Wednesday, November 6, 2024




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छत्तीसगढ़ में गोबर-गौमूत्र से बनी देश की पहली चटाई… PM मोदी को उपहार देंगे गौशाला संचालक, 54 कारीगरों ने 11 महीने में किया तैयार

खैरागढ़: जिले में धरमपुर रोड स्थित मनोहर गौशाला में सौम्या कामधेनु गाय के 100 किलो गोबर और गौमूत्र से देश की पहली चटाई बनाई है। जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाएगा। एक हफ्ते के अंदर स्पीड पोस्ट के जरिए चटाई भेजी जाएगी। 14.5 किलो वजनी चटाई को 54 कारीगरों ने मिलकर 11 महीने में तैयार किया।

इसे बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि गोबर की कालीन, चरक ऋषि की चरक चटाई है। इसका शास्त्रों में भी वर्णन है। हमने उसे ही बनाने की कोशिश की है। पूर्व राज्यपाल अनुसुईया उईके भी 5 बार गौशाला कामधेनु माता देखने खैरागढ़ आ चुकी हैं। वहीं 10 देशों के प्रतिनिधि, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज और जगन्नाथ पुरी के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निखिलानंद सरस्वती भी गौशाला में पहुंच चुके हैं।

मनोहर गौशाला में कलाकारों ने सौम्या कामधेनु गाय के गोबर और गौमूत्र से चटाई बनाई है।

मनोहर गौशाला में कलाकारों ने सौम्या कामधेनु गाय के गोबर और गौमूत्र से चटाई बनाई है।

‘पांच साल से चटाई बनाने की कोशिश कर रहे थे’

गौशाला संचालक अखिल पदम डाकलिया ने बताया कि यह चटाई पूरी तरह से गौमूत्र और सौम्या कामधेनु गाय के गोबर से बनी है। पांच साल से इसे बनाने की कोशिश कर रहे थे। हमने यह चटाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए तैयार की है। इससे पहले हम गौशाला में गोबर के दीये, राखी, ब्रेसलेट और गणपति जी भी बनाते हैं। राज्यपाल अनुसुईया उईके ने पीएम मोदी को गोबर की राखी बांध चुकी है।

‘प्लास्टिक मानव समाज का दुश्मन’

साधारण और गोबर की चटाई के बीच अंतर बताते हुए अखिल पदम ने कहा कि प्लास्टिक मानव समाज का दुश्मन है। अब हम पुराने समय में लौट रहे हैं। गाय के अंदर देवी लक्ष्मी का वास होता है। हम बहुत करीब से काम कर रहे हैं। हम मानव स्वास्थ्य के अच्छे प्रचार के लिए काम कर रहे हैं। इस चटाई में स्वास्थ्य के देवता विराजमान हैं। इससे कई बीमारियां भी दूर हो जाएंगी।

गोबर की चटाई बनाने की विधि

अखिल पदम डाकलिया ने बताया कि यह चटाई पूरी तरह से हाथ से ‘चरक ऋषि की पद्धति’ से बनाई गई है। सबसे पहले सुबह 7 बजे गोबर को 14 दिन तक धूप दिखाना पड़ता है। कामधेनु की गोबर से ही यह बनता है। तब गोबर से लश और गोंद की तरह चिपचिपा निकलता है। उसके बाद पतले-पतले आकार के गोबर के बट्स बनाते हैं।

पतले आकार का बट्स बनाते समय 90 प्रतिशत टूट जाते हैं। केवल 10 प्रतिशत बिट्स से ही चटाई बनती है। चटाई में केवल गौबर, गौमूत्र और नायलॉन रस्सी का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने बताया कि कलकत्ता के कारीगार और गौशाला के कर्मचारियों ने मिलकर काम किया है।

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