नई दिल्ली: प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवाइजर काउंसिल (EAC) के सदस्य संजीव सान्याल ने शनिवार को कहा कि विकसित भारत के लिए हमारा ज्यूडिशियल सिस्टम सबसे बड़ी बाधा है।
कई कानून ऐसे हैं जो समस्या को आसान की बजाय जटिल बना देते हैं। कोर्ट में माई लॉर्ड जैसे शब्दों से भी आपत्ति है, जो अंग्रेजों के जमाने के हैं। इन्हें बदलना चाहिए।
इसके साथ ही सान्याल ने अदालतों में महीनों तक छुट्टी होने पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका भी राज्य के किसी भी अन्य हिस्से की तरह एक सार्वजनिक सेवा है। क्या आप पुलिस विभाग या अस्पतालों को महीनों तक बंद रख सकते हैं।
संजीव सान्याल ने ये बातें दिल्ली में भारतीय महाधिवक्ता के सम्मेलन में कहीं। इस सम्मेलन का विषय “2047 में विकसित भारत के लिए भारत के कानूनी आधार की पुनर्कल्पना” था।
सान्याल बोले- कानून और न्याय समय पर लागू नहीं होते
सान्याल ने आगे कहा कि भारत की सबसे बड़ी दिक्कत कानून और न्याय को समय पर लागू न कर पाना है। हमारे देश में समझौते और न्याय समय पर पूरे नहीं होते।
इस वजह से भले ही हम सड़कों, इमारतों या शहरों पर बहुत पैसा खर्च करें, असली विकास रुक जाता है। उन्होंने एक ’99-1 समस्या’ का जिक्र किया। असल में सिर्फ 1% लोग नियमों का गलत इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन क्योंकि हमें भरोसा नहीं है कि अदालतें ऐसे मामलों को जल्दी सुलझा देंगी, तो सरकार सारे नियम ऐसे बनाती है कि उस 1% को भी रोका जा सके। नतीजा ये होता है कि बाकी 99% ईमानदार लोग भी उन जटिल नियमों में फंस जाते हैं।
सान्याल बोले- मध्यस्थता को अनिवार्य नहीं करना चाहिए
सान्याल ने कहा कि मुकदमा दायर करने से पहले अनिवार्य मध्यस्थता का नियम सही सोच के साथ लाया गया था, लेकिन असल में उल्टा असर कर गया। कमर्शियल कोर्ट एक्ट की सेक्शन 12A कहती है कि कोर्ट में जाने से पहले पक्षकारों को मध्यस्थता करनी होगी।
लेकिन मुंबई की अदालतों के आंकड़े दिखाते हैं कि 98–99% मामलों में यह मध्यस्थता फेल हो जाती है। जिसके बाद केस तो फिर भी कोर्ट में जाता है, लेकिन उससे पहले 6 महीने का वक्त बढ़ जाता है।
सान्याल ने कहा मध्यस्थता बुरी चीज नहीं है। लेकिन जबरदस्ती इसे अनिवार्य बनाने से फायदा नहीं हुआ, उल्टा नुकसान हुआ। इसे स्वैच्छिक होना चाहिए।
सान्याल ने कहा- कई केस ऐसे जहां कानूनी डिग्री भी नहीं होनी चाहिए
सान्याल ने आगे कहा कि भारत की कानूनी व्यवस्था में सिर्फ प्रोसेस में ही नहीं बल्कि सोच और संस्कृति की भी समस्या है। वकालत का ढांचा मध्ययुगीन काल का है। यहां अलग-अलग लेवल हैं, जैसे- सीनियर एडवोकेट, एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड या फिर अन्य।
21वीं सदी में इतनी परतें क्यों? कई मामलों में तो किसी को केस लड़ने के लिए कानूनी डिग्री की भी जरूरत नहीं होनी चाहिए। क्योंकि आज के जमाने में AI जैसी तकनीक भी मदद कर सकती है।

(Bureau Chief, Korba)