Friday, May 3, 2024
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अंतरिक्ष में भारतीय और रूसी सैटेलाइट आ गए आमने-सामने, ऐसे टला बड़ा हादसा…

शुक्रवार को भारतीय सैटेलाइट कार्टोसैट (Cartosat 2F) और रूसी सैटेलाइट केनापुस बेहद करीब आ गए थे. रूसी एजेंसी रॉसकोमोस ने अपने ट्वीट में कहा है कि दोनों सेटेलाइट के बीच की दूरी सिर्फ 224 मीटर रह गई थी.

चेन्नई : रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के मुताबिक अंतरिक्ष में बड़ा हादसा टल गया. एजेंसी से जारी बयान में कहा गया है कि शुक्रवार को भारतीय सैटेलाइट कार्टोसैट (Cartosat 2F) और रूसी सैटेलाइट केनापुस बेहद करीब आ गए थे. रूसी एजेंसी रॉसकोमोस ने अपने ट्वीट में कहा है कि दोनों सेटेलाइट के बीच की दूरी सिर्फ 224 मीटर रह गई थी. बता दें कि दोनों रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट हैं जिनके जरिए किसी भी हलचल पर बारीक नजर रखी जाती है.

एक सूत्र ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि अंतरिक्ष में दो उपग्रहों के बीच, 1 किलोमीटर की डिस्टेंस एक आदर्श दूरी है, जबकि इस वाकये के दौरान ये दूरी सिर्फ 224 मीटर रह गई थी जो कि बेहद खरतनाक और डरावनी स्थिति हो सकती थी. सामान्यत: जब दो सैटेलाइट्स के करीब आने की संभावना होती है तब करीब एक दिन पहले ही संभावित टकराव को रोकने के लिए उनमें से किसी एक के लिए Maneuver का सहारा लिया जाता है.  

अंतरिक्ष में ट्रैफिक जाम की स्थिति
गौरतलब है कि अंतरिक्ष में उपग्रहों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इन सेटेलाइट्स का इस्तेमाल विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है. स्पेस एजेंसियों के कई महत्वपूर्ण कामों में एक यह भी होता है कि वो हर 3 से 4 हफ्ते में अपने उपग्रह की चाल की निगरानी करते हुए उसके रूट पर नजर रखें. जानकारों के मुताबिक पृथ्वी की निचली कक्षा यानी (500-2000 किमी) में जबर्दस्त ट्रैफिक बढ़ा है. जहां 10 सेमी क्यूब्स से लेकर एक कार के साइज या फिर आकार में उससे बड़े उपग्रह चक्कर लगा रहे हैं. 

आसान नहीं है सेटेलाइट maneuver
हालांकि, सैटेलाइट्स की पैंतरेबाजी (maneuver) का फैसला करना आसान नहीं होता है. खासतौर से जब वो उपग्रह रणनीतिक भूमिका में हो, अपने मकसद को पूरा करने के लिए उसकी निर्धारित क्षेत्र में मौजूदगी जरूरी होती है.

रिमोट सेंसिंग उपकरण की अहमियत
गौरतलब है कि नई सदी में सैटेलाइट्स को तीसरी आंख का दर्जा भी दिया गया है. हाईटेक और शक्तिशाली देश निगरानी के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं. इस मामले में, रोस्कोस्मोस ने कहा है कि दोनों रिमोट सेंसिंग उपग्रह हैं, जिसका अर्थ है कि उनका उपयोग रणनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है.

अंतरिक्ष समुदाय सैटेलाइट्स पर नजर रखने के लिए भविष्यवाणी मॉडल पर काम करता है. फिलहाल स्पेस में यूरोपियन मॉडल, अमेरिकी मॉडल और रूस का अपना अलग नियंत्रण और निगरानी तंत्र है. वहीं भारतीय मॉडल अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है. यहां दिक्कत ये भी है कि हर मॉडल की अपनी अलग कैलकुलेशनऔर माप होती है.

रूसी एजेंसी ने क्यों सार्वजनिक की जानकारी?
यहां महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इसरो अधिकारियों के साथ बातचीत के बजाय रूसी एजेंसी ने इस मामले को सार्वजनिक क्यों किया? या क्या दोनों एजेंसियों के सेटेलाइट्स का निर्धारित ऑर्बिट में रहना इतना जरूरी था कि ये जानने के बावजूद कि वो खतरनारक स्थिति तक नजदीक आ जाएंगे इसके बावजूद यहां कोई कदम नहीं उठाया गया.

यहां एक महत्वपूर्ण सवाल ये भी है कि क्या दोनों एजेंसियां आपस में क्लोस पास को मंजूरी देना चाहतीं थीं? यानी भविष्य में किसी आपसी संभावित रणनीति के तहत भी ऐसा किया गया?

Satellites orbiting की मौजूदा स्थिति
ताजा जानकारी के मुताबिक जनवरी 2020 तक, अंतरिक्ष में धरती की परिक्रमा करने वाले करीब 2,000 सक्रिय उपग्रह हैं. नासा के अनुसार, यहां 10 सेमी यानी 4 इंच से बड़े मलबे के 23 हजार से अधिक टुकड़े भी मौजूद हैं.

कई कोशिशों के बावजूद ज़ी मीडिया की टीम को इस संदर्भ में इसरो के अधिकारियों से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

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