बिलासपुर: हाई कोर्ट में अब हिंदी जगह बनाने लगी है। यहां प्रैक्टिस करने वाले वकील लंबे समय से हिंदी में याचिकाएं लगाने के साथ बहस भी करते आ रहे हैं, लेकिन हिंदी में अब तक एकाध आदेश- फैसले ही हुए थे, लेकिन अब तकरीबन सभी जज हिंदी में निर्णय देने लगे हैं, इन फैसलों का अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस साल अब तक हिंदी में 38 निर्णय दिए जा चुके हैं।
संविधान के अनुच्छेद 348(1) के मुताबिक जब तक संसद किसी अन्य व्यवस्था को न अपनाए, तब तक सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कार्रवाई सिर्फ अंग्रेजी भाषा में होगी। वहीं, अनुच्छेद 348(2) के मुताबिक किसी राज्य के राज्यपाल, राष्ट्रपति की अनुमति से हिंदी या दूसरी भाषा को हाई कोर्ट की कार्रवाई की भाषा का दर्जा दे सकते हैं।
यानी जब तक संसद इस संबंध में कोई नया कानून नहीं बनाती, तब तक सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की भाषा अंग्रेजी ही बनी रहेगी। न्यायपालिका की भाषा को बदलने का अधिकार खुद अदालतों को नहीं, बल्कि विधायिका और कार्यपालिका के पास है। संवैधानिक प्रावधान होने के बाद भी अब सुप्रीम कोर्ट के साथ सभी हाई कोर्ट में अब हिंदी में निर्णय देने की शुरुआत हो चुकी है।
अनुवाद के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस टूल का उपयोग
हिंदी में उपलब्ध कराए गए अनुवाद के साथ हाई कोर्ट ने डिस्क्लेमर भी दिया है। इसमें साफ कहा गया है कि पक्षकार हिंदी अनुवाद का उपयोग समझने के लिए ही कर सकते हैं। साथ ही बताया गया है कि अनुवाद के लिए एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस टूल का उपयोग किया गया है। निर्णय का अंग्रेजी कॉपी भी प्रमाणित
माना जाएगा।
निर्णय को समझने के लिए ही पक्षकार कर सकते हैं उपयोग
हालांकि हाई कोर्ट में मामलों पर मूल निर्णय अंग्रेजी में ही दिए जा रहे हैं। हिंदी में इसका अनुवाद पक्षकारों की सुविधा के लिए उपलब्ध करवाया जा रहा है। पक्षकार हिंदी अनुवाद का उपयोग सिर्फ अपने मामलों में होने वाले निर्णय को समझने के लिए ही कर सकते हैं, इसका दूसरा उपयोग यानी अपील आदि में नहीं किया जा सकता।
तत्कालीन चीफ जस्टिस ने की थी पहल
दरअसल, हिंदी में सुनवाई और आदेश- निर्णय की मांग वकील लंबे समय से करते आ रहे हैं। तत्कालीन चीफ जस्टिस यतींद्र सिंह ने हाई कोर्ट में हिंदी में आदेश- फैसले देने की पहल की थी। वे अपने कार्यकाल में दिन का पहला आदेश हिंदी में ही लिखवाया करते थे।
