Sunday, April 28, 2024
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Chhattisgarh : जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज ने समाधि ली, डोंगरगढ़ के चन्द्रगिरि में थोड़ी देर में अंतिम संस्कार; छत्तीसगढ़-MP में आधे दिन का राजकीय शोक

  • विद्यासागरजी ने 22 की उम्र में दीक्षा ली थी, आजीवन नमक-चीनी, हरी सब्जी, दूध-दही नहीं खाया, दिन में एक बार पानी पीते थे।

Dongargarh: छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में शनिवार (17 फरवरी) देर रात 2:35 बजे दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपना शरीर त्याग दिया।

उन्होंने आचार्य पद का त्याग करने के बाद 3 दिन का उपवास और मौन धारण कर लिया था, इसके बाद उन्होंने प्राण त्याग दिए।

उनके शरीर त्यागने की खबर मिलने के बाद जैन समाज के लोग डोंगरगढ़ में बड़ी संख्या में पहुंचे हैं। थोड़ी देर में उनका अंतिम संस्कार होगा।

मध्यप्रदेश में सरकार के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द किए जा रहे हैं, साथ ही आधे दिन का‌ राजकीय शोक रहेगा। छत्तीसगढ़ में भी सरकार ने आधे दिन का राजकीय शोक घोषित किया है।

17 फरवरी को देर रात 2:35 बजे आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने देह का त्याग किया।

17 फरवरी को देर रात 2:35 बजे आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने देह का त्याग किया।

जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज ने शनिवार रात 2.30 बजे देह त्याग कर दिया। अभी कुछ देर बाद उनका अंतिम संस्कार होगा। आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में हुआ था। उस दिन शरद पूर्णिमा थी। उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में अपने गुरु आचार्य श्रीज्ञानसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ली थी। आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था।

22 साल की उम्र में घर, परिवार छोड़ उन्होंने मुनि दीक्षा ली थी। दीक्षा के पहले भी उनका नाम विद्यासागर ही था। उन्होंने शुरुआत से ही कठिन तप में खुद को लगा दिया। उन्होंने दूध, दही, हरी सब्जियां और सूखे मेवों का अपने संन्यास के साथ ही त्याग कर दिया था। संन्यास के बाद उन्होंने कभी ये चीजें ग्रहण नहीं की। पानी भी दिन में सिर्फ एक बार अपनी अंजुलि से भर कर पीते थे। बार-बार पानी नहीं पीते थे। पैदल ही पूरे देश में भ्रमण किया।

पढ़िए, संत श्री विद्यासागर जी के जीवन से जुड़ी खास बातें…

कर्नाटक में जन्म, राजस्थान में दीक्षा

जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी। विद्यासागर जी को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के शिष्य थे। 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी ने उन्हें आचार्य पद दिया था।

पूरा परिवार ले चुका है संन्यास

विद्यासागर जी के बड़े भाई अभी मुनि उत्कृष्ट सागर जी है। उनके सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है। उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी के नाम से जाने जाते हैं। माता-पिता भी संन्यास ले चुके हैं।

कई भाषाओं के जानकार थे, Ph.D. भी की

आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।

आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है।मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।

कोई बैंक अकाउंट नहीं, ट्रस्ट भी नहीं बनाया

आचार्य विद्यासागर जी ने कभी किसी से पैसा नहीं लिया। वे धन संचय के खिलाफ थे। उन्होंने ना कभी कोई ट्रस्ट बनाया, जिसके जरिए पैसा ले सकें। ना ही कभी अपने नाम का कोई बैंक अकाउंट खुलवाया। वे दक्षिणा या दान में भी कभी पैसा नहीं लेते। नजदीक से जानने वालों का दावा है कि उन्होंने कभी पैसे को हाथ नहीं लगाया। जो पैसा कभी उनके नाम पर लोग दान भी करते तो उसे वे समाज सेवा में लगाने के लिए दे देते थे।

Muritram Kashyap
Muritram Kashyap
(Bureau Chief, Korba)
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