Sunday, May 19, 2024
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विकास से कोसों दूर आदिवासी बहुल ये दर्जनों गांव, झरिया के पानी से प्यास बुझाने को है मजबूर, किसी ने नहीं ली सुध…

नारायणपुर। आदिवासी बहुल नारायणपुर और कांकेर जिले के गांव आज भी विकास से कोसों दूर हैं. यहां तक की ग्रामीणों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं है. ओरछा विकासखंड के गांवों में आवागमन के लिए पक्की सड़कें नहीं बनी है. सबसे खराब स्थिति मूतेनतोड़ा और रावणआदी गांव की है. बारिश के दिनों में छोटे-बड़े नदी नालों में पानी भर जाने के बाद ग्रामीण आबादी का संपर्क मुख्यालय से कट जाता हैं. दर्जनों गांवों में 100 प्रतिशत आबादी को आज भी बिजली की सुविधा नहीं है. स्वच्छ भारत मिशन कभी इन गांवों में आया ही नहीं, इस वजह से आदिवासियों के परिवार आज भी जंगलों में शौच जाते हैं.

इन गांवों में पीने के पानी के नाम पर वही दशकों पुराना झरिया का सहारा है. वर्षों बाद भी यहां रहने वाले आदिवासियों को साफ पानी उपलब्ध कराने के लिए शासन-प्रशासन को हैंडपंप लगाने की फुर्सत ही नहीं मिली है. कई आदिवासी परिवार बिजली-पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. यहां आदिवासी समुदाय के लोग 12 महीने झरिया के पानी से अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं.

दूषित पानी से हो रहे बीमार

आदिवासी परिवारों को आज भी झरिया का पानी पीना पड़ता है. झरिया का दूषित पानी पीकर कई बार ग्रामीणों को बीमारी का शिकार होना पड़ता है. जिला प्रशासन और जिम्मेदार अफसरों से मूलभूत सुविधाओं की मांग की गई है. उसके बाद भी यहां रहने वाले आदिवासी नागरिक जीवन की मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे है. ऐसे में ग्रामीणों की दुर्दशा की कल्पना करना मुश्किल काम तो नहीं ही है, जिन्हें पीने के लिए साफ पानी तक नसीब नहीं हो रहा, और अगर थोड़ा-बहुत पेयजल मिलता भी है तो उसका स्रोत दूषित हैं. झरिया का दूषित पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने वाले आदिवासियों के सामने भीषण जल संकट गहरा रहा है.

बिनागुण्डा, मरकाबेड़ा के गांववाले गोंडी भाषा में कहते हैं- छोटी-बड़ी बीमारी होने पर गांव के ही दवा दारू पर निर्भर रहना पड़ता है. स्कूल, अस्पताल, आंगनबाड़ी केंद्र, भी नहीं है. और जो बड़े सरकारी अस्पताल हैं वो भी आदिवासियों की पहुंच से कोसों दूर है, जहां इलाज के लिए आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता. आदिवासियों की जिजीविषा ही है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वे अपना अस्तित्व बचाए हुए हैं.

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हैंडपंप खराब, नहीं आता पानी

बस्तर के ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्तर पर लोगों को शुद्ध पेयजल की आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं है. आलम यह है कि वर्षों से खराब पड़े हैंडपंप को देखने तक कोई नहीं आता. लोगों को शुद्ध जल पिलाने के लिए नियुक्त लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी यानी पीएचई महकमा का आलम यह है कि इसके द्वारा लगाये गए हैंडपंप धरातल पर केवल दिखते है. जो पानी तो देते नहीं पर अपनी बदहाली का किस्सा ज्यादा बयां करते है.

दूसरी ओर, कांकेर जिले के हिदूर गांव में बिजली के नाम पर सौर ऊर्जा से चलते बल्ब दिख जाते हैं, लेकिन यहां भी सोलर प्लेट खराब होने के कारण पिछले छह महीने से ग्रामीण अंधेरे में जीवन व्यतीत कर रहे हैं. गांव में मिडिल स्कूल नहीं है इसलिए आदिवासी बच्चों ने अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी है.

स्थानीय लोगों के अनुसार विधायक, सांसद समेत किसी ने गांव की सुध नहीं ली. ग्रामीणों ने बताया कि आज तक गांव में कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं आया है.

अफसरों का रटा रटाया जवाब

अपनी समस्याओं के लिए जब ग्रामीण अफसरों से गुहार लगाते हैं तो अधिकारी रटा-रटाया जवाब दे देते हैं. जैसे अभी मालूम चला है, मामले को देखता हूं, या फिर मामले की जांच की जायेगी या फिर जल्द ही समस्याओं का निपटारा किया जायेगा. ऐसे जवाब सुन-सुनकर गांववाले ऊब चुके हैं. उन्हें एक्शन चाहिए आश्वासन नहीं.

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