Friday, November 21, 2025

              बड़ी खबर: भारत को Su-57 स्टेल्थ फाइटर जेट्स देने के लिए तैयार रूस, बिना शर्त तकनीक ट्रांसफर भी करेगा; यह 5वीं पीढ़ी का विमान, रडार की पकड़ से बाहर

              मॉस्को: रूस, भारत को Su-57 स्टेल्थ फाइटर जेट्स देने के लिए तैयार हो गया है। दुबई एयर शो में रूसी कंपनी रॉस्टेक के CEO सेर्गेई केमेजोव ने कहा कि वे इन फाइटर जेट्स की तकनीक भी बिना शर्त ट्रांसफर करेंगे।

              रूसी Su-57 जेट्स को अमेरिका के F-35 का तोड़ माना जाता है। Su-57 की तरह F-35 भी 5वीं जेनरेशन का लड़ाकू विमान है। इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह दुश्मन के रडार को चकमा दे सके।

              रूस से यह आश्वासन ऐसे समय आया है, जब भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में मॉस्को में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की है। पुतिन अगले महीने भारत आने वाले हैं।

              भारत में ही Su-57 के प्रोडक्शन को तैयार रूस

              CEO सेर्गेई केमेजोव ने कहा कि भारत और रूस कई दशकों से भरोसेमंद डिफेंस साझेदार रहे हैं। जब भारत पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे थे, तब भी रूस ने भारत की सुरक्षा के लिए हथियार सप्लाई करना जारी रखा था।

              उन्होंने कहा- आज भी हम वही पॉलिसी अपना रहे हैं। भारत को उसकी जरूरत के मुताबिक हर तरह का मिलिट्री इक्विपमेंट सप्लाई कर रहे हैं और भविष्य के सहयोग को और मजबूत कर रहे हैं।

              रूस का कहना है कि Su-57 की तकनीक पर कोई रोक नहीं होगी। इसमें इंजन, रडार, स्टेल्थ तकनीक और आधुनिक हथियारों की जानकारी भी दी जा सकती है। रूस ने यह भी कहा कि अगर भारत चाहे तो Su-57 को भारत में ही बनाया जा सकता है।

              रूस ने भारत को टू-सीटर Su-57 बनाने की जॉइंट प्लानिंग का भी प्रस्ताव दिया है। उनका कहना है कि यह सब भारत में बिना किसी विदेशी प्रतिबंध की चिंता के किया जा सकेगा।

              कई दशक से रूस भारत का प्रमुख मिलिट्री सप्लायर रहा है। फाइटर जेट्स और सबमरीन से लेकर मिसाइल सिस्टम और हेलिकॉप्टर्स तक रूस भारत को मुहैया कराता रहा है।

              भारत को Su-57 तकनीक मिलने का मतलब क्या है

              भारत को Su-57 तकनीक मिलने का मतलब है कि भारत भविष्य में अपना Su-57 वर्जन बना सकता है। तकनीक ट्रांसफर करना सामान्य बात नहीं है। खासकर लड़ाकू विमान जैसे हाई-एंड डिफेंस सिस्टम में।

              दरअसल, फाइटर जेट टेक्नोलॉजी दुनिया की सबसे सीक्रेट और संवेदनशील तकनीक होती है। फाइटर जेट सिर्फ एक मशीन नहीं है बल्कि यह किसी भी देश की सैन्य ताकत, इंजीनियरिंग क्षमता और स्ट्रैटजिक बढ़त का प्रतीक है।

              Su-57 जैसी 5वीं पीढी के मिसाइल में स्टील्थ डिजाइन, एवियोनिक्स, सेंसर फ्यूजन, इंजन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम जैसी चीजें शामिल होती हैं।

              यह ऐसी तकनीक होती है जिसे देश आसानी से शेयर नहीं करते, क्योंकि एक बार तकनीक शेयर हो जाने पर उसकी कॉपी बनना आसान हो जाता है।

              रूस ने Su-57 तकनीक किसी को नहीं दी

              चीन जो कि रूस का सबसे बड़ा डिफेंस पार्टनर है उसे भी Su-57 की तकनीक नहीं दी गई है। रूस ने चीन को सिर्फ Su-35 फाइटर दिया है, वह भी बिना इंजन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के।

              जब तकनीक ट्रांसफर न होने का भारत को नुकसान उठाना पड़ा

              1980 के दशक में भारत ने फ्रांस से Mirage-2000 फाइटर खरीदे, लेकिन इंजन, रडार, इलेक्ट्रॉनिक्स, किसी की भी तकनीक ट्रांसफर नहीं मिली। तीन दशक बाद मिराज के इंजन और एवियोनिक्स पुराने होने लगे थे।

              भारतीय वायुसेना चाहती थी कि मिराज के हथियार अपडेट हों। उसके रडार बदले जाएं, लेकिन टेक्नोलॉजी भारत के पास नहीं थी। भारत ने कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सका।

              अपग्रेड के लिए भारत ने फरवरी 2010 में फ्रांस से गुहार लगाई। फ्रांस ने तब इसकी कीमत लगभग 24,000 करोड़ बताई। लंबी बातचीत के बाद जुलाई 2011 में भारत और फ्रांस के बीच 9,746 करोड़ रुपए पर अपग्रेड कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत किए गए।

              यानी कि भारत ने सिर्फ अपग्रेड के लिए हजारों करोड़ रुपए दिए। भारत के पास चॉइस नहीं थी, क्योंकि बिना अपग्रेड मिराज बेकार हो जाते। कारगिल जंग में मिराज ने अच्छा परफॉर्मेंस दिया था इसलिए भारत इसे यूं ही बर्बाद होते नहीं देखना चाहता था।

              भारतीय वायुसेना का मिराज 2000

              भारतीय वायुसेना का मिराज 2000

              अमेरिका किसी देश से तकनीक ट्रांसफर नहीं करता

              तकनीक ट्रांसफर न होने से खरीदार देश को कई तरह के नुकसान होते हैं। अगर तकनीक नहीं मिलती है तो खरीदार देश को मेंटेनेंस, रिपेयर, स्पेयर पार्ट्स और अपग्रेड के लिए हमेशा निर्माता देश पर निर्भर रहना पड़ता है।

              भारत ने कई हथियार अमेरिका से खरीदे हैं, लेकिन तकनीक ट्रांसफर न होने से नुकसान उठाना पड़ा है।

              भारत के पास अमेरिकी C-17 और C-130J ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट हैं, लेकिन इसे भारत अपग्रेड नहीं कर सकता है। स्पेयर पार्ट्स सिर्फ अमेरिका से आते हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि भारत इसका ‘ब्लैक बॉक्स’ तक एक्सेस नहीं रखता।

              भारत के पास अमेरिकी P-8I पोसाइडन है, लेकिन अमेरिका ने इसकी रडार और एंटी-सबमरीन टेक्नोलॉजी साझा नहीं की है।

              भारत खुद पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट बना रहा

              भारत खुद के 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान पर काम कर रहा है, जिसका प्रोटोटाइप 2-3 साल में पूरा हो जाएगा। 2024 में सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (CCS) ने पांचवीं पीढ़ी के स्वदेशी फाइटर जेट के डिजाइन और डेवलपमेंट के लिए 15 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी।

              कैबिनेट समिति के मुताबिक AMCA विमान भारतीय वायु सेना के अन्य लड़ाकू विमानों से बड़ा होगा। इसमें दुश्मन के रडार से बचने के लिए एडवांस्ड स्टेल्थ टेक्नोलॉजी होगी। यह दुनिया में मौजूद पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ लड़ाकू विमानों के जैसा या उससे भी बेहतर होगा।


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