Monday, March 10, 2025
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KORBA : श्री अग्रसेन कन्या महाविद्यालय, कोरबा द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का द्वितीय दिवस : ऐसे आयोजन छात्रों और शिक्षाविदों को ऐतिहासिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से जागरूक करती हैं

कोरबा (BCC NEWS 24): श्री अग्रसेन कन्या महाविद्यालय, कोरबा द्वारा लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की प्रशासनिक व्यवस्था: वर्तमान संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दुसरे दिन संगोष्ठी में देशभर के विशेषज्ञों और शिक्षाविदों ने हिस्सा लिया। उन्होंने समाज और प्रशासनिक संरचना पर अहिल्याबाई होल्कर के प्रभाव और उनके योगदान के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किये। उक्त राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय दिवस कार्यक्रम की शुरुआत में प्राचार्य डॉ. मनोज कुमार झा ने उद्घाटन सत्र का शुभारंभ करते हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। अपने स्वागत भाषण में उन्होंने संगोष्ठी के आयोजन को महत्तवपूर्ण बताते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन छात्रों और शिक्षाविदों को ऐतिहासिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से जागरूक करती हैं।

संगोष्ठी के दूसरे दिन का प्रथम सत्र तकनीकी सत्र के रूप में रखा गया। जिसमें सीआईपीएस-आरएफ, सैन्य मनोवैज्ञानिक और वार स्ट्रेटेजिस्ट की अध्यक्ष डॉ. वर्णिका शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर का जीवन संघर्ष, भाषण का नहीं अपितु उनके आचरण से सीख लेने का है। लोकमाता अहिल्याबाई ने परहित को ही अपना धर्म समझा और विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए भारत के अनेको मंदिरों का जीर्णाेद्धार किया। उन्होंने धर्म और शासन को एक ही सिक्के के दो पहलू बताया। लोकमाता अहिल्याबाई की नेतृत्व क्षमता और प्रशासनिक फैसले आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं । भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा, बिहार के विशेषज्ञ देवबंश सिंह ने संगोष्ठी में अपने संक्षिप्त उद्बोधन में लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर जैसे विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित करने के लिए श्री अग्रसेन कन्या महाविद्यालय परिवार की प्रशंसा की।

उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी हमारे भावी पीढ़ी के गलत ज्ञान के बीच प्रकाश का नया बीजारोपण करेगी तथा इतिहास के पन्नों में दबे इन महान विभूतियों को देश के पटल पर लाने में सहायक सिद्ध होगी । उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान न्याय व्यवस्था को लोकमाता की न्याय व्यवस्था से सीख लेने की आवश्यकता है क्योंकि उन्होंने न्याय के लिए अपने पुत्र को भी क्षमा नहीं किया। उन्होंने कहा कि दोहरी राजनीति की बातों से उनके व्यक्तित्व को देश के पटल पर लाने के बजाय हमेशा उपेक्षित किया जाते रहा है। श्री सिंह ने यह भी कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई ने धर्मो रक्षति रक्षिता के आदर्श का हमेशा पालन किया, उनका सादा जीवन और राष्ट्र के प्रति प्रेम आज भी हमारे भावी राष्ट्र के लिए एक आदर्श है। प्रथम सत्र में महाविद्यालय के प्राध्यापको एवं शोधार्थीयो के द्वारा भी अहिल्या बाई से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर अपने -अपने शोध पत्रों का वाचन किया गया।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे सत्र में मगध विश्वविद्यालय, बोधगया, बिहार के मुख्य वक्ता डॉ. धर्मेन्द्र कुमार ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय परम्परा में सद्विचार और सदाचरण को ही धर्म माना गया है, जिसमें ये दो गुण है वहीं राजा या शासक जनमानस को सुख पहुँचा सकता है। 18 वीं सदी के भारत में देवी अहिल्याबाई होल्कर भारतीय इतिहास की उन चुनिन्दा नायिकाओं में से एक हैं जिन्होंने शालीनता, करुणा एवं प्रशासनिक कौशल के बेहतरीन मिश्रण के साथ शासन किया। इस असाधारण महिला ने  स्थापित सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हुए न केवल राजनीतिक एवं कूटनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया वरन सामजिक सुधार, सार्वजनिक कार्यों और धार्मिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी सर्वथा नवीन मानदंड स्थापित किये। उनके द्वारा लोकहित में किये गए कार्यों के कारण ही भारतवासी उन्हें पुण्य श्लोका, देवी एवं लोकमाता के रूप में जानते हैं।

भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इतिहास के पन्नो में सीमित स्थान प्राप्त किन्तु महान नायिका देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं वर्षगाँठ को पुरे देश में व्यापक रूप से जयंती के रूप में मनाने का संकल्प लिया है, जिससे समाज में उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के सन्देश को संप्रेषित किया जा सके। अहिल्याबाई होल्कर का जीवन-चरित्र एवं उनकी उपलब्धियाँ अपने समकालीन शासकों से कहीं श्रेष्ठतर हैं। व्यक्तिगत हितों और पेशेवर दायित्वों के मध्य संतुलन बनाने की उनकी क्षमता, बुनियादी ढाँचे के निर्माण में उनका योगदान, महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए किये गए उनके प्रयास एवं सामाजिक सुधार हेतु उठाये गए कदम अतुलनीय हैं। वे ज्ञान, शक्ति और प्रगतिशील नेतृत्व की एक ऐसी मिसाल हैं, जो आने वाली पीढिय़ों को सदैव प्रेरित करती रहेंगी। अहिल्याबाई कहा करती थी कि ईश्वर ने मुझे जो दायित्व दिया है, उसे मुझे निभाना है। मेरा काम प्रजा को सुखी रखना है। मैं अपने प्रत्येक काम के लिए जिम्मेदार हूँ। सामर्थ्य और सत्ता के बल पर मैं यहाँ जो-कुछ भी कर रही हूँ, उसका ईश्वर के यहाँ मुझे जवाब देना पड़ेगा। यह संगोष्ठी न केवल अहिल्याबाई के योगदान को पुन: रेखांकित करती है, बल्कि वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था में उनके विचारों की प्रासंगिकता को भी उजागर करती है।

कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. अन्नू सिंह ने संगोष्ठी को सफल बनाने में सभी सहयोगियों और वक्ताओं के योगदान को सराहा और उपस्थितजनों का आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी में उपस्थित विद्यार्थियों और शिक्षाविदों ने लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की प्रशासनिक व्यवस्था को समझा और उनके कार्यों से प्रेरणा लेने का संकल्प लिया। कार्यक्रम के दौरान इस अवसर पर शिक्षण समिति के अध्यक्ष सुनील जैन, सचिव पवन अग्रवाल, कोषाध्यक्ष पुरुषोत्तम गुप्ता तथा शिक्षण समिति के अन्य सदस्यों के साथ ही साथ आमंत्रित महाविद्यालयों के प्राचार्य,डॉ.शिखा शर्मा, डॉ.साधना खरे, डॉ.एन पी यादव, डॉ डेजी कुजूर, डॉ प्रशांत बोपापुरकर, मृगेश यादव एवं आमंत्रित महाविद्यालयों के  प्राध्यापकगण प्रो संदीप शुक्ला, डॉ वाय के तिवारी, प्रो ब्रिजेश शुक्ला, श्री अग्रसेन कन्या महाविद्यालय के प्राध्यापकगण, छात्र-छात्राएं, आमंत्रित अतिथिगण, शोधार्थी सहित बड़ी संख्या में आम नागरिक उपस्थित रहे। 



Muritram Kashyap
Muritram Kashyap
(Bureau Chief, Korba)
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