Monday, September 30, 2024




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BCC News 24: छत्तीसगढ़- दर्दनाक घटना.. 4 साल की बच्ची को कुत्ते ने काटा; जांघ से मांस का टुकड़ा बाहर निकला, मां भटकती रही सरकारी अस्पतालों में, नहीं मिल सका इलाज क्योंकि स्वास्थ्य कर्मचारी हड़ताल पर चले गए

रायपुर: टिकरापारा में एक 4 साल की बच्ची दीपा की जांघ में कुत्ते ने ऐसे काटा कि मांस का एक टुकड़ा निकल गया। घर पर मां वंदना दौड़कर गई और बच्ची को उठाया, बच्ची के चाचा को बुलाया। दोनों फौरन कालीबाड़ी अस्पताल पहुंचे। यहां जच्चा-बच्चा अस्पताल है। बच्ची के पैर से लगातार खून रिस रहा था और मां की आंख से आंसू।

बच्ची के चाचा ने कहा- भैया, बिटिया को कुत्ते ने काट लिया है, बहुत खून बह रहा है, प्लीज कुछ कीजिए…। यहां एक दो कर्मचारी ही थे। कोई नहीं था। उन्होंने कहा कि यहां तो कोई है नहीं। इलाज नहीं हो सकता। आप बच्ची को अंबेडकर अस्पताल लेकर जाइए। बच्ची के पैर में कपड़ा बंधा हुआ था, जिसमें खून लगातार टपक रहा था।

बच्ची का रो-रोकर इतना बुरा हाल हो चुका था कि हिचकियां आ रही थीं। उसके आंसू देखकर मां बिलख रही थी। इसी हालत में वे लोग अंबेडकर अस्पताल पहुंचे। इतने बड़े अस्पताल में पूछताछ करते-करते ही वक्त लग रहा था। आखिरकार उन्हें बताया कि कि पीडिया विभाग में ले जाइए। मां वंदना वहां पहुंचीं, लेकिन यहां पहुंचकर भी उसकी उम्मीद टूट गई।

पीडिया विभाग में कर्मचारियों ने कहा कि छोटा-मोटा इलाज कर देते हैं, लेकिन टीका नहीं लग सकता। उन्हें बताया गया था कि रैबीज का टीका 24 घंटे में लगना चाहिए, लेकिन यहां टीका नहीं लग पा रहा था। पूरा परिवार बेचैन हो गया था। इसके बाद फिर पंडरी जिला अस्पताल पहुंचे। यहां भी इंजेक्शन नहीं मिला।

आखिरकार बच्चे को लेकर प्राइवेट क्लीनिक में पहुंचे और टीका लगवाया। एंटी रैबीज टीके की कीमत 300-500 रुपए के आसपास होती है। ऊपर से प्राइवेट डॉक्टर की फीस। परिवार बेहद गरीब था। इसलिए बच्ची को रोते हुए देखने के बाद भी सरकारी अस्पतालों के चक्कर काट रहा था, कि उन्हें उम्मीद थी, थोड़ेे पैसे बच जाएंगे। पर गरीब की उम्मीद आखिरकार टूट गई…

सारे स्वास्थ्य कर्मचारी हड़ताल पर चले गए अस्पताल में कमी, अगले 4 दिन छुट्‌टी भी
स्वास्थ्य कर्मचारियों की तीन दिवसीय हड़ताल बुधवार को खत्म हो गई, लेकिन इसके कारण मरीजों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा। रेडियोग्राफरों की हड़ताल के कारण लोगों को एक्सरे, सीटी स्कैन व एमआरआई कराने के लिए भटकना पड़ा। फार्मासिस्ट नहीं होने के कारण मेन दवा स्टोर के अलावा पीडियाट्रिक, मेडिसिन व स्किन रोग विभाग में मरीजों को दवा नहीं मिल पाई। इसके कारण लोगों को रेडक्रास व दूसरे मेडिकल स्टोर से महंगी दर पर दवा खरीदनी पड़ी।

डॉक्टरों व कुछ नर्सों को छोड़कर सभी कर्मचारी हड़ताल पर रहे। अस्पताल में इलाज करने वाले तो थे, लेकिन मैनेज करने वाले कोई नहीं। बाबुओं के नहीं आने के कारण कई एचओडी चैंबरों का ताला नहीं खुला। सबसे ज्यादा परेशानी दवा नहीं मिलने से हुई। कर्मचारी संघ का दावा है कि 26 में 25 मांगों पर सहमति बन गई है। बस एनएचएम के संविदा कर्मचारियों को नियमित करने की बात नहीं बनी। दरअसल इसमें 60 फीसदी फंड केंद्र से मिलता है। इसलिए इसमें पेंच है।

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