पेरिस: फ्रांस के पीएम सेबेस्टियन लेकोर्नू ने महज 27 दिन में इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने 9 सितंबर को प्रधानमंत्री का पद संभाला था, 6 अक्टूबर को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति मैक्रों ने उनके इस्तीफे को स्वीकर कर लिया है।
पीएम लेकोर्नू ने रविवार को नए मंत्रीमंडल का ऐलान किया था लेकिन 12 घंटे बाद ही उन्होंने इस्तीफा देकर सभी को हैरान कर दिया। लेकोर्नू 13 महीने में देश के चौथे पीएम थे। पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू ने विश्वास मत न मिलने की वजह से सितंबर में इस्तीफा दिया था।
लेकोर्नू सिर्फ 39 साल के हैं और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के करीबी सहयोगी माने जाते हैं। वह 2022 में मैक्रों के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद से 5वें प्रधानमंत्री थे और पिछले साल संसद भंग होने के बाद तीसरे।
संसद में किसी पार्टी को बहुमत नहीं, विपक्ष ने मैक्रों से इस्तीफा मांगा
लेकोर्नू के इस्तीफा के कारण फ्रांस की राजनीतिक में गहरा संकट उत्पन्न हो गया है। संसद में किसी भी पार्टी को बहुमत न होने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है।
दक्षिणपंथी नेता मरीन ली पेन और अन्य विपक्षी नेताओं ने नए संसदीय चुनाव की मांग की है ताकि स्थिर सरकार बन सकें। ली पेन ने कहा कि मैक्रों का इस्तीफा देना बुद्धिमानी होगी। हालांकि मैक्रों पहले ही इससे इनकार कर चुके हैं।
कैबिनेट बनाने से नाराज हुई पार्टियां
फिलहाल लेकोर्नू के इस्तीफे के पीछे उनके नए कैबिनेट बनाने को लेकर हुई नाराजगी मानी जा रही है। मैक्रों की सहयोगी पार्टी लेस रिपब्लिकेंस ने कहा कि नई कैबिनेट में कुछ भी बदलाव नहीं है, जबकि लेकोर्नू ने कहा था कि वे नई शुरूआत करेंगे।
रविवार शाम को जब कैबिनेट की घोषणा हुई, तो हर राजनीतिक दल ने इसकी आलोचना की। सबसे ज्यादा विवाद तब हुआ जब ब्रूनो ले मायेर जो सात साल तक मैक्रों के इकोनॉमी मिनिस्टर रह चुके थे, को रक्षा मंत्री बना दिया गया।
अब स्थिति यह है कि फ्रांस की राजनीति पूरी तरह से अस्थिर हो चुकी है। अतिदक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली (RN), जिसकी नेता मरीन ले पेन हैं, ने राष्ट्रपति मैक्रों से संसद भंग करने और नए चुनाव कराने की मांग की है। वहीं वामपंथी पार्टी फ्रांस अनबोड (LFI) ने कहा है कि मैक्रों को खुद ही इस्तीफा दे देना चाहिए।
फ्रांस में बार-बार इस्तीफे क्यों दे रहे PM
फ्रांस में बार-बार प्रधानमंत्री बदलने की वजह के पीछे 2024 का आम चुनाव है। तब फ्रांस की संसद 3 हिस्से में बंट गई थी। वामपंथी, अति दक्षिणपंथी और मैक्रों का सेंटर-दक्षिणपंथी गठबंधन। किसी के पास भी स्पष्ट बहुमत नहीं था, इसलिए किसी भी नीति या बजट को पारित कराना बेहद मुश्किल हो गया।
लेकोर्नू को एक ऐसा बजट पारित कराना था जिससे सरकारी खर्च घटाया जा सके और घाटे को कंट्रोल किया जा सके, लेकिन यह काम उनके पहले के दो प्रधानमंत्रियों फ्रांस्वा बायरू और मिशेल बार्नियर भी नहीं कर पाए थे। संसद में इस बात को लेकर हर गठबंधन की अलग-अलग राय थी। इसलिए इस पर कोई समझौता ही नहीं हो पाया।
अब मैक्रों के सामने सिर्फ 3 विकल्प
अब मैक्रों के सामने तीन विकल्प हैं, लेकिन तीनों ही मुश्किल हैं। पहला विकल्प है कि वह नया प्रधानमंत्री नियुक्त करें। लेकिन अब यह आसान नहीं है। उनके अपने खेमे से कोई नेता लेना मुश्किल है।
अगर वह किसी वामपंथी को चुनते हैं तो उनके पेंशन सुधार जैसी नीतियां खतरे में पड़ सकती हैं। वहीं अगर वे किसी अति दक्षिणपंथी नेता को चुनते हैं तो वामपंथी दल भड़क जाएंगे। कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि अब मैक्रों को किसी ‘टेक्नोक्रेट’ यानी किसी गैर-दलीय और पेशेवर व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाना चाहिए जो राजनीतिक झगड़ों से ऊपर रहकर काम कर सके।
दूसरा विकल्प है संसद को भंग करके दोबारा चुनाव कराना। लेकिन सर्वेक्षण दिखा रहे हैं कि नए चुनावों में भी वही स्थिति बन सकती है, या फिर अति दक्षिणपंथी पार्टी RN सत्ता में आ सकती है, जो मैक्रों के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक हार होगी।
तीसरा विकल्प उनका खुद का इस्तीफा है। लेकिन मैक्रों कई बार कह चुके हैं कि वह 2027 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले पद नहीं छोड़ेंगे। यही चुनाव फ्रांस के भविष्य की दिशा तय कर सकता है, क्योंकि इस बार मरीन ली पेन के सत्ता में आने की संभावना सबसे ज्यादा बताई जा रही है।

(Bureau Chief, Korba)