नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आज सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र कम करने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट से सहमति की वैधानिक उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने का आग्रह किया गया है।
इस पर कोर्ट ने कहा था कि विषय बेहद संवेदनशील है और वह इस मामले को टुकड़ों में सुनने के बजाय निरंतर सुनना पसंद करेगा। सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने 24 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में दी लिखित दलीलों में कहा था-
16 से 18 वर्ष की आयु के किशोर-किशोरियों के बीच आपसी सहमति से बने संबंधों को POCSO अधिनियम, 2012 और भारतीय दंड संहिता (धारा 375) के तहत अपराध मानना गलत है।
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने कहा था कि अगर मामले की लगातार सुनवाई होती रहेगी, तो इससे जुड़े सभी मुद्दों का पूरा समाधान किया जा सकेगा।
केंद्र सरकार की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने लिखित जवाब में कहा कि सहमति से संबंध बनाने की कानूनी उम्र 18 साल रखना जरूरी है, इससे नाबालिगों को यौन शोषण से बचाया जा सकेगा।
केंद्र ने कहा- बाल संरक्षण कानून कमजोर होगा
केंद्र ने कहा कि अगर सहमति की उम्र कम की गई या नजदीकी उम्र का अपवाद जोड़ दिया गया, तो बाल संरक्षण कानून की बुनियाद कमजोर पड़ जाएगी और शोषण-तस्करी का खतरा बढ़ जाएगा। सरकार का कहना है कि हर मामले का फैसला अदालतें ही करें, इसे कानून में आम अपवाद बनाकर शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
एडवोकेट जयसिंह ने उदाहरण देते हुए कहा कि कई बार 16 से 18 साल के किशोर आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं, लेकिन फिर भी उन पर केस चल जाता है। उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में सहमति होने पर भी किशोरों को मुकदमे झेलने पड़ते हैं, जिससे उनका भविष्य प्रभावित होता है।
उन्होंने निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ मामले का हवाला देकर कहा कि अदालत को इन सभी मुद्दों को एक साथ देखना चाहिए।

(Bureau Chief, Korba)




