
- छत्तीसगढ़ी व्यंजनों से सजी ’गढ़ कलेवा’ ने न केवल दिया रोजगार, बल्कि दिखा दी सैकड़ों महिलाओं को आत्मनिर्भरता की राह
- बिहान योजना से मिली उड़ान, आर्थिक मजबूती के साथ सामाजिक बदलाव की बन गई मिसाल
कोरबा (BCC NEWS 24): कहते हैं परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, अगर इरादे मजबूत हों तो हर मुश्किल राह आसान बन जाती है। जिले की श्रीमती नीलम सोनी ने यह साबित कर दिखाया कि अगर जुनून हो तो साधारण सी जिंदगी भी एक असाधारण मिसाल बन सकती है। घरेलू जिम्मेदारियों में बंधकर बैठने के बजाय उन्होंने बदलाव को चुनाकृखुद के लिए, अपने परिवार के लिए और उन सैकड़ों महिलाओं के लिए जो कभी समाज की सीमाओं में सिमटी थीं। चुनौतियों से लड़कर उन्होंने न सिर्फ अपना आर्थिक और सामाजिक कद ऊँचा किया, बल्कि दूसरों के जीवन में भी उम्मीद की किरण जगाई। आज वे केवल एक सफल उद्यमी ही नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की प्रेरणादायक प्रतीक बन चुकी हैं।
कोरबा जिले के कटघोरा में रहने वाली श्रीमती सोनी के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। पति अकेले कमाने वाले थे और घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। अपने बच्चों के भविष्य और अपने आत्मसम्मान के लिए नीलम ने ठान लिया कि कुछ करना है। उन्होंने अपनी बेटी ’श्रिया’ के नाम पर ’श्रिया स्व-सहायता समूह’ से जुड़कर अपनी नई यात्रा की शुरुआत की। यही वह मोड़ था जहाँ से उन्होंने अपने जीवन को नए रंगों से रंगना शुरू किया। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (छत्स्ड) के अंतर्गत सरकार द्वारा संचालित ‘बिहान’ योजना से जुड़कर श्रीमती नीलम सोनी को एक नई दिशा और पहचान मिली। उन्होंने शासन की सहायता से छह लाख रुपये का ऋण प्राप्त किया और कटघोरा में ‘गढ़ कलेवा’ नामक एक परंपरागत छत्तीसगढ़ी भोजनालय की शुरुआत की। शुरुआत में राह आसान नहीं थी, लेकिन दृढ़ निश्चय और परिश्रम ने उन्हें पीछे मुड़कर देखने का मौका नहीं दिया।
उन्होंने गढ़ कलेवा में छत्तीसगढ़ी व्यंजनों जैसे चीला, फरा, ठेठरी, खुरमी, अईरसा, चौसेला, तसमई, करी लड्डू, सोहारी आदि के साथ-साथ मिलेट्स (मोटा अनाज) से बने पारंपरिक पकवानों को परोसना शुरू किया। गढ़ कलेवा सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को संजोने और आगे बढ़ाने का एक माध्यम बन गया। यहाँ आने वाले लोगों को न केवल स्वादिष्ट छत्तीसगढ़ी खाना मिलता है, बल्कि वहाँ की सजीवता और पारंपरिक सजावट भी उन्हें अपनेपन का अहसास कराती है। वो बताती हैं कि उन्होंने अपने व्यवसाय के साथ-साथ बांस की कलाकृतियाँ, हस्तनिर्मित सजावटी वस्तुएँ भी बनाना शुरू किया, जिससे अतिरिक्त आय के साथ-साथ राज्य की लोककला को भी बढ़ावा मिला। आज समूह से लगभग 200 महिलाएं जुड़ी हुई हैं, जिनमें से 20 महिलाएं सीधे गढ़ कलेवा में कार्यरत हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने समूह में पीवीटीजी बिरहोर जनजाति की महिलाओं को भी जोड़ा है, जो पहले आजीविका के अवसरों से वंचित थीं। आज वे भी आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही हैं।
नीलम जी कहती हैं, “आज मेरे लिए सबसे बड़ा संतोष इस बात का है कि मैं अकेली नहीं बढ़ी, मेरे साथ मेरी बहनों का पूरा परिवार भी आगे बढ़ा है।“ चार साल पहले जिस महिला ने महज आत्मनिर्भर बनने की चाह में कदम बढ़ाया था, आज वह हर महीने लगभग 1.5 लाख रुपये का टर्नओवर करती हैं।
उनका सालाना टर्नओवर अब 12 लाख रुपये के करीब पहुंच चुका है। उनका यह सफर इस बात का सजीव उदाहरण है कि महिलाएं यदि ठान लें तो हर क्षेत्र में बदलाव की मिसाल बन सकती हैं। छत्तीसगढ़ शासन, बिहान मिशन और विशेषकर मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय व जिला प्रशासन कोरबा का धन्यवाद देते हुए कहा, “यदि शासन की योजनाएं और अधिकारियों का सहयोग न मिला होता, तो मैं और मेरे जैसी सैकड़ों महिलाएं शायद अभी भी घर की चार दीवारों तक सीमित रहतीं। बिहान ने हमें न केवल आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि अपने सामर्थ्य पर विश्वास करना भी सिखाया।” अब श्रीमती नीलम चाहती हैं कि उनका गढ़ कलेवा राज्य के हर जिले में फैले, ताकि स्थानीय व्यंजनों और छत्तीसगढ़ी संस्कृति को देशभर में पहचान मिले। वह अपने व्यवसाय को एक मॉडल बनाकर अन्य महिलाओं को ट्रेनिंग भी देना चाहती हैं, ताकि और भी “लखपति दीदी” इस राज्य से निकलें और आत्मनिर्भर भारत के सपने को सच करें।

(Bureau Chief, Korba)