बैंकॉक: थाईलैंड में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच बुधवार को सूर्या जुंगरुंगरेंगकिट को देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है। 70 वर्षीय सूर्या सिर्फ 24 घंटे के लिए प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी संभालेंगे। उन्होंने निलंबित प्रधानमंत्री पाइतोंग्तार्न शिनावात्रा की जगह ली है, जिन्हें संवैधानिक अदालत के आदेश के बाद पद से हटाया गया था।
सूर्या को थाई राजनीति में ‘मौसम विज्ञानी’ कहा जाता है, क्योंकि वे हमेशा सत्ताधारी पार्टी के साथ सरकार में रहे हैं। बैंकॉक पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, थाईलैंड में गुरुवार को मंत्रिमंडल में फेरबदल होना तय है।
गृह मंत्री फुमथम वेचायाचाई को उप प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई जा सकती है। उनके कार्यभार संभालने के बाद सूर्या का कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। थाईलैंड की संवैधानिक अदालत ने मंगलवार को प्रधानमंत्री पैतोंगटार्न शिनावात्रा को सस्पेंड कर दिया था।

पाइतोंग्तार्न शिनवात्रा अगस्त 2024 में देश की प्रधानमंत्री बनी थीं।
PM का ऑडियो लीक, आर्मी चीफ की आलोचना की थी
दरअसल, एक PM पाइतोंग्तार्न का कंबोडिया के नेता के साथ बातचीत का एक वीडियो लीक हो गया था। इसमें PM पाइतोंग्तार्न, कंबोडिया के नेता हुन सेन को ‘चाचा’ कहती है और थाई सेना प्रमुख को अपना विरोधी बताती हैं।
कंबोडिया और थाईलैंड के बीच सीमा विवाद चल रहा है। ऐसे में विपक्षी पार्टी ने इसे मुद्दा बना लिया। PM पर कंबोडिया के सामने झुकने और सेना को कमजोर करने के आरोप लगे।
सीमा विवाद के दौरान हुई इस टिप्पणी के कारण पैतोंगतार्न पर इसके चलते उनकी लोकप्रियता घटी, गठबंधन के कुछ साथी दलों ने साथ छोड़ दिया और हजारों लोग विरोध में सड़कों पर उतर आए। कोर्ट ने कहा कि पाइतोंग्तार्न ने मंत्री पद की नैतिकता का उल्लंघन किया है। इसके बाद उन्हें पद से हटा दिया।

PM शिनवात्रा के खिलाफ रविवार को बैंकॉक के विक्ट्री मॉन्युमेंट और गवर्नमेंट हाउस के बाहर करीब 20 हजार लोग प्रदर्शन में शामिल हुए।
थाईलैंड की राजनीति में उथल-पुथल
थाईलैंड की राजनीति में पिछले 2 दशक से शिनवात्रा परिवार का बहुत गहरा असर रहा है। जितनी बार इस परिवार ने सत्ता में वापसी की, लगभग उतनी ही बार उन्हें विवादों और सत्ता से बाहर निकाले जाने का भी सामना करना पड़ा है। अब एक बार फिर यही कहानी दोहराई गई है।
शिनवात्रा परिवार का राजनीतिक उदय 2001 में तब शुरू हुआ जब थाकसिन शिनवात्रा ने भारी जनसमर्थन के साथ प्रधानमंत्री पद संभाला। उन्होंने गरीबों व ग्रामीण लोगों के लिए सस्ता स्वास्थ्य, कर्ज और विकास योजनाएं शुरू कीं।
थाकसिन की लोकप्रियता थाईलैंड के शहरी मध्यवर्ग, अमीर वर्ग और शक्तिशाली सेना के लिए चुनौती बन गई। 2006 में सेना ने तख्तापलट कर दिया और थाकसिन को सत्ता से बाहर कर दिया गया। उन पर भ्रष्टाचार और सत्ता का दुरुपयोग करने जैसे आरोप लगे।
थाकसिन देश से बाहर चले गए और कभी कंबोडिया तो कभी दुबई में रहकर राजनीति पर दूर से पकड़ बनाए रखी। लेकिन उनकी लोकप्रियता खत्म नहीं हुई। उनके समर्थकों ने ‘रेड शर्ट्स’ आंदोलन के जरिए थाईलैंड में सरकारों के खिलाफ जोरदार आंदोलन किया।
थाकसिन की बहन PM बनी, 3 साल बाद हटाई गईं
इसके बाद थाकसिन की बहन यिंगलक शिनवात्रा ने 2011 में ऐतिहासिक चुनाव जीतकर थाईलैंड की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने बड़े पैमाने पर चावल खरीद सब्सिडी योजना चलाई, जिससे ग्रामीण वोटर खुश हुए लेकिन सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ा।
एक बार फिर से शिनवात्रा परिवार की लोकप्रियता और नीतियां सेना और पारंपरिक शाही समर्थक शक्तियों को खटकने लगीं। यिंगलक सरकार के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जिनमें बैंकॉक की सड़कों पर लाखों लोग उतरे। मई 2014 में यिंगलक को भी संवैधानिक अदालत ने सत्ता के दुरुपयोग के आरोप में हटा दिया और बाद में सेना ने तख्तापलट करके सत्ता अपने हाथ में ले ली।
2014 के सैन्य शासन के बाद शिनवात्रा परिवार की राजनीतिक ताकत कमजोर होती दिखने लगी थी। लेकिन 2023 में थाकसिन की बेटी पाइतोंग्तार्न शिनावात्रा ने फेउ थाई पार्टी की अगुवाई में सत्ता में वापसी की कोशिश शुरू की।

पाइतोंग्तार्न ने अगस्त 2024 में सिर्फ 37 साल की उम्र में पीएम पद की शपथ ली थी।
10 महीने PM रहीं पाइतोंग्तार्न शिनवात्रा
अगस्त 2024 में पाइतोंग्तार्न ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद लगा कि शिनवात्रा वंश ने सत्ता में एक और वापसी कर ली। पर यह वापसी भी ज्यादा लंबी नहीं चली। पाइतोंग्तार्न के खिलाफ संवैधानिक न्यायालय में मामला दर्ज हुआ और सिर्फ 10 महीने बाद उन्हें पद से हटा दिया गया।
शिनवात्रा परिवार का बार-बार सत्ता में आना और फिर विवादों में फंसकर बाहर होना थाईलैंड की राजनीति का स्थायी पैटर्न बन चुका है।
थाईलैंड में शिनवात्रा परिवार ग्रामीण इलाकों और गरीब तबकों के बीच बेहद लोकप्रिय हो, लेकिन थाईलैंड की राजनीति में सेना और शाही समर्थक ताकतों का प्रभाव इतना गहरा है कि शिनवात्रा वंश की सरकारें लंबे समय तक टिक नहीं पातीं। सत्ता की यह लड़ाई थाईलैंड को बार-बार अस्थिरता की ओर धकेल देती है।
थाकसिन और उनके परिवार के समर्थक मानते हैं कि हर बार सेना लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को गिराने के लिए अदालतों और राजनीतिक तंत्र का इस्तेमाल करती हैं। दूसरी ओर, शिनवात्रा परिवार पर सत्ता के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और पॉपुलिस्ट नीतियों से देश को आर्थिक संकट में डालने का आरोप लगते हैं।

(Bureau Chief, Korba)