Monday, June 30, 2025

रायपुर : सुकली बाई का सपना साकार

रायपुर: छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के मोतिमपुर गांव में रहने वाली सुकली बाई मेरावी की जिंदगी कभी संघर्ष से भरी थी। बैगा जनजाति से ताल्लुक रखने वाली सुकली बाई और उनका परिवार एक कच्चे मकान में गुजर-बसर कर रहा थाकृएक ऐसा घर जिसे घर कहना भी मुश्किल था। बारिश के दिनों में चारों तरफ से पानी टपकता, दीवारों से सीलन टपकती, और ज़मीन पर फैली नमी से उठती दुर्गंध पूरे घर को घेर लेती। रात के अंधेरे में कीड़े-मकोड़ों और सांप-बिच्छुओं का डर बना रहता। सुकली बाई की सबसे बड़ी चिंता अपने बच्चों के लिए सुरक्षित आशियाना बनाना था। लेकिन सीमित आमदनी और आर्थिक तंगी के कारण यह सपना उनके लिए दूर की कौड़ी बना हुआ था। हर साल बरसात में भीगते हुए वे सिर्फ एक ही बात सोचतींकृष्काश मेरा भी पक्का घर होता! फिर वह दिन आया, जब प्रधानमंत्री आदिवासी महा न्याय अभियान योजना (पीएम जनमन योजना) के तहत प्रधानमंत्री आवास योजना की सौगात उन्हें मिली। जब ग्रामसभा में उनके नाम से आवास स्वीकृत हुआ, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। उन्हें जैसे उम्मीद की नई रोशनी मिल गई।

सरकार द्वारा पहले 40 हजार रुपये की पहली किश्त उनके खाते में सीधे भेजी गई। यह उनके लिए एक नया सफर थाकृएक पक्के घर की नींव रखने का सफर! जैसे-जैसे घर की दीवारें खड़ी होती गईं, वैसे-वैसे सुकली बाई के सपनों को भी मजबूती मिलती गई। दूसरी किश्त में 60 हजार, तीसरी किश्त में 80 हजार, और आखिर में अंतिम किश्त के 20 हजार रुपये मिलते ही उनका आशियाना तैयार हो गया। जब सुकली बाई ने पहली बार अपने नए पक्के मकान में कदम रखा, तो उनकी आंखों में आंसू थेकृखुशी और संतोष के। अब न बारिश की चिंता, न ठंड का डर, न ही किसी कीड़े-मकोड़े का खतरा। उनका घर अब सिर्फ चार दीवारों का ढांचा नहीं था, बल्कि सम्मान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका था। उनका सामाजिक दायरा भी बदलने लगा। रिश्तेदार अब खुशी-खुशी उनके घर आते और रात भर ठहरते। जो कभी तिरस्कार करते थे, वे अब उनके आवास की तारीफ करते नहीं थकते। उनके जीवन में सिर्फ एक मकान ही नहीं बना, बल्कि एक नई पहचान मिली।

प्रधानमंत्री जनमन योजना से मिले आवास के साथ-साथ उन्हें मनरेगा के तहत 95 दिनों का रोजगार मिला, जिससे 23,085 रुपये की मजदूरी भी उनके खाते में जमा हुई। स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय निर्माण की सुविधा भी उन्हें मिली। धीरे-धीरे सरकारी योजनाओं का लाभ मिलते गए और उनका जीवन पहले से कहीं अधिक सहज और खुशहाल हो गया। आज सुकली बाई अपने आंगन में बैठकर जब अपने पक्के घर की दीवारों को निहारती हैं, तो उन्हें यकीन नहीं होता कि यह वही घर है जिसकी उन्होंने कभी सिर्फ कल्पना की थी। वे कहती हैं कि प्रधानमंत्री जनमन योजना ने मेरे जीवन की सबसे बड़ी कमी को पूरा कर दिया। अब मेरा भी एक मजबूत, सुरक्षित और सुंदर घर है। इस योजना ने सिर्फ एक मकान नहीं दिया, बल्कि मुझे समाज में सम्मान और आत्मनिर्भरता की नई पहचान दी है।


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