रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य के स्कूली बच्चे स्थानीय बोली-भाषा में कहानियों को पढ़ेंगे। इसके लिए बाल रूचिकर कहानियों का स्थानीय बोली भाषा में अनुवाद कराया जा रहा है। इसके पीछे यह उद्देश्य है कि बच्चों में पठन कौशल विकसित किया जा सके। कहानी की पुस्तकों में आकर्षक चित्र भी होंगे, जिसे देखकर बच्चों में कहानियों को पढ़ने और समझने की जिज्ञासा बढ़ेगी। स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत समग्र शिक्षा द्वारा तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कर भाषा समूहों के शिक्षकों द्वारा कहानियों का स्थानीय बोली भाषा में अनुवाद कराया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि मूलभूत साक्षरता के अंतर्गत किए गए कार्यों के अध्ययन के लिए छत्तीसगढ़ का एक दल मध्यप्रदेश और मध्यप्रदेश का एक दल छत्तीसगढ़ का भ्रमण किया। शैक्षिक भ्रमण के दौरान छत्तीसगढ़ के दल ने वहां रूम-टू-रीड द्वारा विकसित 50 कहानियों के कार्ड को बच्चों द्वारा फर्राटेदार तरीके से पढ़ते देखा। इसको देखते हुए छत्तीसगढ़ समग्र शिक्षा ने रूम-टू-रीड के साथ मिलकर स्थानीय भाषाओं में इन कार्ड के अनुवाद का कार्य प्रारंभ किया। वर्तमान में 14 भाषाओं में 28 शिक्षकों द्वारा इन 50 कार्डों के अनुवाद का किया जा रहा है। शिक्षकों द्वारा इन कार्ड की कहानियों को राज्य की संस्कृति एवं परंपराओं को ध्यान में रखकर बदलाव भी किया जा रहा है।
स्थानीय बोली-भाषा में सामग्री बनाए जाने के क्रम में राज्य में एक ऐसा दल तैयार किया जा रहा है, जो बच्चों के लिए कहानी लिखने में दक्ष हो। ऐसे लगभग बीस शिक्षकों की पहचान कर उन्हें बच्चों के लिए कहानी लिखने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उनके द्वारा अब तक छह कहानियों को अंतिम रूप देते हुए उनका भी 14 स्थानीय भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है। इन कहानी की पुस्तकों में बच्चों की रूचि अनुसार चित्र बनाने के लिए खैरागढ़ विश्वविद्यालय के प्रशिक्षित चित्रकारों को भी शामिल किया गया है। इन चित्रकारों को भी बच्चों के लिए चित्र बनाने संबंधी कार्यशाला आयोजित कर उनका क्षमता विकास किया गया है।
वर्तमान में जी-20 के अंतर्गत आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में भाषा समूह के शिक्षकों द्वारा अनुवाद कार्य जारी है। इस कार्यशाला में शामिल बेमेतरा जिले की शिक्षिका श्रीमती शीतल बैस द्वारा कार्यशाला के अन्य प्रतिभागियों से चर्चा कर पुणे में 14 से 22 जून तक आयोजित होने वाली प्रदर्शनी में हिस्सा लेंगी।