सरगुजा: अपर सत्र न्यायाधीश फ़ास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (पाक्सो एक्ट) पूजा जायसवाल की अदालत ने मंदबुद्धि किशोरी के साथ दुष्कर्म के आरोपी युवक को 20 वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। रेप के बाद गर्भवती हुई किशोरी ने बालिका को जन्म दिया। वह मामले में बयान दर्ज कराने गोद में मासूम बच्चे को भी लेकर साथ गई थी। मामले में कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि दुष्कर्म के मामले में स्त्री बिना किसी गुनाह के सारी उम्र गुनाहगार बना दी जाती है।
सरगुजा जिले के एक गांव की 15 वर्षीय मंदबुद्धि किशोरी का पेट बढ़ने पर घरवालों को उसके गर्भवती होने का पता चला था। पूछताछ पर पीड़िता ने अर्जुन चेरवा नामक युवक द्वारा पहले घुमाने ले जाकर रेप करने एवं बाद में गिफ्ट देने के बहाने रेप करने की जानकारी अपनी मां को दी। घटना की रिपोर्ट 25 अप्रैल 2020 को गांधीनगर थाने में दर्ज कराई गई थी। आरोपी ने पीड़िता के साथ पांच-छह महीने पहले रेप किया था। आरोपित को गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजा गया था।
अपर सत्र न्यायाधीश का फास्ट ट्रेक स्पेशल कोर्ट
आरोप प्रमाणित करने डीएनए टेस्ट भी
प्रकरण की विवेचना में पुलिस ने आरोपी का डीएनए टेस्ट भी कराया था, ताकि आरोपी को सबूत मजबूत न होने का लाभ न मिल सके। जब प्राथमिकी हुई थी तब पीड़िता गर्भवती थी। जब वह न्यायालय में बयान देने आई तो उसके संतान का जन्म हो चुका था। बाल कल्याण समिति में भी उसका बयान दर्ज कराया गया था।
तीन धाराओं में 20-20 वर्ष की सजा
अतिरिक्त लोक अभियोजक राकेश सिन्हा ने बताया कि पीड़ित के अधिवक्ता ने आरोपी की उम्र 20 वर्ष होने का हवाला देकर न्यूनतम सजा की अपील की थी। मामले की सुनवाई करते हुए अपर सत्र न्यायाधीश पूजा जायसवाल ने इसे खारिज कर दिया। न्यायालय ने धारा 376 (2)(ढ) के तहत 20 वर्ष, धारा 376 (3) के तहत 20 वर्ष व पास्को एक्ट की धारा के तहत 20 वर्ष की सजा सुनाई है। तीनों सजाएं साथ चलेंगी। इसके साथ ही आरोपी पर 1000-1000 रुपये का अर्थदंड अधिरोपित किया गया है। अर्थदंड की राशि अदा नहीं करने पर आरोपित को एक-एक माह अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
वरदान ही बन जाता है अभिषाप
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि न्यायालयीन साक्ष्य के दौरान पीड़िता की एक संतान हो चुकी थी। सामान्यतः देखा जाए तो प्रकृति ने स्त्री को जन्म देने का कितना खूबसूरत वरदान दिया है, लेकिन दुष्कर्म पीड़िताओ के लिए यही वरदान अभिशाप बनकर उसकी सारी जिंदगी को डस लेता है। ना सिर्फ वह स्त्री लांछित की जाती है, बल्कि इस दुनिया में लाया गया वह नन्हा जीव भी अपमानजनक जीवन जीने के लिए विवश हो जाता है।
न्यायालय ने कहा कि स्त्री बिना किसी गुनाह के सारी उम्र गुनाहगार बना दी जाती है। इस प्रकरण में भी पीड़िता को अपने बच्चे को एक पिता का नाम दिलाने के लिए स्वयं से कहीं अधिक उम्र 50-55 वर्ष के व्यक्ति के साथ उसकी पत्नी बनकर निवास करना पड़ रहा है।