- रानी अवंती बाई के बलिदान को स्मरण करते हुए उनकी वीरता को किया नमन
- मंत्री श्री अकबर ने सामाजिक विकास के लिए लोधी समाज को 10 लाख रुपए देने की घोषणा की
कवर्धा: राज्य सरकार के वन, परिवहन, आवास, पर्यावरण, विधि विधायी एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर ने कवर्धा के हाईटेक बस स्टैंड के पास वीरांगना रानी अवंति बाई लोधी की भव्य प्रतिमा का अनावरण और लोधी चौक का विधिवत पूजा-अर्चना लोकार्पण किया। मंत्री श्री अकबर ने रानी अवंती बाई की प्रतिमा पर पुष्प माला अर्पित कर उनके बलिदान को स्मरण करते हुए उनकी वीरता को नमन किया। इस दौरान उन्होंने सामाजिक विकास के लिए लोधी समाज को 10 लाख रुपए देने की घोषणा की। इसके साथ ही वीरांगना रानी अवंति बाई लोधी की 3 प्रतीकात्मक स्वरूप को 10-10 हजार रुपए देने की घोषणा की।
मंत्री श्री अकबर ने वीरांगना रानी अवंति बाई लोधी की भव्य प्रतिमा के अनावरण और लोधी चौक के लोकार्पण पर सभी को बधाई और शुभकामनाएं दी। मंत्री श्री अकबर ने कहा कि बहुत लंबे समय से अंग्रेजो का राज इस देश में रहा है। आजादी की पहली लड़ाई सन 1857 में हुई। इस 1857 के ऐतिहासिक प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में उनका बड़ा योगदान रहा है। इसलिए उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में भी जाना जाता है। देश को आजाद कराने में उनके योगदान को पूरा देश याद करता है। उन्होंने कहा की यह लोधी समाज के लिए यह बहुत ही गौरांवित की बात है। नगर पालिका अध्यक्ष श्री ऋषि शर्मा ने कहा की वीरांगना रानी अवंति बाई लोधी का ऐतिहासिक स्थल का निर्माण किया गया है जहां आज उनकी भव्य प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस अवसर पर श्री नीलकंठ चन्द्रवंशी, जिला पंचायत उपाध्यक्ष प्रतिनिधि श्रीमती होरी साहू, नगर पालिका अध्यक्ष श्री ऋषि शर्मा, कृषि उपज मंडी अध्यक्ष श्री नीलकंठ साहू, उपाध्याक्ष श्री चोवाराम साहू, श्री मोहित महेश्वरी, श्री अशोक सिंह, श्री आकाश केशरवानी अन्य जनप्रतिनिधि उपस्थित थे।
अमर शहीद वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी 16 अगस्त 1861 को लोधी क्षत्रीय वंश में जन्मी। अमर शहीद वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी वर्तमान मध्य प्रदेश के सिवनी जिला मनकेहड़ी के जागीरदार श्री झुझार सिंह की पुत्री का विवाह रामगढ़ मण्डला के राजा विक्रमाजीत सिंह से हुआ। राजा विक्रमाजीत सिंह के निधन के समय उनके दोनों पुत्र अमर सिंह एवं शेर सिंह नाबालिक थे। अतः रानी ने राजकाज संभाला। राजकाज संभालते हुए 1857 के ऐतिहासिक प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया तथा कई बार उन्हें परास्त किया। अंत में अंग्रेज कैप्टन वाडिगटन ने देश के गद्दारों के साथ मिलकर रानी को चारों ओर से घेर लिया, लेकिन रानी ने बंदी बनने के बजाए 20 मार्च 1858 को कटार से देशहित में आत्म बलिदान कर दिया और अमरता को प्राप्त हो गई।