 60% से भी कम रही।
              • आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल्स का प्रदर्शन लगभग सभी प्रमुख एजेंसियों के लिए गलत साबित हुआ। अधिकांश सर्वे ने सत्तारूढ़ YSR कांग्रेस पार्टी (YSRCP) को भारी बहुमत का अनुमान दिया था। वास्तविक नतीजों में TDP+ ने 175 में से 164 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की, जबकि YSRCP केवल 11 सीटों पर सिमट गई। कुल मिलाकर, आंध्र प्रदेश में एग्जिट पोल्स की सटीकता बेहद कमजोर रही।
              • ओडिशा विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल्स के अनुमान वास्तविक नतीजों से बिल्कुल उलट साबित हुए। लगभग सभी प्रमुख सर्वे ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (BJD) को स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करते हुए 90–110 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। वास्तविक नतीजों में भाजपा ने 147 में से 78 सीटें जीतकर पहली बार बहुमत हासिल किया। कुल मिलाकर, ओडिशा में एग्जिट पोल्स की सटीकता कमजोर रही।

              NDA की तरफ से नीतीश सीएम फेस, क्या हैं इसके मायने

              नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं। जनता दल यूनाइटेड (JDU) के अध्यक्ष हैं। 2025 के विधानसभा चुनाव में NDA ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया है। नीतीश 2005 से अब तक 9 बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह देश के सबसे लंबे समय तक सीएम रहने वाले नेता हैं। बिहार की राजनीति में सबसे अनुभवी चेहरा हैं।

              नीतीश कुर्मी समुदाय (अन्य पिछड़ा वर्ग) से आते हैं। नीतीश को आगे रखकर NDA ने OBC + सवर्ण + महिला वोटर का संतुलन बनाना चाहा। नीतीश को CM चेहरा बनाकर BJP ने यह संदेश दिया कि अब NDA में टूट की कोई संभावना नहीं है।

              महागठबंधन से तेजस्वी यादव सीएम का चेहरा, क्या हैं इसके मायने

              महागठबंधन ने तेजस्वी को नई पीढ़ी और परिवर्तन का चेहरा बनाकर मैदान में उतारा है। तेजस्वी 35 साल से भी कम उम्र के हैं। उनका टारगेट युवा और फर्स्ट टाइम वोटर्स हैं। तेजस्वी को सीएम फेस बनाने का मतलब है कि लालू यादव की विरासत को आगे बढ़ाया जा रहा है।

              इससे महागठबंधन में नेतृत्व की एकजुटता का संदेश भी जाता है कांग्रेस और लेफ्ट ने भी RJD नेतृत्व को स्वीकार किया है। RJD का आधार परंपरागत रूप से Yadav + Muslim (MY) वोट बैंक रहा है। तेजस्वी इस गठबंधन को OBC, दलित और अल्पसंख्यक युवाओं तक फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।


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