Tuesday, September 16, 2025

नई दिल्ली: चुनाव आयोग बोला- वोटर लिस्ट बनाना, बदलना सिर्फ हमारा काम, SIR कराना विशेष अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश देना हमारे काम में दखल

नई दिल्ली: चुनाव आयोग (EC) ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा- पूरे देश में समय-समय पर स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) कराना उसका विशेषाधिकार है। कोर्ट इसका निर्देश देगी तो ये अधिकार में दखल होगा।

आयोग ने कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार वोटर लिस्ट बनाना और उसमें समय-समय पर बदलाव करना सिर्फ चुनाव आयोग (EC) का अधिकार है। यह काम न किसी और संस्था और न ही अदालत को दिया जा सकता।

चुनाव आयोग ने कहा कि हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और वोटर लिस्ट को पारदर्शी रखने के लिए लगातार काम करते हैं। यह हलफनामा एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर दायर किया गया था। याचिका में मांग की गई थी कि

चुनाव आयोग को भारत में विशेष रूप से चुनावों से पहले SIR कराने का निर्देश दिया जाए, ताकि देश की राजनीति और नीति केवल भारतीय नागरिक ही तय करें।

EC ने 5 जुलाई 2025 को बिहार को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य चुनाव अधिकारियों (CEO) को पत्र भेजकर 1 जनवरी 2026 की पात्रता तिथि के आधार पर SIR की तैयारियां शुरू करने का निर्देश दिया था।

चुनाव आयोग ने कहा- वोटर लिस्ट में बदलाव हमारा अधिकार

  • धारा 21 के मुताबिक, वोटर लिस्ट में बदलाव करने की कोई तय समय सीमा नहीं है। बल्कि ये सामान्य जिम्मेदारी है, जिसे हर आम चुनाव, विधानसभा चुनाव या किसी सीट के खाली होने पर होने वाले उपचुनाव से पहले पूरा करना जरूरी है।
  • नियम 25 से साफ है कि मतदाता सूची में थोड़ा-बहुत या बड़े स्तर पर बदलाव करना है या नहीं, यह पूरी तरह चुनाव आयोग के फैसले पर निर्भर करता है।
  • मतदाता सूची को सही और भरोसेमंद रखना चुनाव आयोग की कानूनी जिम्मेदारी है। इसलिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत 24 जून 2025 के SIR आदेश के मुताबिक अलग-अलग राज्यों में SIR कराने का फैसला किया है।
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के अनुसार आयोग को छूट है कि वह तय करे कि कब समरी रिवीजन किया जाए और कब इंटेंसिव रिवीजन।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- आधार को पहचान का प्रमाण मानें

8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिहार में जारी SIR प्रक्रिया में आधार कार्ड को पहचान प्रमाण के तौर पर अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए। चुनाव आयोग को 9 सितंबर तक इस निर्देश को लागू करने का निर्देश दिया था।

हालांकि अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। कोर्ट ने EC को निर्देश दिया कि वह वोटर सूची में नाम जुड़वाते समय दिए गए आधार नंबर की प्रामाणिकता की जांच कर सकता है।

बिहार में SIR पर विवाद

बिहार में 2003 के बाद पहली बार यह SIR प्रक्रिया हो रही है। EC का कहना है कि SIR का उद्देश्य उन लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाना है जो मर चुके हैं, जिनके पास डुप्लीकेट वोटर कार्ड हैं या जो अवैध प्रवासी हैं।

लेकिन विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया से लोगों को वोटिंग अधिकार से वंचित करने की साजिश हो रही है। EC के 24 जून के नोटिफिकेशन के अनुसार, बिहार की अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी।

इस प्रक्रिया के बाद बिहार में कुल मतदाता संख्या 7.9 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़ रह गई है। करीब 65 लाख नाम हटाए गए।



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