Saturday, September 28, 2024




Homeकवर्धाछत्तीसगढ़ का कोसमी... विधवाओं की तरह रहती हैं सुहागन बहुएं : देवी...

छत्तीसगढ़ का कोसमी… विधवाओं की तरह रहती हैं सुहागन बहुएं : देवी के अभिशाप को निभा रहीं पुजारी परिवार की 7 पीढ़ियां; संजने-संवरने की है मनाही

गरियाबंद: ऊपर दिख रहा वीडियो छत्तीसगढ़ में गरियाबंद जिले के कोसमी गांव का है। विधवा रूप में दिख रही महिलाएं गांव के पुजारी परिवार की बहुएं हैं। इन महिलाओं को सुहागन की तरह दिखने की मनाही है। सुहागन बहुएं कांसे की और विधावाएं चांदी की क्रैक चूड़ी पहनती हैं। परिवार इसकी वजह देवी का अभिशाप मानता है, जिसे सात पीढ़ियों से निभा रहे हैं।

पुजारी परिवार की 7वीं पीढ़ी की बहू कमली बाई बताती हैं, ‘जब 37 साल पहले शादी होकर ससुराल आई तो अनजाने में माथे पर सिंदूर और टीका लगा लिया। तब सिर में बहुत दर्द हुआ। गांव से बाहर मायके जाकर रंगीन कपड़े पहनने की कोशिश की तो कमर दर्द और अन्य शारीरिक कष्ट होने लगे।’

परिवार के पढ़े-लिखे सदस्य और नई पीढ़ी इस प्रथा को बदलना चाहती हैं, लेकिन आस्था आड़े आ जाता है। इसे इन्होंने अंध-विश्वास नहीं बल्कि पूर्वजों से मिले आशीर्वाद मानकर अब आत्मसात कर लिया है। शादी के मंडप से बिना सिंगार के शुरू होकर सफेद लिबास पुजारी परिवार के बहुओं के अंतिम सांस निकलने तक बना रहता है।

पुजारी परिवार की अन्य बहुएं कहती हैं कि, अंगूठी बिछिया पहना तो उंगलियों में सूजन आ गई थी।

पुजारी परिवार की अन्य बहुएं कहती हैं कि, अंगूठी बिछिया पहना तो उंगलियों में सूजन आ गई थी।

गरियाबंद के कोसमी गांव में देवसिंह का मकान।

गरियाबंद के कोसमी गांव में देवसिंह का मकान।

पुजारी परिवार की 5वीं पीढ़ी में 6 और 7वीं में 10 बहुएं

दरअसल, ध्रुव आदिवासी परिवार ग्राम देवी का पुजारी भी है। उनके यहां बहुओं को सुहागन की तरह दिखने, सजने-संवरने पर मनाही है। कांसे की चूड़ी और गले में मंगल-सूत्र जरूर पहन सकती हैं। बाकी सभी लिबास विधवा की तरह होता है।

पुजारी परिवार में कुल 32 सदस्य हैं। परिवार में 8वीं पीढ़ी की एक विधवा मां हैं और 5वीं पीढ़ी की 6 बहुएं हैं, जिनमें 3 विधवा हैं। इसके अलावा 7वीं पीढ़ी की 10 बहुएं भी हैं, जो पिछले परिवार के इस रिवाज का पालन करती आ रही हैं।

एक साथ बैठी विधवा और सुहागन को पहचानना मुश्किल।

एक साथ बैठी विधवा और सुहागन को पहचानना मुश्किल।

अब जानिए इस अभिशाप के पीछे की कहानी…

पुजारी के उत्तराधिकारी फिरत राम ध्रुव बताते हैं कि, उन्होंने अपने पिता देवसिंह से सुना था कि परदादा नागेंद्र शाह से पहले उनके पूर्वज ग्राम के पुजारी हुआ करते थे। उनके किसानी काम के बाद, देवी उन्हें महिला के वेश में आकर रोजाना खाना खिलाया करती थी।

जब कई दिनों तक भोजन घर वापस आने लगा, तो पुजारिन ने इसका रहस्य जानने का प्रयास किया। वो खेत में जाकर छिप गईं। पुजारी के भोजन के समय एक महिला खान लेकर पहुंची। उसी के हाथ का भोजन पुजारी करने लगे थे। तभी पुजारिन पहुंच गई और उन्होंने महिला की पिटाई शुरू कर दी।

इससे देवी आक्रोशित हो गईं। उन्होंने शाप दिया कि परिवार की बहू सुहागन की तरह दिखी तो शारीरिक कष्ट झेलेंगे। तब से लेकर आज 7वीं पीढ़ी तक परिवार की बहुएं विधवा के लिबास में रहती हैं। पुजारी ने बताया कि, वे धूमादेवी हैं, जिन्हें हम पीढ़ियों से बड़ी माई के रूप में पूजते आ रहे हैं।

यह पूरा मामला कोसमी गांव का है, जहां पुजारी परिवार रहता है।

यह पूरा मामला कोसमी गांव का है, जहां पुजारी परिवार रहता है।

बैंक मैनेजर बेटा बोला- अंध विश्वास नहीं आस्था का विषय

परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे हरी ध्रुव गरियाबंद सहकारी बैंक में मैनेजर हैं। उन्होंने कहा कि यह अगर अंध विश्वास होता तो टूट गया होता, लेकिन यह एक आस्था का विषय बना हुआ है। उनकी पत्नी ललिता कहती है कि, मंगल-सूत्र पहन सकते हैं। इसके अलावा कांसे की चूड़ी पहनते हैं।

विधवा महिलाओं को चांदी की चूड़ी पहनाई जाती है, जिसे हल्का सा तोड़ दिया जाता है। ललिता पढ़ी-लिखी भी हैं। पति की सर्विस के दौरान उनको भी घर से अक्सर बाहर रहना होता है। गांव में लिबास को लेकर कोई नहीं कहता, लेकिन बाहर लोगों के पूछने पर बताना पड़ता है।

विधवा और सुहागन में अंतर चूड़ी का होता है। सुहागन कांसे की, तो विधवाएं चांदी की क्रैक चूड़ी पहनती हैं।

विधवा और सुहागन में अंतर चूड़ी का होता है। सुहागन कांसे की, तो विधवाएं चांदी की क्रैक चूड़ी पहनती हैं।

नई पीढ़ी बोली- इसे बदलना संभव नहीं

बहू बनाने से पहले परिवार के इस रिवाज को दूसरे परिवार को बताया जाता है। उनकी रजामंदी के बाद ही बात आगे बढ़ती है। पहले तो रिश्ता आसान था, लेकिन 7वीं पीढ़ी के बाद रिश्ते जुड़ने में दिक्कतें शुरू हो गई है। अब 8वीं पीढ़ी के बेटे भी चाहते हैं कि यह रिवाज बदले, लेकिन परिवार के बड़े सदस्य चाह कर भी इसे नहीं बदल रहे हैं।

परिवार के वरिष्ठ विष्णु ध्रुव ने बताया कि पहले हुए बदलाव के प्रयास में बहुओं को हुई शारीरिक कष्ट प्रमाण है कि यह कोई अंध-विश्वास नहीं है। हर पीढ़ी के बहू इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ है। उन्हें उम्मीद है कि एक दिन जरूर उन्हें रिवाज बदलने के संकेत मिलेंगे।

Muritram Kashyap
Muritram Kashyap
(Bureau Chief, Korba)
RELATED ARTICLES
- Advertisment -


Most Popular