बिलासपुर// कोयले की ढुलाई के लिए ही सही, छत्तीसगढ़ में दशकों से अनछुए इलाके में रेल पटरियां पहुंच गई हैं। नया ट्रैक, नए स्टेशन, फ्लाईओवर और अंडरब्रिज…दर्जनों गांवों-कस्बों और शहरों को जोड़ती इस लाइन के जरिए यह सब हो रही है। वह भी खरसिया से धरमजयगढ़ के बीच 74 किमी की दूरी में। ब्रांच लाइनों को मिलाकर कॉरिडोर का 80 फीसदी काम पूरा हुआ है 125 किमी रेल लाइन बिछ गई है।
इस प्रोजेक्ट में सर्वाधिक 64 फीसदी हिस्सेदारी एसईसीएल की है। वह छत्तीसगढ़ ईस्ट रेलवे (सीईआरएल) और छत्तीसगढ़ ईस्ट-वेस्ट रेलवे (सीईडब्ल्यूआरएल) के काम करवा रही है। इसका मकसद कोयले की जरूरत पूरी करने के साथ-साथ दूरस्थ इलाकों को मुख्य धारा से जोड़ना भी है।
रेलवे कॉरिडोर का यह प्रोजेक्ट दिसंबर 2023 तक पूरा होने की संभावना है। उम्मीद है। फरवरी में घरघोड़ा से भालुमुड़ा तक 13.8 किमी लाइन की कमीशनिंग हुई। कुछ जगहों से कोयला सप्लाई का काम शुरू भी हो गया है।
इससे पहले, कुछ जगह से कोयले की सप्लाई भी शुरू कर दी गई है। उधर, धरमजयगढ़-उरगा तक फेस-2 के प्रोजेक्ट को स्टेज-1 का फॉरेस्ट क्लीयरेंस इस महीने मिल गया है। अप्रैल में रेलवे ट्रैक, ब्रिज आदि के टेंडर जारी किए जाएंगे।
दोनों लाइनों का काम पूरा होने के बाद इस इलाके का कोयला बगैर बिलासपुर आए बगैर गुड्स ट्रेनों से उरगा-पेंड्रारोड होते हुए प्रदेश से बाहर भेजा जाएगा। खास बात ये है कि जहां तक यह लाइन जा रही है, उत्तरी छत्तीसगढ़ के उन जंगलों में आजादी के बाद से सिर्फ एक सड़क ही है, रेल लाइन तो दूर की बात है।
यहां के लोग अब भी बिलासपुर या राजधानी रायपुर तक जाने के लिए पहले पगडंडियों से कई किमी जंगल पार करते हैं। ईस्ट रेलवे कॉरिडोर और ईस्ट-वेस्ट रेल कॉरिडोर प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ऐसा नहीं होगा। प्रोजेक्ट पर काम वर्ष 2012 में एसईसीएल, इरकॉन और छत्तीसगढ़ सरकार की भागीदारी से शुरू हुआ था।
हाथियों की सुरक्षा का ध्यान
धरमजयगढ़ समेत आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में हाथी हैं। यहां कोयला खदाने हैं, इसलिए यह भी देखा जा रहा है कि मालगाड़ियां चलने पर हाथियों को नुकसान न हो। इसीलिए इस लाइन पर पांच एलीफेंट पास बनाए गए हैं। यानी हाथियों के ट्रैक की दूसरी तरफ आने-जाने के लिए काफी चौड़े ओवर और अंडरब्रिज। ट्रेन चलाने वाले ड्राइवरों और प्रोजेक्ट में काम कर रहे लोगों को हाथी दिखने लगे हैं, लेकिन ट्रैक पर नहीं आते।
तीसरे बड़े कोल रिजर्व में नई पटरियों से पहुंचा भास्कर
रायगढ़-मांड क्षेत्र में देश का तीसरा बड़ा कोल रिजर्व मिला है। आने वाले दिनों में देश की कोयले की जरूरत इस क्षेत्र से पूरी होगी। इसके लिए ही रेल कॉरिडोर का काम शुरू किया गया है। भास्कर टीम इसका जायजा लेने बिलासपुर से खरसिया पहुंची। वहां से धर्मजयगढ़ तक 74 किमी ट्रैक (शाखा लाइनों को मिलाकर 125 किमी) बिछ गया है।
खरसिया से टीम ट्रैक वैगन कार से नई पटरियों से होकर 10 किमी दूर गुरदा स्टेशन और यहां से करीब साढ़े 7 किमी आगे छाल स्टेशन पहुंची। वहां से घरघोड़ा स्टेशन भी गई, जहां मुख्य कोयला लोडिंग पाइंट बन चुका है। यहां से 14 किमी आगे भालूमुड़ा और 28 किमी आगे पेल्मा तक लाइन विकसित की जा रही है। खरसिया से धरमजयगढ़ तक ऐसे 7 स्टेशन हैं, जहां के लोगों को इस लाइन पर पैसेंजर-एक्सप्रेस चलने का इंतजार है।
खदानों को जोड़ने बन रही फीडर लाइन
घरघोड़ा से कोयला लोड करने का काम शुरू हो चुका है। पेल्मा क्षेत्र की कई खदानों का कोयला घरघोड़ा स्टेशन से ही देश के विभिन्न राज्यों में भेजा जाएगा। हर स्टेशन के पास साइडिंग बन रही है। आधुनिक लोडिंग मशीनें लगाई जा रहीं हैं। एसईसीएल के सीएमडी प्रेमसागर मिश्रा खुद इस प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। खदानों को जोड़ने के लिए स्पर लाइन डेवलप की जा रही है, जो कई खदानों को जोड़ेगी।
छाल के करीब साइलो मई तक
छाल और बरौद की ओर फीडर लाइन सीएचपी यानी कोल हैंडलिंग प्लांट तैयार हो रहा है। इसे साइलो कहा जाता है। ट्रक से अनलोड हुआ कोयला साइलो में और फिर सीधे रैक में लोड होता है। साइलो को मई तक पूरा करने की तैयारी है।
ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर का काम जल्द
इधर, ईस्ट-वेस्ट रेल प्रोजेक्ट का काम भी जल्द पूरा होगा। गेवरा रोड से पेंड्रारोड तक 191 किमी की रेल लाइन बिछाई जानी है। इसमें सुराकछार, कटघोरा रोड, बिजहारा, पुटुआ, मतीन, सेन्दुरगढ़, पुटीपखना, भाडी और धनगवां में नए स्टेशन बनाए जाएंगे।
प्रोजेक्ट- एक नजर में
1. ईस्ट रेल कॉरिडोर
- ईस्ट रेल कॉरिडोर दो चरणों में पूरा किया जा रहा है।
- पहले खरसिया-धर्मजयगढ़ तक ट्रैक बिछ रहा है।
- इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 2055 करोड़ रुपए है।
2. ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर
- धरमजयगढ़ से उरगा 62 किमी लाइन बिछाई जाएगी।
- 1686 करोड़ रु. लागत। 8 स्टेशन विकसित होंगे।
- गेवरारोड-पेंड्रारोड तक ट्रैक, 12 स्टेशन में 4970 करोड़।
कोयला उत्पादन में मिलेगी मदद
“सीईआरएल-सीईडब्ल्यूआरएल प्रोजेक्ट से कोल इंडिया के 1 बिलियन टन कोयला उत्पादन में मदद मिलेगी। सीईआरएल का मांड-रायगढ़ कोलफील्ड्स से कोयला प्रोडक्शन में अहम रोल होगा।” – डॉ. प्रेमसागर मिश्रा, सीएमडी, एसईसीएल