Rajasthan: पांच साल की मासूम के पेट से डॉक्टरों ने बालों का गुच्छा निकाला है। ट्राइको बेजार बीमारी से पीड़ित बच्ची खुद के बाल खा रही थी। इससे उसके पेट में बालों का गुच्छा बन गया था। पेट दर्द और भूख नहीं लगने की शिकायत पर परिजन उसे डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाए। बुधवार को 9 डॉक्टरों की टीम ने 40 मिनट तक ऑपरेशन कर बच्ची के पेट से 350 से 400 ग्राम बालों का गुच्छा निकालकर उसकी जान बचाई।
डूंगरपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ऑपरेशन के बाद बच्ची स्वस्थ है।
मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ. महेंद्र डामोर ने बताया- 16 अप्रैल की रात के समय खडगदा गांव की एक 5 साल की बच्ची को लेकर उसके माता-पिता अस्पताल पहुंचे। माता-पिता ने बताया- बच्ची को भूख नहीं लगती है। पेट में सूजन है और खाने-पीने में तकलीफ होती है। वरिष्ठ सर्जन डॉ. सुषमा यादव ने बच्ची की जांच करवाई, जिसमें बच्ची के पेट में बालों का गुच्छा होने का पता लगा। इस पर बच्ची को भर्ती कर लिया। वहीं, बुधवार को ऑपरेशन करना तय किया।
पेट दर्द से परेशान थी मासूम
डॉ. महेंद्र डामोर, डॉ. सुषमा, डॉ. अर्जुन खराड़ी, डॉ. रजत यादव, डॉ. सुहानी गड़िया, डॉ. विनिता गोदा, डॉ. अमित जैन, डॉ. कुश, डॉ. कमला के साथ पुष्पा कटारा, जावेद, माया की टीम ने बुधवार को ऑपरेशन किया। 40 मिनट तक चले ऑपरेशन में बच्ची के पेट से करीब 350 से 400 ग्राम बालों का गुच्छा निकाला। बालों का ये गुच्छा पेट से लेकर आंतों तक फैला था। खाने की बजाय पेट में बाल थे। इससे बच्ची को खाने-पीने से लेकर कई तकलीफ हो रही थी।
9 डॉक्टरों की टीम ने 40 मिनट तक ऑपरेशन कर बच्ची के पेट से बालों का गुच्छा निकाला।
ट्राइकोबेजार बीमारी के कारण खा रही थी खुद के बाल
डॉ. सुषमा ने बताया- बाल खाने की आदत खासकर यूथ महिलाओं में होती है। छोटे बच्चों में ये आदत बहुत कम होती है। इसे ट्राइकोबेजार बीमारी कहते हैं। इसके बाद पेट में ये बाल गुच्छे की तरह जमा हो जाते हैं। इससे खाने-पीने की क्षमता खत्म हो जाती है। ऑपरेशन के बाद बच्ची की तबीयत अब ठीक है।
अस्पताल में पहले भी आया था ऐसा मामला
मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ. महेंद्र डामोर ने बताया- साल 2019 में एक महिला के पेट से इसी तरह का बालों का गुच्छा निकाला था। महिला को भी बाल खाने की आदत थी। बाल खाने की आदत से बच्चों का शारीरिक विकास रुक जाता है। भूख नहीं लगती है। कई बार बाल पेट और आंतों तक भर जाने से मुश्किलें बढ़ जाती हैं। ज्यादा समय तक यही स्थिति रहने पर जान का खतरा हो सकता है।
(Bureau Chief, Korba)