Monday, September 30, 2024




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BCC News 24: BIG न्यूज़- धधक रहे छत्तीसगढ़ के जंगल.. प्रदेशभर में रोजाना आग की औसतन 430 सूचनाएं वन विभाग तक पहुंच रही हैं; मार्च में ही जंगल में आग की 13414 सूचनाएं मिली

रायपुर: छत्तीसगढ़ के जंगल में आग तेजी से फैल रही है। बस्तर से लेकर सरगुजा तक और महासमुंद से कवर्धा तक प्रत्येक जिले का जंगल धधक रहा है। प्रदेशभर में रोजाना आग की औसतन 430 सूचनाएं वन विभाग तक पहुंच रही हैं। सिर्फ मार्च में ही जंगल में आग की 13414 सूचनाएं मिली हैं।

आखिर जंगलों में आग क्यों बेकाबू है और गर्मी के अलावा क्या वजह हैं, मिडिया टीम ने इसका पता लगाने के लिए राजधानी से 250 किमी के दायरे में 3 जिले के घने जंगलों का सर्वे किया। पता चला कि महुआ बीनने वाले और हाथी से सुरक्षा के लिए ग्रामीण आग लगा रहे हैं और तेंदूपत्ता-लकड़ी के लिए तस्कर भी। हालात ये हैं कि प्रदेश में पिछले छह साल में 544 किमी जंगल जल चुके हैं, यानी रायपुर जिले के क्षेत्रफल (226 वर्ग किमी) से तीन गुना।

महुआ बीनने वालों को रोकने के लिए वन विभाग के अफसर अपने-अपने इलाकों में कुछ उपाय कर रहे हैं, लेकिन तस्करों की आग रोकने का ठोस उपाय वन विभाग के पास भी नहीं है। मिडिया टीम धमतरी, गरियाबंद, महासमुंद से राजनांदगांव, कांकेर होते हुए बस्तर में घने जंगलों तक पहुंचे। सड़क के दोनों ओर ही जगह-जगह सुलगती आग या राख नजर आ रही है। गरियाबंद के मैनपुर पहाड़ों पर आग कई दिन से धधक रही है।

मिडिया टीम 31 मार्च को सुबह 10.10 बजे उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में थी। तब वहां पदस्थ वन अफसर को सूचना मिली कि कक्ष क्रमांक 351 में आग लगी है। वन विभाग की टीम किसी तरह उस पहाड़ी में पहुंची जहां जंगल जल रहा था। लगभग खड़ी चढ़ाई और 41 डिग्री से ज्यादा तापमान के बीच शुरू हुआ आग पर काबू पाने का अभियान। आधे घंटे में आग बुझाई गई, लेकिन हर जगह आग बुझाने की ऐसी सुविधा नहीं है। आग इतने दुर्गम जंगलों में लग रही है कि वन अमले का कई बार वहां पहुंच पाना मुश्किल नहीं है।

हड़ताल से और नुकसान
प्रदेश में 5 हजार से अधिक दैनिक वेतनभोगी वन कर्मचारी अपनी 12 सूत्रीय मांगों को लेकर अनििश्चतकालीन हड़ताल पर हैं। इनकी हड़ताल के चलते जंगल में लग रही आग पर काबू पाना बेहद मुश्किल हो रहा है। वन विभाग अस्थाई व्यवस्था के तौर पर स्थानीय ग्रामीणों की मदद ले रहा है, लेकिन ग्रामीण दक्ष नहीं है, इसलिए नतीजे उतने अच्छे नहीं हैं।

मिडिया नाॅलेज : हर साल 94 किमी जंगल राख, छह साल में रायपुर के क्षेत्रफल से तीन गुना वन नष्ट

जंगलों को ऐसा नुकसान
सालाना औसतन 94 वर्ग किमी जंगल झुलसा। वन औषधियां, कीमती पेड़ खाक।

चौंकाने वाली सच्चाई
छह साल में 594 वर्ग किमी जंगल जला, यह रायपुर जिले के क्षेत्रफल से भी तीन गुना।
यहां ज्यादा नुकसान
बीजापुर, सुकमा, बलरापुर, कोरिया, मनेंद्रगढ़, सूरजपुर, गरियाबंद, जशपुर, कांकेर, नारायणपुर, सरगुजा।

आग लगने के कारणों की पड़ताल और रोकने के उपाय बता रहे हैं एक्सपर्ट

1. महुआ के लिए
महुआ पेड़ों से गिरकर पत्तों में दब जाता है। इसे बीनना मुश्किल होता है। इसलिए ग्रामीण पेड़ों के नीचे आग लगा देते हैं, ताकि महुआ बीनने में आसानी हो सकें।

बचाव
ग्रामीणों को झाड़ू दिलवाई जाए, जिनसे वे पत्तों को हटा सकें। कई राज्यों ने इससे आग की घटनाओं को 60% तक कम कर दिया है।

2. हाथी के लिए
प्रदेश में कहीं-कहीं ग्रामीण हाथियों को गांवों में घुसने से रोकने के लिए जंगल में अा लगा रहे हैं। इससे हाथी तो रुक रहे हैं, लेकिन आग फैलती जा रही है।

बचाव
प्रदेशभर में ऐसा हो रहा है। स्थाई उपाय नहीं है। ढोल-नगाड़े, पटाखे या आवाज से हाथी भगा सकते हैं। इसकी व्यवस्था करवानी चाहिए।

3. तेंदूपत्ता के लिए
तेंदूपत्ता के लिए ग्रामीण जंगलों में आग लगा देते हैं, ताकि ऊपरी हिस्सा जल जाए और फिर नए पत्ते आएं। इन्हें तोड़कर वे बेचते हैं। तेंदूपत्ता ठेकेदार ही आग लगवाते हैं।

बचाव
तेंदू के पौधों को ग्राउंड लेवल पर (कोपिसिंग) काटा जाना चाहिए। तेंदूपत्ता कटाई का मेहनताना कम है। इस राशि को बढ़ा सकते हैं।

कोशिशें नाकाफी
एपीसीसीएफ प्रोटेक्शन ओपी यादव ने बताया कि वनमंडलों में अग्नि रेखाओं की कटाई और सफाई करवाई जा रही है। हर बीट पर एक अग्निरक्षक नियुक्त किया है। वन प्रबंधन समितियों को सक्रिय जवाबदारी दी गई है। उनके दावों की भास्कर टीम ने पड़ताल की तो पता चला कि आग बुझाने के लिए फायर ब्लोअर दिए जा रहे हैं, लेकिन हर जगह नहीं क्योंकि खरीदी ही नहीं हुई। इसे अनट्रेंड ग्रामीण चला रहे हैं, इसलिए उतना लाभ नहीं हो रहा। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की मदद से सेटेलाइट से एसएमएस के जरिए आग की सूचना संबंधित क्षेत्र के अफसर को दी जा रही हैं, लेकिन यह देरी से पहुंच रही हैं। कई बार सूचनाएं आने से पहले ग्रामीण सूचना दे देते हैं।

हर साल बर्बादी

  • वर्ष 2018 में 117.12 वर्ग किमी
  • वर्ष 2019 में 138.54 वर्ग किमी
  • वर्ष 2020 में 14.25 वर्ग किमी
  • वर्ष 2021 में 142.79 वर्ग किमी
  • वर्ष 2022 में 16.87 वर्ग किमी
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