रायपुर: जब मानसूनी बादल आसमान में उमड़-घुमड़ रहे थे, तब नवलपुर (विकासखंड बेमेतरा) की श्रीमती बेदनबाई पति श्री सोपन ने अपने 2.42 एकड़ खेत में हल चलाते हुए एक सधे हुए कदम के साथ समन्वित पोषण प्रबंधन (प्छड) की नई राह पकड़ी। यह राह केवल उनकी खेती का भविष्य ही नहीं, बल्कि जिले के हज़ारों कृषकों के लिए भी उम्मीद की इबारत लिख रही हैकृऔर इसके केंद्र में है राज्य सरकार की “मिट्टी सेहतदृफसल उपज” अभियान श्रृंखला। फसलों की स्वस्थ वृद्धि और अधिक उत्पादन के लिए कुल 17 प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश प्रमुख हैं। नाइट्रोजन पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तीव्र करता है तथा तनों और पत्तियों की वृद्धि में सहायक होता है। फास्फोरस जड़ों की मजबूती और विकास के लिए अनिवार्य है। पोटाश पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ जल अवशोषण में भी मदद करता है।
इन पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए किसान यूरिया, डीएपी, एनपीके, सुपर फास्फेट, पोटाश जैसे विभिन्न उर्वरकों का उपयोग करते हैं। अब किसान सिर्फ एक ही प्रकार के उर्वरक पर निर्भर न रहकर मिश्रित और संतुलित उर्वरक रणनीति अपना रहे हैं, ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और फसल की गुणवत्ता भी बेहतर हो। इस दिशा में जिले के नवलपुर ग्राम (विकासखंड बेमेतरा) की कृषक श्रीमती बेदनबाई पति श्री सोपन एक उदाहरण बनकर सामने आई हैं। उन्होंने अपने 2.42 एकड़ खेत में समन्वित पोषण प्रबंधन अपनाते हुए सेवा सहकारी समिति लोलेसरा से 10 बोरी यूरिया, 01 बोरी सुपरफास्फेट, 03 बोरी डीएपी और 01 बोरी पोटाश का उठाव किया है।
कृषक श्रीमती बेदनबाई ने बताया कि वे अपने खेत में हमेशा संतुलित मात्रा में और आवश्यकतानुसार उर्वरकों का ही उपयोग करती हैं। उनका मानना है कि एक ही प्रकार की खाद पर निर्भरता से फसल को पूर्ण पोषण नहीं मिल पाता। इसलिए वे अलग-अलग स्रोतों से आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करती हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है और उत्पादन भी संतोषजनक होता है। जिला कृषि विभाग द्वारा भी किसानों को नियमित रूप से जागरूक किया जा रहा है कि वे वैज्ञानिक सलाह के अनुरूप उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें, ताकि मृदा की सेहत बनी रहे और दीर्घकालीन लाभ प्राप्त किया जा सके।

(Bureau Chief, Korba)