वॉशिंगटन डीसी: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार (19 अक्टूबर) को एक बार फिर यह दावा किया कि भारत अब रूस से तेल का व्यापार नहीं करेगा। इससे पहले ट्रम्प ने 15 अक्टूबर को भी ऐसा ही दावा किया था।
ट्रम्प ने अपने प्लेन में रिपोर्टरों से बात करते हुए कहा कि “मैंने भारत के प्रधानमंत्री मोदी से बात की और उन्होंने कहा है कि वे रूस के तेल का व्यापार नहीं करेंगे।”
इस पर रिपोर्टर ने कहा कि भारत ने आपके और पीएम मोदी के बीच तेल खरीद को लेकर कोई कॉल होने से इनकार किया है। इसके जवाब में ट्रम्प ने कहा-
अगर वे ऐसा कहना चाहते हैं तो उन्हें भारी टैरिफ देना पड़ेगा और वे ऐसा नहीं करना चाहते।
भारत ने ट्रम्प और मोदी में कॉल होने की बात नकारी
भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने 16 अक्टूबर को प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि बुधवार को पीएम मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प की कोई बातचीत नहीं हुई थी।
ट्रम्प के दावे पर जायसवाल ने कहा, ‘भारत तेल और गैस का बड़ा खरीदार है। जनता के हितों की रक्षा करना हमारी प्राथमिकता रही है। हमारी आयात नीतियां इसी मकसद को पूरी करती हैं। ऊर्जा नीति के दो लक्ष्य हैं, पहला स्थिर कीमतें तय करना और दूसरा सुरक्षित आपूर्ति बनाए रखना।’
जायसवाल ने आगे कहा, ‘इसके लिए हम ऊर्जा स्रोतों को व्यापक बनाते हैं और बाजार स्थितियों के अनुसार विविधता लाते हैं। जहां तक अमेरिका का सवाल है, हम कई सालों से अपनी ऊर्जा खरीद का विस्तार करने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले दशक में इसमें लगातार प्रगति हुई है।’

जायसवाल ने बताया कि अमेरिकी प्रशासन ने भारत के साथ ऊर्जा सहयोग को बढ़ाने में रुचि दिखाई है। इस पर चर्चाएं जारी हैं। (फाइल फोटो)
भारत पर प्रतिबंध का मकसद रूस पर दबाव बनाना
अमेरिका ने रूस पर दबाव बनाने के लिए भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। ट्रम्प कई बार यह दावा कर चुके हैं कि, भारत के तेल खरीद से मिलने वाले पैसे से रूस, यूक्रेन में जंग को बढ़ावा देता है।
ट्रम्प प्रशासन रूस से तेल लेने पर भारत के खिलाफ की गई आर्थिक कार्रवाई को पैनल्टी या टैरिफ बताता रहा है।
ट्रम्प भारत पर अब तक कुल 50 टैरिफ लगा चुके हैं। इसमें 25% रेसीप्रोकल यानी जैसे को तैसा टैरिफ और रूस से तेल खरीदने पर 25% पैनल्टी है।
रेसीप्रोकल टैरिफ 7 अगस्त से और पेनल्टी 27 अगस्त से लागू हुआ। व्हाइट हाउस प्रेस सचिव केरोलिना लेविट के मुताबिक इसका मकसद रूस पर सेकेंडरी प्रेशर डालना है, ताकि वह युद्ध खत्म करने पर मजबूर हो सके।
सितंबर में भारत ने 34% तेल रूस से खरीदा
ट्रम्प के दावे के बावजूद, रूस भारत का सबसे बड़ा तेल स्रोत बना हुआ है। कमोडिटी और शिपिंग ट्रैकर क्लेप्लर के आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर में ही नई दिल्ली ने आने वाले शिपमेंट का 34 फीसदी हिस्सा लिया। हालांकि, 2025 के पहले आठ महीनों में आयात में 10 फीसदी की गिरावट आई थी।
एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने 2025 के अगस्त महीने में रूस से औसतन 1.72 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) कच्चा तेल आयात किया। वहीं, सितंबर में यह आंकड़ा थोड़ा घटकर 1.61 मिलियन bpd रह गया।)
एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह कटौती अमेरिकी दबाव और सप्लाई में डाइवरसीफिकेशन लाने के लिए की गई है। इसके विपरीत रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी जैसी निजी रिफाइनरी कंपनियों ने इसकी खरीद बढ़ा दी है।
सरकारी रिफाइनरियों ने रूसी आयात में कमी की
सरकारी कंपनियां (जैसे IOC, BPCL, HPCL) ने रूसी तेल आयात 45% से ज्यादा घटाया। जून में 1.1 मिलियन bpd से सितंबर में घटकर 600,000 bpd रह गया।
वहीं, प्राइवेट रिफाइनरीयां (रिलायंस इंडस्ट्रीज: 850,000 bpd, नयारा एनर्जी: ~400,000 bpd) ने इसे संतुलित किया, जिससे कुल आपूर्ति पर असर नहीं पड़ा।
रूस से सस्ता तेल खरीदने की शुरुआत कैसे हुई?
फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूरोप ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद रूस ने अपने तेल को एशिया की ओर मोड़ा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत ने 2021 में रूसी तेल का सिर्फ 0.2% आयात किया था।
2025 में यह भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। औसतन 1.67 मिलियन बैरल प्रति दिन की आपूर्ति कर रहा है। यह भारत के कुल जरूरत का करीब 37% है।
भारत रूस से तेल खरीदना क्यों नहीं बंद करता?
भारत को रूस से तेल खरीदने के कई डायरेक्ट फायदे हैं…
- अन्य देशों से सस्ता तेल: रूस अभी भी भारत को दूसरे देशों की तुलना में सस्ता तेल दे रहा है। हालांकि, जो डिस्काउंट पहले 30 डॉलर प्रति बैरल तक था वह अब 3-6 डॉलर प्रति बैरल तक रह गया है।
- लॉन्ग-टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स: भारत की प्राइवेट कंपनियों के रूस के साथ लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स हैं। उदाहरण के लिए, दिसंबर 2024 में रिलायंस ने रूस के साथ 10 साल के लिए हर रोज 5 लाख बैरल तेल खरीदी का कॉन्ट्रैक्ट किया। इस तरह के समझौतों को रातोंरात तोड़ना संभव नहीं है।
- वैश्विक कीमतों पर प्रभाव: भारत का रूसी तेल आयात वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में मदद करता है। यदि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है, तो ग्लोबल सप्लाई कम हो सकती है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं। यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद मार्च 2022 में तेल की कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं।
भारत के पास रूस के अलावा किन देशों से तेल खरीदने के विकल्प हैं?
भारत अपनी तेल जरूरतों का 80% से ज्यादा इम्पोर्ट करता है। ज्यादातर तेल रूस के अलावा इराक, सऊदी अरब और अमेरिका जैसे देशों से खरीदता है। अगर रूस से तेल इम्पोर्ट बंद करना है तो उसे इन देशों से अपना इम्पोर्ट बढ़ाना होगा…
- इराक: रूस के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर है, जो हमारे इम्पोर्ट का लगभग 21% प्रोवाइड करता है।
- सऊदी अरब: तीसरा बड़ा सप्लायर, जो हमारी जरूरतों का 15% तेल (करीब 7 लाख बैरल प्रतिदिन) सप्लाई करता है।
- अमेरिका: जनवरी-जून 2025 में भारत ने अमेरिका से रोजाना 2.71 लाख बैरल तेल इम्पोर्ट किया, जो पिछले से दोगुना है। जुलाई 2025 में अमेरिका की हिस्सेदारी भारत के तेल आयात में 7% तक पहुंच गई।
- साउथ अफ्रीकन देश: नाइजीरिया और दूसरे साउथ अफ्रीकन देश भी भारत को तेल सप्लाई करते हैं और सरकारी रिफाइनरीज इन देशों की ओर रुख कर रही हैं।
- अन्य देश: अबू धाबी (UAE) से मुरबान क्रूड भारत के लिए एक बड़ा ऑप्शन है। इसके अलावा, भारत ने गयाना ब्राजील, और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों से भी तेल आयात शुरू किया है। हालांकि, इनसे तेल खरीदना आमतौर पर रूसी तेल की तुलना में महंगा है।

(Bureau Chief, Korba)