कोरबा। हाथियों की संख्या बढ़ने के साथ हाथी मानव द्वंद्व भी बढ़ रहा है। कोरबी के निकट जंगल में हाथियों के डेरा डालने से वन विभाग की ओर से ग्रामीणों को सतत सतर्क किया जा रहा है। जिले के वनांचल क्षेत्र में हाथी-मानव द्वंद्व थमने का नाम नहीं ले रहा है।
वर्ष दर वर्ष बढ़ती हाथियों संख्या, वन क्षेत्र की जमीन पर लोगों का कब्जा
अंबिकापुर के घने जंगल से कटघोरा व कोरबा वन मंडल होते हुए धरमजयगढ़ वन क्षेत्र तक हाथियों का कारिडोर कई वर्षों से है। अभी भी हाथी इसी मार्ग से आना- जाना करते हैं। विगत पांच वर्षों से हाथियों ने पसान क्षेत्र को अपना स्थाई ठिकाना बनाना शुरू किया है। इस दौरान क्षेत्र में इनकी संख्या 34 थी। वर्ष दर वर्ष संख्या बढ़ती जा रही है।
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई व वन क्षेत्र की जमीन पर लोगों का बढ़ते बेजा कब्जा से हाथियों का विचरण क्षेत्र अब छोटा पड़ने लगा है। चार, साल, गुंजा के छाल व बांस हाथियों का प्रिय भोजन है। वनक्षेत्र में चारे की सुविधा नहीं होने से दल रिहायशी क्षेत्र की ओर कूच कर रहे हैं।
50 हाथियों के एक ही स्थान में विचरण कटघोरा वनमंडल का कोरबी क्षेत्र के लोग इन दिनों दहशत में हैं। इस दल ने चार दिन के भीतर 43 एकड़ फसल को नुकसान पहुंचाया है। विभागीय अधिकारियों की माने तो हाथी रात के समय अलग-अलग हो जाते हैं, दिन होते ही फिर एक साथ दल में शामिल हो जाते हैं।
हाथियों के गांव के करीब आगमन से डर, चोटिया में चक्का जाम
हाथी से डरे ग्रामीणों ने शुक्रवार को चोटिया चौक में चक्का जाम कर दिया था। गामीणों ने चेतावनी दी है कि समस्या का निदान नहीं हुआ तो पखवाड़े भर बाद फिर से प्रदर्शन करेंगे। माह भर में जा चुकी पांच की जानहाथी मानव द्वंद्व के बीच जनहानि का आंकड़ा भी बढ़ते जा रहा है।
दल से बिछड़े हाथी ने ले ली पांच की जान
पिछले माह के भीतर अकेले एक लोनर ने पांच लोगाें की जान ले ली है। वन क्षेत्र से भटक कर रिहायशी क्षेत्र में लोनर (दल से बिछड़ा हाथी) के आने से यह स्थिति निर्मित हुई है। जानमाल की क्षति के अलावा दल का विचरण क्षेत्र भी बढ़ रहा है। कोरबा वन क्षेत्र से निकलकर हाथियों के दल का जांजगीर व बिलासपुर क्षेत्र के अलावा कालरी क्षेत्र तक तक पहुंचकर उत्पात मचाना आने वाले समय के भयावह स्थिति का संकेत है।
अभयारण्य में नहीं प्रगति
98 करोड़ का हाथी अभयारण्य में नहीं प्रगति कोरबा व कटघोरा वन मंडल में बढ़ते हाथी प्रभाव को देखते हुए भाजपा के शासन काल में वर्ष 2014 में 98 करोड़ के हाथी अभयारण्य को सरकार हरी झंडी दी थी। योजना का उद्देश्य हाथियों के लिए वन क्षेत्र में उपयुक्त विचरण क्षेत्र विकसित करने के साथ हाथी मानव-द्वंद्व को रोकना था। वन क्षेत्र के नाम पर विकसित करने के नाम पर जंगल तो समृद्ध नहीं हुआ बल्कि जल संरक्षण और पौधारोपण के नाम पर विभागीय अधिकारियों ने सरकारी धन का बंदरबाट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कटघोरा वनमंंडल में एक साथ 50 हाथी कोरबी के निकट जंगल में विचरण कर रहे हैं। दो नन्हे हाथी के आने से दल संवेदनशील हो गया है। दल ने पांच दिनों में 43 एकड़ फसल को नुकसान पहुंचाया है। जिसका मुआवजा प्रकरण बनाया जा रहा है। ग्रामीणों को प्रभावित क्षेत्र की ओर न जाने के लिए सतर्क किया जा रहा है।अभिषेक दुबे, वन परिक्षेत्राधिकारी, केंदई
(Bureau Chief, Korba)