BILASPUR: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर संभाग के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज सिम्स की अव्यवस्था को दुरुस्त करने में राज्य सरकार की तरफ से नियुक्त ओएसडी भी नाकाम साबित हो रहे हैं। गुरुवार को बिलासपुर हाईकोर्ट में जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान उन्होंने माना कि सिम्स के डॉक्टरों में वर्क कल्चर नहीं है। डॉक्टरों का ज्यादा ध्यान प्राइवेट प्रैक्टिस पर रहता है। मामले की अगली सुनवाई 6 दिसंबर को होगी।
दरअसल, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की डिवीजन बेंच ने सिम्स में अव्यवस्था पर सख्ती दिखाई है। उन्होंने सिम्स में अव्यवस्था और खामियों को दूर करने के लिए राज्य शासन को IAS अफसर को बतौर OSD नियुक्त करने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद राज्य सरकार ने IAS आर प्रसन्ना को सिम्स में OSD बनाया है। इसके बाद भी अव्यवस्थाएं दूर नहीं हो पा रही हैं।
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद अफसरों ने किया था सिम्स का निरीक्षण (फाइल फोटो)।
मीडिया रिपोर्ट्स को HC ने जनहित याचिका माना
दरअसल, सिम्स में मरीजों के इलाज की सही व्यवस्था नहीं होने पर प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट्स को हाईकोर्ट ने जनहित याचिका माना है। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि दूरदराज के क्षेत्रों से आने वाले मरीज कुछ दिन भर्ती होने के बाद या तो मजबूर होकर वापस लौट जाते हैं, या फिर सही इलाज के लिए किसी प्राइवेट अस्पताल में शिफ्ट हो जाते हैं।
सरकारी अस्पताल की इन अव्यवस्थाओं को दूर करने के लिए हाईकोर्ट ने जनहित याचिका के रूप में सुनवाई शुरू की है। जिसके बाद सिम्स परिसर में साफ-सफाई की व्यवस्था को दुरुस्त करने की कोशिश की गई। हालांकि मरीजों के इलाज की समुचित व्यवस्था अब भी नहीं हो पा रही है।
व्यवस्था बनाने में OSD भी नाकाम
गुरुवार को इस केस की सुनवाई के दौरान राज्य शासन के सीनियर IAS और सिम्स के OSD आर प्रसन्ना ने भी अपनी विस्तृत रिपोर्ट पेश की। इसमें उन्होंने माना है कि सिम्स के डॉक्टरों और स्टाफ में वर्क कल्चर नहीं है। इसे व्यवस्थित करने में अभी और समय लगेगा।
सिम्स की गंदगी को दूर कर साफ-सफाई कराई गई, लेकिन मरीजों को अब भी नहीं मिल रही सुविधाएं।
प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं सिम्स के डॉक्टर
जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने हाईकोर्ट से नियुक्त 3 कोर्ट कमिश्नर को सिम्स में OSD नियुक्त होने के बाद इंस्पेक्शन कर रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे। सिम्स में OSD की नियुक्ति हुए करीब 15 दिन हो गए हैं। जिसके बाद कोर्ट कमिश्नर ने सिम्स का दोबारा इंस्पेक्शन किया। इस दौरान उन्होंने मरीजों के साथ ही स्टाफ और दूसरे लोगों से बातचीत की। पता चला कि सिम्स के डॉक्टरों का ध्यान प्राइवेट प्रैक्टिस पर ज्यादा रहता है।
CIMS के नियम और प्रावधान स्पष्ट नहीं
रिपोर्ट देखकर हाईकोर्ट ने पूछा है कि डॉक्टरों को एनपीए तो मिलता होगा। इस पर जवाब मिला कि राज्य सरकार जिला अस्पताल के डॉक्टरों को एनपीए देती है, लेकिन सिम्स मेडिकल कॉलेज है, लिहाजा यहां के नियम और प्रावधान स्पष्ट नहीं हैं। कोर्ट ने ये भी पूछा है कि सिम्स की व्यवस्था को कैसे दुरुस्त किया जा सकता है, ताकि जरूरतमंदों को समय पर मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराई जा सके।