बिलासपुर: CG-PSC भर्ती में गड़बड़ी को लेकर दायर याचिका पर गुरुवार को राज्य सरकार ने जवाब पेश नहीं किया। शासन ने जवाब पेश करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा है। इस पर चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने 10 दिन की मोहलत देकर मामले की सुनवाई 16 अक्टूबर तक बढ़ा दी है। इससे पहले हाईकोर्ट ने गड़बड़ी के आरोपों की जांच कर रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा था।
CG-PSC 2021-22 फर्जीवाड़ा और नियुक्ति रद्द करने की मांग को लेकर पूर्व गृहमंत्री और विधायक ननकी राम कंवर ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में पीएससी की ओर से भर्ती प्रक्रिया में फर्जीवाड़ा का आरोप लगाया गया है। साथ ही 18 चयनित उम्मीदवारों की सूची भी कोर्ट के सामने पेश की है।
इस लिस्ट में पीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष टामन सिंह सोनवानी के 5 से ज्यादा करीबी रिश्तेदारों को नियुक्ति देने का आरोप है। जिसमें डिप्टी कलेक्टर समेत कई अहम पद हैं। इसके साथ ही राज्य लोक सेवा आयोग के सचिव अमृत खलखो के बेटी और बेटे, मुंगेली के तत्कालीन कलेक्टर एल्मा के बेटे, कांग्रेस नेता राजेंद्र शुक्ला के बेटे, बस्तर नक्सल ऑपरेशन डीआईजी की बेटी सहित 18 लोगों की सूची पेश की गई है।
सूची पेश करते हुए आरोप लगाया गया है कि, यह सभी नियुक्तियां प्रभाव के चलते पिछले दरवाजे से कर दी गई हैं। उन उम्मीदवारों के भविष्य के साथ धोखा किया गया है जिनकी नियुक्ति होनी थी। पिछले दरवाजे से की गई नियुक्तियों को रद्द करने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ उच्च स्तरीय जांच की मांग की गई है।
हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद उम्मीदवारों ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी है चुनौती।
हाईकोर्ट ने जताई थी आपत्ति, शासन ने कहा था जांच कराएंगे
जनहित याचिका की प्रारंभिक सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा था कि अधिकारी का बेटा शीर्ष पद पर चयनित हो सकता है। लेकिन इस तरह का संयोग बहुत गलत और दुखद है। इस टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने राज्य शासन की ओर से पैरवी कर रहे विधि अधिकारी से पूछा था कि क्या ये सारी नियुक्तियां हो चुकी हैं। जॉइनिंग दी जा चुकी है?
राज्य शासन की तरफ से बताया गया कि अब तक 5 चयनित उम्मीदवार की ही जॉइनिंग हुई है। जिस पर हाईकोर्ट ने कहा कि, इन नियुक्ति रोका नहीं जा रहा लेकिन फैसले का असर जरूर इन नियुक्ति पर पड़ेगा। साथ ही बाकी उम्मीदवारों की नियुक्ति पर रोक भी लगा दी है। वहीं सुनवाई के दौरान शासन की तरफ से कहा गया था कि हम मामले की जांच करा रहे हैं, जिस पर डिवीजन बेंच ने जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा था।
CG-PSC की एक और याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मांगा जवाब
इधर, CG-PSC 2018 के मामले में एक ही मेरिट लिस्ट के कुछ उम्मीदवारों को 2 साल की परीवीक्षा अवधि( प्रोबेशन पीरियड) और 100% वेतन देने का प्रावधान किया गया है। जबकि, कुछ उम्मीदवारों को तीन साल की परिवीक्षा अवधि और 70-80 और 90% स्टाइपेंड पर नियुक्ति दी गई है। याचिका में किसी को वेतन और किसी को स्टाइपेंड देने पर समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया गया है। हाईकोर्ट से इस याचिका के खारिज होने के बाद उम्मीदवारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
प्रावीण्य सूची के नीचे फिर भी दे रहे पूर्ण वेतन
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हन की बेंच में इस केस की सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद इस विषय पर पहले से लंबित पंजाब, हरियाणा और बाकी राज्यों की समान रूप से एक ही सेवा के प्रोबेशनरी को भिन्न तरीके से लाभ दिए जाने के संबंधित लंबित याचिका के साथ जोड़ने के लिए निर्देशित किया गया। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता कौस्तुभ शुक्ला एवं अधिवक्ता रोहित शर्मा ने पैरवी की। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि 2018 राज्य सेवा परीक्षा के प्रवीणता में ऊंचे स्थान पर आए चयनित अभ्यर्थी हैं। वही उक्त चयन 273 पदों पर हुआ था, जिसमें से लगभग 240 लोगों को जो की प्रावीण्य सूची से नीचे थे उन्हें पूर्ण वेतन पर नियुक्ति दी गई। वहीं याचिकाकर्ताओं का परिणाम देरी से घोषित होने के कारण तीन साल की परीविक्षा अवधि पर रखा गया है, जिसका आधार कोरोना महामारी से उत्पन्न आर्थिक स्थिति को बतलाया गया था।
क्या होती है परीवीक्षा अवधि
प्रोबेशन पीरियड को परीवीक्षा अवधि कहा जाता है। यह वह समय है जब कर्मचारी और नियोक्ता को एक दूसरे का पता चलता है। जिसके बाद ही कर्मचारी को परमानेंट या रेगुलर किया जाता है। इसमें कर्मचारी का मूल्यांकन होता है। देखा जाता है कि भर्ती कितनी सक्षम है, वे कैसे काम को संभालते हैं, और वे बाकी कर्मचारियों के साथ कैसे फिट होते हैं।