गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: जिले में एक यज्ञशाला में भालू के पहुंचने से वहां हलचल मच गई। मरवाही के नरौर गांव में गौठान के पास आयोजक नरेंद्र प्रताप सिंह और ग्रामीणों के द्वारा रुद्र यज्ञ कराया जा रहा है। ये यज्ञ 1 जनवरी से 9 जनवरी तक आयोजित किया गया है।
यज्ञशाला में मौजूद लोग उस वक्त हैरान रह गए, जब एक विशाल भालू यहां आया और प्रसाद खाने लगा। इसके बाद ग्रामीणों ने उसके लिए और प्रसाद पंडाल की दूसरी छोर पर रख दिया। यज्ञशाला पहुंचे भालू ने भी पूरा प्रसाद खाया और बिना किसी को नुकसान पहुंचाए वापस जंगल की ओर चला गया। लोगों ने भालू के प्रसाद खाते हुए वीडियो भी बना लिया, जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।
यज्ञशाला में पूजा करते लोग।
इससे पहले 4 जनवरी को नरौर गांव से ही सटे झिरनापोंड़ी गांव में एक सफेद भालू काले भालू के साथ नजर आया था। लगातार मरवाही में भालू जंगल से सटे गांवों की सीमा में पहुंच रहे हैं, जबकि वन विभाग केवल लोगों से सतर्कता बरतने का बोर्ड लगाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ले रहे हैं।
महासमुंद के चंडी मंदिर में भी नवरात्र में आया था भालू
इससे पहले महासमुंद जिले के चंडी मंदिर में भी नवरात्र के दिनों में जंगली भालू आता था। वो यहां मां की आरती में शामिल होता था और वापस जंगल में चला जाता था। महासमुंद से 35 किलोमीटर दूर पटेवा और झलप के बीच NH-53 स्थित मुंगईमाता पहाड़ी के नीचे भी रोज भालू का एक परिवार आता था। एक नर, एक मादा और दो बच्चे समेत 4 भालू यहां आते हैं, जिन्हें लोग बिस्किट और नारियल खिलाते हैं। मुंगईमाता मंदिर-बावनकेरा में पूजा करने वाले बताते हैं कि यहां पर भालू कब से आ रहे हैं, इसकी सही-सही जानकारी किसी को नहीं है। कोई सात-आठ साल बताते हैं तो कोई बीस साल से यहां भालुओं के आने की बात कहते हैं।
भालू प्रसाद खाते हुए।
महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव में भी स्थित माता चंडी के मंदिर में अक्सर भालू आते रहते हैं। पहाड़ी पर स्थित माता चंडी का यह मंदिर 150 साल पुराना है। माता चंडी के बेहद खास भक्तों में भालू भी शामिल हैं। इस मंदिर माता चंडी के दर्शन के लिए भालू आते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि भालू किसी को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। मंदिर में भालू आते हैं और दर्शन करने के बाद प्रसाद लेकर चले जाते हैं।
लोगों ने बनाया वीडियो।
आरती के समय आते हैं भालू
बताया जाता है कि आरती के समय भालू मंदिर में पहुंचते हैं और मूर्ति की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद वह प्रसाद लेते हैं। सबसे हैरानी वाली बात यह है कि कभी-कभी पुजारी अपने हाथों से उन्हें प्रसाद खिलाते हैं। मंदिर में जाने वाले लोगों का कहना है कि मंदिर में आने भालू पालतू लगते हैं। वह बिल्कुल सीधे दिखते हैं और प्रसाद लेकर जंगल में चले जाते हैं। श्रद्धालुओं ने बताया कि भालू देवी के भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि माता की कृपा से यहां भालू आते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। हाथ से प्रसाद खिलाने के बावजूद अब तक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। हालांकि एहतियात के तौर पर यहां वन विभाग ने तार जाली लगा रखा कि हिंसक श्रेणी के वन्यजीव ये भालू किसी को नुकसान न पहुंचाएं।