कोरबा : साऊथ ईस्टर्न काेल फिल्ड लिमिटेड (एसईसीएल) की कुसमुंडा खदान के ओव्हर बर्डन क्षेत्र का निरीक्षण करने गए छह सदस्यीय टीम के अहम सदस्य जितेंद्र नागरकर की जल सैलाब में बह जाने से मौत हो गई। इस मामले में चिंता व्यक्त करते हुए पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने एसईसीएल के सीएमडी को पत्र लिखा है। जिसमें उन्होने प्रबंधन के सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं।
पूर्व राजस्व मंत्री अग्रवाल ने कहा है कि खदान की सुरक्षा में लगातार लापरवाही बरती जा रही है। कोल इंडिया द्वारा संचालित विभिन्न कोयला खदानों के लिए सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम पर प्रतिवर्ष लगभग 150 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं। जिसमें से एसईसीएल प्रबंधन द्वारा कोरबा में संचालित देश की सर्वाधिक कोयला उत्पादक महत्वपूर्ण खदानों कुसमुंडा, गेवरा व दीपका को लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा प्रदान किया जाता है। इतनी बड़ी धनराशि मिलने के बाद भी खदानों की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलती अभी हाल की घटना है जिसमें प्रबंधन की लापरवाहियों की कीमत सहायक प्रबंधक जितेन्द्र नागरकर को अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी।
आश्चर्य है कि इस हादसे से लगभग 15 दिनों पूर्व कुसमुंडा खदान का निरीक्षण करने सीएमडी स्वयं आए थे और पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने अधिकारियों को कड़े निर्देश भी दिए थे बावजूद इसके इस तरह का हादसा हुआ जो अधिकारियों की लापरवाहियों को उजागर करता है। इस तरह के लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए।पत्र में आगे लिखा कि कुसमुण्डा खदान क्षेत्र में प्रबंधन की लापरवाही के कारण हुई इस दुर्घटना से चार दिन पहले ग्राम भठोरा में भी इसी तरह की घटना हुई थी जो स्वतः खदानों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवालिया निशान लगाता है। लेकिन इस घटना से भी प्रबंधन ने कोई सबक नहीं लिया।
सुखद संयोग यह रहा कि इस घटना में जनहानि नहीं हुई लेकिन सुरक्षा व्यवस्था पर अनेक सवालिया निशान जरूर बनते हैं। प्रबंधन की घनघोर लापरवाहियों के हवाले से अग्रवाल ने सीएमडी को लिखे पत्र से उम्मीद जताई है कि लोगों के जीवन से खिलवाड़ पर रोक लगाते हुए सुरक्षा व्यवस्था को प्राथमिकता से सुनिश्चित करने की दिशा में एसईसीएल प्रबंधन ठोस कदम उठाएगा।
ह्यूम पाइप जाम क्यों हुआ, जिम्मेदार कौन
कुसमुंडा की घटना के संबंध में एसईसीएल प्रबंधन ने विज्ञप्ति जारी करते हुए स्वीकार किया है कि ह्यूम पाइप के जाम हो जाने से जल निकासी अवरुद्ध होने की वजह से हादसा हुआ। सवाल उठता है कि केवल ह्यूम पाइप लगाकर प्रबंधन अपनी जिम्मेदारियों से कैसे बच सकता है। ह्यूम पाइप जाम न होने पाए और जल निकासी अवरुद्ध न हो इसके लिए प्रबंधन ने क्या उपाय किए। इन दोनों घटनाओं के बाद जबकि मानसून का एक लम्बा समय अभी बाकी है, खदानों में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी इसके लिए प्रबंधन क्या ठोस कदम उठा रही है यह स्पष्ट नहीं है।
साफ-सफाई का भी अभाव, नालियां जाम
कालोनियों में साफ-सफाई का आलम यह है कि सभी तरफ कचरों के ढ़ेर दिखाई देंगे। नालियां जाम हैं जिनकी वजह से मच्छरों का आतंक है, सड़कों दशा ऐसी हैं कि बरसात के दिनों में गडढ़ों में पानी भरा होने से पता ही नहीं चलेगा कि कहां कितना गड्ढ़ा है और दुपहिया वाहन चालक अक्सर गिरते रहते हैं। छतों से टपकने वाले पानी से बचाव के लिए कर्मचारी पन्नियों का सहारा लेते हैं। कपड़े खराब न हों इसके लिए भी वे दीवारों में पन्नियां लगाकर रखते हैं। ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए बनाई गई सीढ़ियों की स्थिति ऐसी है कि उस पर चलते हुए डर लगता है कि कब गिर जाए। बिजली आपूर्ति की स्थिति तो ऐसी है कि दिन हो या रात, बिजली सप्लाई कब तक रहेगी कोई नहीं बता सकता।
(Bureau Chief, Korba)