लंदन: पिछले 24 घंटे में ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने फिलिस्तीन को औपचारिक तौर पर एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी। इससे फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले देशों की संख्या अब करीब 150 हो गई है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने कहा कि दो राष्ट्र समाधान ही शांति का रास्ता है। वहीं पुर्तगाल के विदेश मंत्री पाउलो रेंजेल ने कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देना ही स्थायी शांति का एकमात्र रास्ता है।
इस कदम से इजराइल पर गाजा में मानवीय संकट कम करने का दबाव बढ़ा है। हालांकि, अमेरिका अब भी फिलिस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता नहीं देता है। वहीं, फ्रांस ने भी ऐलान किया है कि वह इस हफ्ते यूएन में फिलिस्तीन को मान्यता देने के पक्ष में वोट करेगा।
ब्रिटिश PM ने वीडियो संदेश जारी कर फिलिस्तीन को मान्यता देने का ऐलान किया।
नेतन्याहू बोले- यह कदम आतंकवाद को इनाम देना
वहीं, इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि फिलिस्तीन को आजाद देश मानना आतंकवाद को इनाम देना है। जॉर्डन नदी के पश्चिम में फिलिस्तीनी देश नहीं बनेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों को दोगुना कर दिया है और इसे और बढ़ाएंगे। नेतन्याहू ने चेतावनी दी कि वह इस मान्यता का जवाब अमेरिका से लौटने के बाद देंगे।
ब्रिटेन की इजराइल को चेतावनी, वेस्ट बैंक इलाके पर कब्जा न करें
विदेश मंत्री यवेट कूपर ने इजराइल को साफ चेतावनी दी है कि ब्रिटेन के फिलिस्तीनी को मान्यता देने के बाद वह वेस्ट बैंक के हिस्सों पर कब्जा करने की कोशिश न करे, उनकी सरकार यह बर्दाश्त नहीं करेगी। कूपर ने कहा कि दोनों तरफ कट्टरपंथी लोग हैं जो टू स्टेट सॉल्यूशन को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन ब्रिटेन इसे बचाना चाहता है।
अमेरिका के करीबी देश फिलिस्तीन को मान्यता क्यों दे रहे
बीबीसी के मुताबिक कई सालों से पश्चिमी देशों की सरकारें कहती रही हैं कि फिलिस्तीन देश को मान्यता तब दी जाएगी जब हालात सही होंगे। उनका मानना था कि सिर्फ मान्यता देने से असलियत नहीं बदलेगी। लेकिन अब हालात इतने बिगड़ गए हैं कि सरकारें दबाव महसूस कर रही हैं।
गाजा में 2 साल से जारी जंग के बीच भूखमरी और बर्बादी की तस्वीरें, इजराइल की लगातार सैन्य कार्रवाई से इजराइल को लेकर दुनिया की राय बदल रही है। इन्हीं वजहों से कई देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता देने का फैसला किया है।
75% देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके
फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से करीब 75% देश मान्यता दे चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र में इसे ‘परमानेंट ऑबजर्वर स्टेट’ का दर्जा हासिल है।
इसका मतलब है कि फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों में शामिल होने की अनुमति तो है लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं है।
फ्रांस की मान्यता मिलने के बाद फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के 5 में 4 स्थाई देशों का समर्थन मिल जाएगा।
चीन और रूस दोनों ने 1988 में फिलिस्तीन को मान्यता दी थी। ऐसे में अमेरिका इकलौता देश होगा जिसने फिलिस्तीन को मान्यता नहीं दी है। उसने ने फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) को मान्यता दी है।
फिलिस्तीनी अथॉरिटी 1994 में इसलिए बनाई गई थी ताकि फिलिस्तीनियों के पास अपनी स्थानीय सरकार जैसी व्यवस्था हो और आगे चलकर यह पूरा राज्य बनने की नींव बन सके।
ब्रिटेन ने क्यों लिया फैसला?
ब्रिटिश पीएम ने कहा कि यह फैसला इजराइल को सजा देने के लिए नहीं लिया गया है, लेकिन अगर इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने गाजा में सैन्य कार्रवाई को कम हिंसक तरीके से और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करते हुए किया होता, तो शायद यह कदम न उठाया जाता।
इससे पहले ब्रिटिश डिप्टी PM डेविड लैमी ने कहा था कि अगर ब्रिटेन फिलिस्तीन को मान्यता देता है, तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि कोई नया देश तुरंत बन जाएगा। उन्होंने कहा कि मान्यता सिर्फ एक शांति प्रक्रिया का हिस्सा है। लैमी ने बताया कि ऐसा कदम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ की उम्मीद बनी रहे।
टू स्टेट सॉल्यूशन इजराइल और फिलिस्तीन के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष को सुलझाने का एक प्रस्तावित तरीका है।

टू स्टेट सॉल्यूशन के तहत, इजराइल और फिलिस्तीन दोनों को अलग-अलग, स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी जाएगी।
कनाडा बोला- फिलिस्तीन लोकतांत्रिक देश बनेगा
कनाडा के PM मार्क कार्नी का कहना है कि यह कदम मध्य पूर्व में शांति लाने और टू-स्टेट सॉल्यूशन को बचाने के लिए है। इस समाधान में फिलिस्तीन एक आजाद और लोकतांत्रिक देश बनेगा, जो इजराइल के साथ शांति से रहेगा।
कनाडा ने कहा कि वह फिलिस्तीन को मान्यता देकर शांति की उम्मीद बनाए रखना चाहता है। यह कदम हमास का समर्थन नहीं करता, बल्कि मांग करता है कि हमास बंधकों को छोड़े, हथियार डाले, और फिलिस्तीन की सरकार में कोई भूमिका न ले।
वहीं, ऑस्ट्रेलियाई PM एंथनी अल्बानीज ने कहा-
ऑस्ट्रेलिया फिलिस्तीनी लोगों की आजाद देश की इच्छा का सम्मान करता है। यह कदम टू-स्टेट सॉल्यूशन के लिए हमारी पुरानी कोशिश को दिखाता है, जो इजराइल और फिलिस्तीन के लिए शांति लाने का एकमात्र रास्ता है।
फिलिस्तीन ने अमेरिका से भी मान्यता की अपील की
फिलिस्तीन ने ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के फैसले की तारीफ की है। फिलिस्तीन ने अमेरिका और उन देशों से भी मान्यता की अपील की है, जिन्होंने अभी तक उसे मान्यता नहीं दी है।
फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा कि ब्रिटेन का यह कदम क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए जरूरी है। वहीं, फिलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने कहा- हम ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के फैसले का स्वागत करते हैं। यह टू-स्टेट सॉल्यूशन को बचाने और शांति लाने की दिशा में एक कदम है।
इजराइल-हमास जंग में अब तक 60 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जबकि गाजा में रहने वाले 20 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है।
ट्रम्प का फिलिस्तीन को मान्यता देने से इनकार
ब्रिटिश PM ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया है जब अमेरिका के कई राजनेताओं ने ब्रिटेन पर ऐसा न करने का दबाव डाला था। उनका कहना था कि इससे न सिर्फ इजराइल की सुरक्षा पर असर पड़ेगा, बल्कि गाजा में हमास के कब्जे में बंधक बनाए गए लोगों के परिवारों की स्थिति भी और कठिन हो जाएगी।
पिछले हफ्ते ब्रिटेन की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी साफ कहा था कि फिलिस्तीन को मान्यता देने को लेकर उनकी राय ब्रिटेन से मेल नहीं खाती।
दूसरी तरफ, इजराइल ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि फिलिस्तीन को मान्यता देना असल में आतंकवाद को इनाम देने जैसा है।
ब्रिटेन ने 1917 में यहूदी देश बनाने का समर्थन किया था
ब्रिटेन और फ्रांस का यह फैसला इसलिए अहम है, क्योंकि ये न सिर्फ ग्रुप7 (G7) में शामिल हैं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य भी हैं।
मिडिल ईस्ट की राजनीति में ब्रिटेन और फ्रांस की भूमिका ऐतिहासिक रही है। पहले विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद दोनों देशों ने इस क्षेत्र को अपने हिस्सों में बांट लिया था। तब ब्रिटेन को फिलिस्तीन पर अधिकार मिला था।
1917 में ब्रिटेन ने ही बाल्फोर घोषणापत्र जारी किया था, जिसमें यहूदियों के लिए उनका देश बनाने का समर्थन किया गया। लेकिन घोषणापत्र का वह हिस्सा, जिसमें फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई थी, कभी गंभीरता से लागू नहीं हुआ।
ब्रिटेन लंबे समय से टू स्टेट सॉल्यूशन का समर्थन करता रहा है, लेकिन उसकी शर्त यही रही है कि फिलिस्तीन को मान्यता शांति योजना के हिस्से के रूप में ही दी जानी चाहिए। अब ब्रिटेन के अधिकारियों को डर है कि ऐसा समाधान लगभग नामुमकिन होता जा रहा है।

(Bureau Chief, Korba)