Thursday, October 10, 2024




Homeछत्तीसगढ़लेख: वीर बाल दिवस- साहस की परंपरा को निरंतर बढ़ाने की सार्थक...

लेख: वीर बाल दिवस- साहस की परंपरा को निरंतर बढ़ाने की सार्थक पहल…

रायपुर: सिखों के दशम गुरु गोविंद सिंह के दो बालकों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के शहादत की स्मृति में वीर बाल दिवस मनाने की परंपरा का आरंभ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किया है। कई मायनों में यह पहल ऐतिहासिक है। देश के भारत नाम के पीछे कही जाने वाली बहुत सी अनुश्रुतियों में से एक हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के संबंध में है। जब पहली बार दुष्यंत ने वन में इस बालक को देखा तो वो शेरों के दांत गिन रहा था। भारत के नामकरण के पीछे इस बालक भरत के शौर्य को बताया जाता है।

बचपन से ही वीरता के भाव को जगाने का प्रयास हमारी भारतीय संस्कृति में मिलता है और उपनिषदों से इसकी कहानियां मिलनी आरंभ हो जाती है। उपनिषदों में नचिकेता, आरूणि और श्वेतकेतु जैसे जिज्ञासु बालकों का जिक्र है जिनमें सत्य की प्राप्ति के लिए अपना सब कुछ नष्ट करने का साहस था। रामायण और महाभारत में बालकों के पराक्रम की कहानियां भरी हुई हैं। राजर्षि विश्वामित्र जब राजा दशरथ के दरबार में आये और निर्विध्न यज्ञ से निबटने के लिए क्षत्रिय योद्धाओं को भेजने का आग्रह सामने रखा तो उन्होंने केवल श्रीराम और लक्ष्मण को साथ भेजने का आग्रह राजा दशरथ से किया।

भारत में नेतृत्व का गुण बचपन से ही देखे जाने की परंपरा रही है। हिंदी में कहावत है कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। जब चाणक्य ने देश से नंद वंश के समूलनाश का निर्णय लिया तो उन्होंने इसके क्रियान्वयन के लिए एक बालक चंद्रगुप्त को परखा और इसका जिम्मा सौंपा। भारत के सबसे चर्चित योद्धा पृथ्वीराज चौहान भी चौदह वर्ष की आयु में दिल्ली की गद्दी पर बैठे और विदेशी आक्रमणों का प्रतिरोध किया।

भारतीय इतिहास के सबसे गौरवमयी क्षणों में वो रहा है जब गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों ने अपने प्रिय उद्देश्यों तथा स्वधर्म की रक्षा के लिए शहादत दी। साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ाई में जितना योगदान युवाओं का है उतना ही बालकों का भी। कोई खुदीराम बोस की शहीदी कैसे भूल सकता है। 14 साल की उम्र में खुदीराम बोस ने अंग्रेजी अत्याचार के विरुद्ध बिगूल फूंका और फांसी चढ़ गये। लाखों बच्चें अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़े और इसका विरोध किया।

आज से छह सौ साल पहले फ्रांस पर हुए हमले को रोकने एक बच्ची जान आफ आर्क सामने आई और फ्रांस की जनता को एकजुट किया। फ्रांस और पूरी यूरोपीय जनता इस बालिका को वीरता का आदर्श मानती है। 26 दिसंबर को गुरु गोविंद सिंह के बालकों की शहादत की तिथि पर वीर बाल दिवस मनाने की परंपरा आरंभ कर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत में वीरता के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने की सार्थक पहल की है। वीर बाल दिवस के माध्यम से बच्चों को इस देश की महान विरासत को जानने और समझने का मौका मिलता है तथा साहस की परंपरा को निरंतर बढ़ाने की दिशा में यह सार्थक प्रयास होता है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -


Most Popular